कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
पटरी पर दौड़ती रेल के साथ कई सारे खंभे अक्सर हमारी निगाहों से छूट जाते हैं। इन खंभों पर कभी हरे तो कभी लाल रंगों का खेल कई दफा आप सभी ने देखा होगा। रेल चालक को एकाग्रचित होकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर इन सिग्नल को देखकर रेल रफ्तार को नियंत्रित करना होता है। वास्तव में रेल चालक जरूर रेल के भीतर रहता है परंतु रेल को गति हरा सिग्नल प्रदान करता है। सिग्नल और टेलीकॉम विभाग के कर्मचारी कड़ी मेहनत कर इसका अनुरक्षण करते हैं । इस तरह रेल चालक एवं ट्रेक मेंटेनरों के साथ साथ सिग्नल और टेलीकॉम विभाग के कर्मचारियों की भी रेल परिचालन में अहम भूमिका है ।
रेल परिचालन में अहम भूमिका होने के बावजूद भी सिग्नल और टेलीकॉम क्षेत्र के कर्मचारी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। इन कमियों का सीधा संबंध उनके कौशल्य विकास, तथा यात्री तथा कर्मचारी की सुरक्षा से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। रेल के इस महत्वपूर्ण महकमे में नवनियुक्त सहायकों के लिए ट्रेनिंग का कोई प्रावधान नहीं है जबकि दूसरे विभागों में ग्रुप डी के कर्मचारी के लिए भी कम से कम 15 दिन की ट्रेनिंग का प्रावधान है। यह बहुत ही आश्चर्यजनक और शर्मनाक भी है। सीधे संरक्षा और सुरक्षा से जुड़े सिग्नल और टेलीकॉम विभाग के ग्रुप डी स्टाफ को नव नियुक्ति के बाद इनिशियल ट्रेनिंग क्यों नहीं दी जा रही है?
आए दिन हमें रेल दुर्घटनाओं की खबरें मिलती रहती है। सुरक्षा उपकरणों का अभाव भी इसका एक मुख्य कारण रहा है। सही समय पर सेफ्टी जैकेट, सेफ्टी शूज, विंटर जैकेट, रेनकोट, टॉर्च का उपलब्ध ना हो पाना भी दुर्घटनाओं का एक कारक है। इसके अतिरिक्त कार्य करने के लिए तकनीशियन को क्लैंप मीटर सहित अच्छे से अच्छा औजार उपलब्ध कराने की भी आवश्यकता है। सहायकों के पदोन्नति का प्रश्न भी एक चिंता का विषय है। उत्तर रेलवे के किसी भी मंडल में टेक्नीशियन सहायकों की पदोन्नति 25 प्रतिशत एलडीसीई (limited departmental competitive examination)के अंतर्गत नहीं हो रही है|
सिग्नल और टेलीकॉम विभाग के कर्मचारी उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं, ना ही उनके कार्य कौशल सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है बल्कि रेल यात्री को भी इस उपेक्षा के फल स्वरुप होने वाले परिणाम का शिकार बनना पड़ सकता है| आईआरएस टीएमयू द्वारा उठाई गई सभी माँगे जायज है। सभी रेल मजदूर एवं मेहनतकश लोगों ने उनका पुरजोर समर्थन करना चाहिए ।