कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
2018 के बाद से 5 वर्षों में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और प्रमुख निजी बैंकों (एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, इंडसइंड बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और आईडीबीआई बैंक) ने जुर्माने के रूप में बैंक ग्राहकों से 35,587 करोड़ रु. वसूल किये हैं: न्यूनतम बैलेंस न रखने पर 21,044 करोड़ रुपये का जुर्माना, अत्यधिक एटीएम लेनदेन शुल्क के लिए 8,289 करोड़ रु., एसएमएस सेवा शुल्क के लिए 6,254 करोड़ रुपये।
इस महीने राज्यसभा में वित्त मंत्रालय द्वारा एक लिखित उत्तर में उपलब्ध कराए गए ये चौंकाने वाले आंकड़े विभिन्न करों और शुल्कों के तहत लोगों की लूट का एक और रूप प्रकट करते हैं!
न्यूनतम शेष राशि: बैंक कहते हैं कि खातों में औसत मासिक बैलेंस बनाए रखना आवश्यक है। यह न्यूनतम बैलेंस रुपये की सीमा ग्रामीण क्षेत्रों में 500-1000 रु., शहरी क्षेत्रों में 2000-5000 रु. और महानगरों में 3000-10000 रु. है। इस बैलेंस सीमा का उल्लंघन करने पर 150-600 रु. का जुर्माना लगाया जाता है। कितने लोग वास्तव में इतना न्यूनतम बैलेंस बनाए रख सकते हैं और कितने लोग इतना भारी जुर्माना वहन कर सकते हैं? यदि कोई व्यक्ति 500-1000 रुपये का बैलेंस नहीं रख सकता है तो जुर्माना भरने के लिए पैसे कहां से लाएगा? बहुत स्पष्ट रूप है, जो लोग इसके द्वारा लूटे जाते हैं वे हमारे समाज के निचले आर्थिक स्तर के लोग हैं।
गौरतलब है कि न्यूनतम बैलेंस सबसे पहले बड़े निजी बैंकों ने लगाया था। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने “प्रतिस्पर्धा” को उचित ठहराते हुए न्यूनतम बैलेंस मानदंड भी शुरू कर दिए।
एटीएम और एसएमएस शुल्क: एक बार जब बैंक ग्राहक के प्रति माह एटीएम लेनदेन एक निश्चित संख्या से अधिक हो जाते हैं, तो बैंक 21 रुपये तक प्रति लेनदेन का शुल्क लेते हैं। इसी तरह, बैंक ग्राहकों को स्वचालित एसएमएस अलर्ट भेजने के लिए शुल्क लगाते हैं।
एक ओर, क्रमिक सरकारें विभिन्न सामाजिक योजनाओं के लिए कैशलेस हस्तांतरण की ओर बढ़ी हैं। दूसरी ओर, लोगों पर अपना पैसा निकालने और उसका प्रबंधन करने के लिए जुर्माना लगाया जाता है! इसके अलावा, जिन व्यक्तियों के पास स्थिर नौकरी नहीं है या जिन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता है, वे अपने लेनदेन की संख्या को सीमित नहीं कर सकते हैं। जब भी उनके खातों में पैसा होता है तो उन्हें महीने में कई बार एटीएम का उपयोग करना पड़ता है। ऐसे एटीएम लेनदेन पर जुर्माना लगाना कितना उचित है?
हाल ही में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उच्च लाभ की सूचना दी है। अप्रैल-जून 2022 में, सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों ने कुल 15,306 करोड़. रु. का लाभ दर्ज किया था। अप्रैल-जून 2023 में यह संख्या दोगुनी से भी अधिक होकर 34,774 करोड़ रु. हो गयी।
बैंक कर्मियों ने बताया है कि यह लाभ बैंक ग्राहकों पर भारी सेवा शुल्क लगाकर, आउटसोर्सिंग और स्थायी काम को अनुबंध पर रखकर वेतन पर खर्च को कम करके और मौजूदा बैंक कर्मियों को भयानक परिस्थितियों में लंबे समय तक काम कराने के द्वारा कमाया गया है! इस प्रकार, यह लाभ केवल बैंक कर्मियों और ग्राहकों के शोषण से उत्पन्न हुआ है।
इस लाभ से किसे फायदा होता है? बैंकों द्वारा अर्जित अधिशेष का उपयोग न तो श्रमिकों के लिए किया जाता है – जो निजीकरण, अधूरी रिक्तियों और बिगड़ती कामकाजी परिस्थितियों के खिलाफ विरोध और हड़ताल करने के लिए मजबूर हुए हैं – और न ही ग्राहकों के लिए। यह सर्वविदित है कि श्रमिकों और किसानों के लिए पहले तो अपनी वास्तविक जरूरतों के लिए ऋण प्राप्त करना और फिर उसे ब्याज सहित चुकाना कितना कठिन है। इसके विपरीत, बैंकों में जमा किया गया लोगों का पैसा बड़े कॉरपोरेट्स को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करने और फिर खराब होने पर इन ऋणों को माफ करने के लिए निर्देशित किया जाता है! कुछ ही दिन पहले, वित्त मंत्रालय ने एक अन्य लिखित उत्तर में बताया था कि पिछले 9 साल में बड़े कॉरपोरेट्स के 14.56 लाख करोड़ रु. राइट ऑफ कर दिए गए हैं!
बैंककर्मी लगातार मांग कर रहे हैं कि लोगों के पैसे का इस्तेमाल लोगों के कल्याण के लिए किया जाए। श्रमिकों और ग्राहकों को एकजुट होकर जनता की लूट और कर्मचारियों के शोषण का विरोध करना चाहिए। हमें मांग करनी चाहिए कि बैंकिंग, बिजली, रेलवे, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों को लोगों के नियंत्रण में लाया जाए और इन्हें जन कल्याण की सेवाओं के रूप में चलाया जाए, न कि लाभ कमाने के व्यवसाय के रूप में!