हरियाणा के कामकाजी लोगों पर हिंसा की निंदा करें

कामगार एकता कमिटी की संयुक्त सचिव श्रीमती तृप्ति का लेख

हरियाणा के नूंह जिले से शुरू हुई हिंसा बाद में गुरुग्राम और पलवल तक फैल गई, इस घटना को 2 सप्ताह से अधिक समय हो गया है। शुरुआती हिंसा में ही कम से कम 6 लोगों की जान चली गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए थे। तब से सैकड़ों वाहनों और दुकानों को आग लगा दी गई है और हजारों कामकाजी लोग इन जिलों से भागने को मजबूर हो गए हैं।

कुछ ऐसे कई समाचार रिपोर्ट और वीडियो स्पष्ट रूप से सामने आए हैं कि हरियाणा सरकार ने कई लोगों की अपील को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें सरकार से निवारक कदम उठाने का अनुरोध किया गया था। अनेक समाचार रिपोर्टें सामने आई हैं जिनमें हरियाणा सरकार पर आरोप लगाया गया है कि खुलेआम भड़काऊ नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। दुर्भाग्य से जहरिला दुश्मनी फैलानेवाला अभियान अभी भी खुली धमकियों के साथ जारी है, जबकि हरियाणा सरकार नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

मुख्यधारा का मीडिया यही ढोल पीटता रहा है कि नूंह में हिंसा “सांप्रदायिक दंगों” का परिणाम थी। हालाँकि भारत के मेहनतकश लोगों ने इन घटनाओं को समग्र रूप से मजदूर वर्ग पर हमला माना है। पूरे भारत में, श्रमिक संघ, महिला संगठन और मानवाधिकार संगठन, किसान और कृषि श्रमिक संगठन, नूंह, पलवल और गुरुग्राम के कामकाजी लोगों पर हिंसक हमलों की निंदा करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं। उन्होंने मांग की है कि सांप्रदायिक नफरत फैलाने और जान-माल के दुखद नुकसान के लिए, कमान संभालने वालों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

हम यह नहीं भूल सकते कि ये सभी घटनाएं देश भर में करोड़ों मेहनतकश लोगों द्वारा अपने अधिकारों और आजीविका की रक्षा के लिए किए गए व्यापक विरोध प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि पर हो रही हैं। बैंकिंग, तेल, रक्षा, कोयला, शिपिंग, जीवन बीमा, रेलवे, बिजली आदि क्षेत्रों के लाखों कर्मचारी और विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकार के कर्मचारी आदि निजीकरण के खिलाफ, पुरानी पेंशन के लिए, रिक्तियों को भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश भर के करोड़ों किसान MSP पर सुनिश्चित खरीद की मांग कर रहे हैं और बिजली संशोधन बिल को वापस लेने की भी मांग कर रहे हैं। मणिपुर समेत कई जगहों पर महिलाओं पर बढ़ते हमलों के खिलाफ लोग अपना गुस्सा भी निकाल रहे हैं।
संघर्षरत मेहनतकश जनता को बांटने और उनका ध्यान भटकाने के लिए ही ऐसी घटनाएं आयोजित की जा रही हैं। बढ़ती संख्या में लोग समझदार हो रहे हैं और इस जाल में फंसने से इनकार कर रहे हैं। बढ़ती एकता के साथ अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपने संघर्षों को तेज़ करना ही ऐसी साजिशों का सबसे अच्छा जवाब है।

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