मुंबई उपनगरीय ट्रेनें (लोकल) – लाखों कामकाजी लोगों को सताने वाली प्राणघातक भीड़भाड़ की समस्या हल हो सकती है!

कामगार एकता कमिटी (KEC) के संवाददाता की रिपोर्ट

पीक आवर्स (भीड़ के वक्त में) के दौरान प्रतिदिन मुंबई लोकल से यात्रा करना एक क्रूर राजा द्वारा अपनी निर्दोष प्रजा को दी गई कठोर सजा के समान है। यात्रियों को दैनिक यातनाओं का सामना क्यों करना पड़ता है, जबकि समाधान, जैसा कि हम यहां देखेंगे, रेलवे अधिकारियों को भी पता है?

भारतीय रेलवे (IR) द्वारा रोज यात्रा करनेवाले 2 करोड़ लोगों में से एक बड़ा हिस्सा मुंबई लोकल के यात्रियों का है। महाराष्ट्र के आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, महामारी से पहले के वर्षों, 2018-19 और 2019-20 में, दैनिक यात्रियों की संख्या क्रमशः 81.6 लाख और 85.3 लाख थी। यह IR के रोजाना के कुल यात्रियों का 40% से अधिक है। यह विश्व के 234 देशों में से आधे से अधिक देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक है!

वृद्ध नागरिकों, गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों के लिए पीक आवर्स के दौरान लोकलों में चढ़ना असंभव है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के बस की यह बात नहीं है जिसे ऐसी यात्रा करने की आदत न हो। यह आश्चर्य की बात होगी लेकिन सच है कि भारत में रेलवे वैगन में जानवरों को ले जाने की अधिकतम संख्या अधिकृत रूप से तय है, लेकिन यात्रियों के लिए ऐसी कोई सीमा नहीं है!

सिर्फ ट्रेनें ही नहीं, प्लेटफॉर्म भी खचाखच भरे होतें हैं। कई बार ट्रेनों के इंतजार में लोगों को काफी देर तक खड़े रहना पड़ता है। फुट ओवरब्रिज अपर्याप्त हैं और इसलिए उनमें बहुत भीड़ होती है और कई लोग ट्रैक पार करना पसंद करते हैं या उन्हें मजबूर किया जाता है क्योंकि पुल पार करने में 15 मिनट तक का समय लग सकता है। जब किसी को पीक आवर्स के दौरान पुलों का उपयोग करना होता है तो वास्तव में पुलों के कंपन को वह महसूस करता है ।

2017 में एलफिंस्टन रोड स्टेशन पर हुई भगदड़ में 23 मासूमों की जान चली गई थी; एलफिंस्टन रोड पर ओवर ब्रिज का निर्माण 1972 में किया गया था।

दिवा स्टेशन में आसपास की कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति नहीं मिलती है। उन्हें पानी के लिए हर तरफ 8 रेलवे ट्रैक पार करने को मजबूर होना पड़ता है।

मुंबई की जीवन रेखा वास्तव में कई लोगों के लिए जानलेवा सेवा बन गई है, जैसा कि मुंबई रेलवे पुलिस आयुक्तालय, महाराष्ट्र सरकार के निम्नलिखित आंकड़ों से पता चलता है (रेलवे लाइन पार करने, गैप में गिरने, ट्रेनों से गिरने, रेलवे के खंभों से टकराने और अन्य कारणों से होने वाली मौतें):

आकड़ों कि गिरावट महामारी के वर्षों के दौरान हुई है, और यह भी याद रखें कि जैसा कि देश में हर जगह सच है, हर मौत दर्ज नहीं की जाती है।

नए चौड़े पुल बनाने के लिए, उनकी मरम्मत करने के लिए, चंद्रयान तकनीक की आवश्यकता नहीं है। न ही हर लोकल में 15 डिब्बें जोड़ने के लिए उसकी ज़रुरत है (आज अधिकांश लोकलों में मात्र 12 डिब्बे होतें हैं)। और न ही भीड़भाड़ की समस्या के समाधान हेतु लोकल ट्रेनों की फ्रीक्वेंसी बढ़ाने के लिए उस स्तर की तकनीक की जरूरत है!

CBTC (संचार आधारित ट्रेन नियंत्रण) प्रणाली

मुंबई उपनगरीय ट्रेन सेवा पुरानी नियंत्रण प्रणाली का उपयोग करती है। किन्हीं दो ट्रेनों के बीच की दूरी इतनी अधिक होती है कि किसी भी दो ट्रेनों को एक ही ब्लॉक में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है।

यदि क्रमिक ट्रेनों के बीच की दूरी कम कर दी जाए तो ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है और भीड़ से बचा जा सकता है या कम की जा सकती है। CBTC प्रणाली में इसे सुरक्षित रूप से करने की क्षमता है। पिछली ट्रेन को अगली ट्रेन के खतरनाक रूप से करीब आने से पहले वह स्वचालित रूप से उसका ब्रेक लगा देता है।

CBTC का उपयोग भारत सहित पूरी दुनिया में हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली, पुणे, कोची और लखनऊ में मेट्रो लाइनों के लिए किया जाता है।

2018-19 में ही, मुंबई रेल विकास निगम (MRVC) ने CBTC को लागू करने का प्रस्ताव रखा, जिसकी कुल परियोजना लागत रु. 5,927 करोड़ रुपये थी, जो IR के रु. 2 लाख करोड़ बजट की तुलना में बहुत ही कम है।

CBTC के तहत, ट्रेनें हर 2.5 से 2.75 मिनट में उपलब्ध होंगी, जबकि वर्तमान में यह न्यूनतम 3 से 3.6 मिनट है।

(दुनिया में अन्य जगहों पर, उदाहरण के लिए मॉस्को में, पीक आवर्स में ट्रेनें एक ही ट्रैक पर 2 मिनट से कम के अंतराल पर सुरक्षित रूप से आती हैं।)

MRVC के एक अधिकारी के शब्दों में, “हमारी योजना इस तकनीक को सबसे पहले CR की हार्बर लाइन पर लागू करने की है। हार्बर लाइन पर वर्तमान अन्तराल 3.5 मिनट है। छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) और पनवेल के बीच इस लाइन पर हर घंटे 15 ट्रेनें चलती हैं। CBTC के बाद यह संख्या बढ़कर 24 हो सकती है।’

तकनीक सर्वविदित है, योजनाएं कुछ साल पहले बनी थीं, लेकिन उनके कार्यान्वयन के शुभ दिन अभी तक नहीं आए हैं। क्यों?

जून 2023 में एक MRVC अधिकारी के शब्दों में: “रेल मंत्रालय स्वदेशी रूप से CBTC विकसित करने का प्रयास कर रहा है; एक बार यह पूरा हो जाए तो उसके अनुसार काम किया जाएगा।”

अधिक कीमती क्या है? मानव जीवन और आराम या स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक का घमंड? इसका उत्तर हम सभी के लिए स्पष्ट है, लेकिन नीतिगत निर्णय लेने वालों की राय इसके विपरीत है!

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