शासक पूंजीपति वर्ग शासन करने के अयोग्य है!

कामगार एकता कमिटी के संयुक्त सचिव डॉ. दास का लेख

ब्रिटिश उपनिवेशवादी भारत के लोगों के बारे में कहते थे कि हम असभ्य लोग, जंगली आदि हैं और हमें “सभ्य” बनाना उनका कर्तव्य है। वे इसे “श्वेत व्यक्ति का बोझ!..” कहते थे।

इसी तर्ज पर हम कामकाजी लोगों से हमेशा कहा जाता है कि “तुम काम करने, काम करने और काम करने के लिए ही पैदा हुए हो। तुम लोग शासन करने या शासन चलाने में असमर्थ हो”, और शासन चलाने और शासन करने की जिम्मेदारी केवल उनके “विशेषज्ञों” द्वारा ही संभाली जा सकती है। दो भाग की श्रृंखला में हम इन दावों की जांच करेंगे।

शासक पूंजीपति वर्ग शासन करने के अयोग्य है!

कामकाजी लोगों को हमेशा कहा जाता है कि आपका जन्म सिर्फ काम करने, काम करने और काम करने के लिए ही हुआ है। आप शासन चलाने या शासन करने के लिए असमर्थ हैं। यह पूंजीपति वर्ग के “विशेषज्ञों” का काम है। लेकिन हम कहते हैं कि शासक पूंजीपति वर्ग और उसके विशेषज्ञ शासन करने के अयोग्य हैं!

हम ऐसा क्यों कहते हैं? खैर, यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे देश में (और दुनिया के अधिकांश देशों में भी) मजदूर वर्ग के साथ-साथ बड़े पैमाने पर लोगों की दुर्दशा बद से बदतर होती जा रही है। हम अपनी आजीविका और अधिकारों पर चौतरफा हमलों का सामना कर रहे हैं। साथ ही, हम देखते हैं कि पूँजीपति वर्ग फल-फूल रहा है;

अरबपतियों की संख्या में वृद्धि हुई है और उनमें से कुछ दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से हैं, जबकि अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है।

आज अपना देश स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और परिवहन, महिला विकास जैसी सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता और कवरेज सहित हर महत्वपूर्ण मानव विकास सूचकांक में दुनिया के देशों में अंतिम कुछ में है।

पूंजीपतियों के इशारों पर नाचने वाली सरकारें मजदूरों, किसानों और आम जनता के प्रति बिलकुल ही जवाबदेह नहीं हैं। वे लोगों की बात नहीं सुनते। संघर्ष में बड़े त्याग करके जनता द्वारा जीती गई मांगों को भी वे पूरा नहीं करते। किसान आंदोलन इसका प्रमुख उदाहरण है। सैकड़ों लोगों की शहादत और लाखों लोगों के त्याग के बाद, देश और यहां तक कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों के समर्थन के बाद, यह महा संघर्ष -कागज पर ही विजयी हुआ! एक साल से अधिक समय के बाद भी, एमएसपी और अन्य मांगों के बारे में उन्हें दिए गए आश्वासनों पर अमल होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, जबकि सरकार बार-बार अपनी बात से पीछे हटने और बिजली संशोधन अधिनियम पारित करने की कोशिश कर रही है।

आइए हम एक प्रश्नावली देखें जो उस बिंदु पर जोर देगी जो हम कह रहे हैं – कि आज का शासक वर्ग शासन करने के लिए अयोग्य है!

1. जब गोदाम अन्न से भरे हों तो क्या हमारे देश में भुखमरी और कुपोषण होना चाहिए?

2. क्या एक तरफ बड़े पैमाने पर बेरोजगारी होते हुए दूसरी तरफ जिनके पास नौकरियां हैं उनसे अमानवीय रूप से लंबे समय तक काम करवाना चाहिए?

3. क्या लोगों के पैसे और उसके श्रमिकों की कड़ी मेहनत से जो सार्वजनिक क्षेत्र बनाया गया है, उसे लालची इजारेदारों के मुनाफे को बढ़ाने के लिए उनके हाथों बेच दिया जाना चाहिए?

4. सार्वजनिक शिक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए या नहीं?

5. क्या रेलवे, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रिक्तियां नहीं भरी जानी चाहिए?

6. क्या विविध धर्मों और संस्कृतियों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया जाना चाहिए या शत्रुता भड़काई जानी चाहिए?

7. क्या महिलाओं पर हमला करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए या पीड़िता को शर्मिंदा और प्रताड़ित किया जाना चाहिए?

हमें यकीन है कि हम सभी के पास इन सभी सवालों के एक जैसे उत्तर होंगे। हम जो चाहते हैं दरअसल वह वही है जो कोई भी आम महिला या पुरुष चाहता है। यदि हम इसकी तुलना वास्तव में जो हो रहा है उससे करें तो हम देखेंगे कि ये तथाकथित विशेषज्ञ जो हमारे देश पर शासन कर रहे हैं, वे जो हम चाहते हैं उसके ठीक विपरीत करने में विशेषज्ञ हैं!

हमारे देश की समस्याएँ इतनी बुनियादी हैं कि एक बच्चा भी समझ जाएगा कि वर्तमान शासन के तहत देश पूरी तरह से गलत दिशा में जा रहा है। यह केवल इस विशेष सत्ताधारी पार्टी का प्रश्न नहीं है। देश एक ही दिशा में जा रहा था, अमीर और गरीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही थी – सत्ता में चाहे कोई भी पार्टी हो! ऐसा ब्रिटिश शासन के दौर में हुआ था और यह 1947 के बाद भी जारी रहा। हर साल, चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी हो।

इस प्रकार यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पूंजीपति वर्ग मेहनतकश लोगों के हित में शासन करने के लिए अयोग्य है।

आने वाले दिनों में लोगों पर सत्तारूढ़ दल के विकल्प के रूप में तथाकथित कम बुराई को स्वीकार करने का भारी दबाव होगा। मित्रो, बुराई तो बुराई है! कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसीलिए तो कुछ लोग इतनी आसानी से एक से दूसरे में छलांग लगा सकते हैं! वे समान नीतियों को लागू करते हैं, उदाहरण के लिए निजीकरण और उदारीकरण के माध्यम से वैश्वीकरण। वे बड़े इजारेदार कॉरपोरेट घरानों के नेतृत्व वाले उसी शासक पूंजीपति वर्ग के नौकर हैं।

कोई बेहतर तरीका ज़रूर होगा! इस संदर्भ में, हम मजदूर एकता समिति की अपील को उद्धृत करना चाहेंगे:

“अगर पूंजीपति वर्ग का यह शासन जारी रहा, तो आने वाले वर्ष हम सभी के लिए एक बहुत ही अंधकारमय काल होंगे। इस स्थिति को बदलने के लिए हमें अपने देश के भविष्य की बागडोर अपने हाथों में लेनी होगी। यदि हम मजदूर किसानों के साथ मिलकर एक संगठित शक्ति के रूप में एकजुट हो जाएं, तो हम पूंजीवादी आक्रमण को रोकने में सफल हो सकते हैं। यदि हम मज़दूरों और किसानों का शासन स्थापित करते हैं, तो हम निश्चित रूप से एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।”

हमारे देश में बहुत से लोग यह नहीं मानते कि मजदूर वर्ग शासन कर सकता है। अगले लेख में हम देखेंगे कि यह निश्चित रूप से शासन चला सकता है, और इस तरह से शासन कर सकता है जिससे काम करने वाले सभी लोगों को लाभ हो!

 

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