एकता और लोकतंत्र यूनियन की दो आंखें हैं!

श्री कुलीन ढोलकिया, संयुक्त सचिव, गुजरात बैंक वर्कर्स यूनियन, जामनगर की रिपोर्ट


22 अगस्त को बैंक ऑफ बड़ौदा में बिल्ला पहनाने का कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम बैंक में लिपिक एवं अधीनस्थ संवर्ग की भारी कमी के विरोध में आयोजित किया गया था। पिछले कुछ सालों से बैंककर्मी इसे लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसके अलावा, बैंकों ने बारहमासी काम और नौकरियों को आउटसोर्स करना शुरू कर दिया है। आजकल सभी बैंक प्रबंधन यूनियन समझौते का अनादर करने की होड़ में हैं। यूनियन के साथ समझौते जैसी कोई बात नहीं है। वे प्रचलित श्रम कानूनों की अनदेखी करते हैं। कम से कम बैंक कर्मचारी भाग्यशाली हैं कि नए श्रम कानून कोड अभी तक लागू नहीं हुए हैं। नए श्रम कानून लागू हुए तो हर दफ्तर में जंगल राज हो जाएगा। काम का कोई निश्चित समय नहीं होगा और कर्मचारियों को शाम 8 या 9 बजे तक बैंकों में बैठना पड़ेगा। हायर एंड फायर प्रबंधन की नीति होगी।

यह शर्मनाक है कि बैंक कर्मियों को काम के घंटों के अलावा अपने कार्यालय में उपस्थित रहने के लिए मजबूर किया जाता है और इसका परिणाम यह होता है कि कर्मचारी तनाव और निराशा के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बैंक ऑफ बड़ौदा ही कर्मचारी की भारी कमी की समस्या से जूझ रहा है। यह अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों में भी है। सभी सार्वजनिक उपक्रम कर्मचारियों की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। वे विरोध जताने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम कर रहे हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं हुआ है।

बैंक ऑफ बड़ौदा में लिपिक के 7500 पद और अधीनस्थ कर्मचारियों के 6500 पद लंबे समय से खाली हैं।

प्रबंधन ठेका कर्मचारियों को काम पर रखता है जो प्रबंधन और श्रमिकों के बीच द्विपक्षीय समझौते में प्रतिबंधित हैं। बैंककर्मी पिछले 4 साल से इस मुद्दे को उठा रहे हैं। सरकार नहीं चाहती कि उसकी निजीकरण की नीति पर कोई विरोध हो।

एकता नहीं रहने पर भविष्य में यूनियन व प्रबंधन के बीच समझौता नहीं हो पायेगा। बांटो और राज करो की नीति प्रबंधन की रहेगी। बैंकिंग में स्टाफ पैटर्न पर सहमति है लेकिन इसमें सम्मान नहीं दिया जाता है। आश्चर्य की बात है कि अधिकांश बैंकों ने लिपिक एवं अधीनस्थ कर्मचारियों के रिक्त पदों के लिए मांगपत्र नहीं डाला है। अगर 44 पुराने श्रम कानूनों की जगह 4 नए श्रम कोड ला दिए गए तो सभी सरकारी विभागों में इससे बदतर स्थिति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

 

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