कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
महाराष्ट्र में स्मार्ट बिजली मीटर का विरोध जोर पकड़ रहा है। नागपुर में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की पहल पर स्मार्ट मीटर विरोधी नागरिक संघर्ष समिति नामक एक मंच का गठन किया गया है। इस मंच ने नागपुर के मजदूर वर्ग के इलाकों में बिजली क्षेत्र के मज़दूरों और नागरिकों के साथ कई बैठकें आयोजित की हैं। उन्होंने जिला अधिकारियों से मुलाकात की और स्मार्ट मीटर के खिलाफ ज्ञापन भी सौंपा।
ऑल इंडिया इलेक्ट्रिसिटि कंज़्यूमर्स एसीओसेशन के कार्यकर्ताओं द्वारा इसी शहर में एक और मंच बनाया गया है। यह मंच स्मार्ट मीटर का विरोध करने वाले नागरिकों के हस्ताक्षर एकत्र कर रहा है। नाशिक में 20 से अधिक कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने जिला अधिकारियों से मुलाकात की और स्मार्ट मीटर के खिलाफ ज्ञापन सौंपा। महाराष्ट्र के कई शहरों में और भी कई बैठकें होने की खबरें हैं।
महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (MSEWF) से जुड़े कार्यकर्ता अपने सदस्यों के लिए बैठकें आयोजित कर रहे हैं। पुणे शहर में ऐसी 2 बैठकें आयोजित की गईं। कामगार एकता कमिटी के कार्यकर्ता इस मुद्दे पर विभिन्न बैठकों में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं और बिजली वितरण के निजीकरण की दिशा में केंद्र सरकार की योजना के विभिन्न विवरणों को समझाने में सबसे आगे रहे हैं, जिसमें स्मार्ट मीटर उस उद्देश्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
महाराष्ट्र सरकार को लग रहा है कि स्मार्ट मीटर का विरोध बढ़ रहा है। इसलिए उसके कई अधिकारी, जिनमें कुछ मंत्री भी शामिल हैं, स्मार्ट मीटर कार्यक्रम के बारे में झूठ फैला रहे हैं, जैसे कि – “चिंता मत करो, ये प्रीपेड मीटर नहीं होंगे”, “चिंता मत करो, बिजली उपभोक्ताओं को इन स्मार्ट मीटर के लिए पैसे नहीं देने होंगे”, इत्यादि । ऐसी ही एक घोषणा यह है कि “स्मार्ट मीटर घरेलू उपभोक्ताओं और छोटे व्यवसायों के लिए नहीं बल्कि केवल बड़े उद्योगों के लिए लगाए जाएंगे”।
केईसी प्रतिनिधि ने कल्याण में ट्रेड यूनियन संयुक्त कार्रवाई समिति, कल्याण द्वारा आयोजित एक बैठक में इन सभी झूठों को उजागर किया। स्मार्ट मीटर की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई पुनर्विकसित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसमें राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है। आरडीएसएस योजना में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि स्मार्ट मीटर प्रीपेड मीटर होंगे। उन्होंने आरडीएसएस और स्मार्ट मीटर योजना की विभिन्न विशेषताओं और इसके जन-विरोधी और मजदूर-विरोधी चरित्र के बारे में भी विस्तार से बताया।
उन्होंने कहा कि स्मार्ट मीटर के प्रति लोगों के विरोध को देखते हुए सत्ता से बाहर की कई राजनीतिक पार्टियाँ अपने स्वार्थी चुनावी लाभ के लिए इस संघर्ष में कूदने की कोशिश करेंगी। उन्होंने चेतावनी दी कि हम उन पर भरोसा नहीं कर सकते। केवल बिजली मज़दूरों और उपभोक्ताओं की एकता ही स्मार्ट मीटर की स्थापना को रोक सकती है।
उन्होंने आरडीएसएस के उन कठोर प्रावधानों पर भी जोर दिया, जो डिस्कॉम (अर्थात राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियां) को परफ़ोर्मेंस आधारित स्थानांतरण नीति लागू करने का आदेश देते हैं। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि स्मार्ट मीटरों की स्थापना पूरी हो जाने के बाद नई स्थानांतरण नीति के माध्यम से हजारों बिजली कर्मचारियों को अपनी नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा।
महाराष्ट्र की तरह ही पूरे देश में स्मार्ट मीटर लगाने का व्यापक विरोध हो रहा है। जहां भी ये लगाए गए हैं, वहां लोगों को पहले से ही बहुत ज़्यादा बिजली बिल मिल रहे हैं और कई अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है।
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हमने पहले ही स्मार्ट मीटर के जनविरोधी और मज़दूर विरोधी स्वरूप को उजागर करने वाली पुस्तिका के बारे में रिपोर्ट की थी, जिस पर 46 मज़दूर, किसान और जन संगठनों ने सह-हस्ताक्षर किए हैं। हमें यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि बिजली, रेलवे, बैंक, बीमा, कोयला और अन्य क्षेत्रों के यूनियनों और कुछ जन संगठनों ने भारत भर में अपने सदस्यों के बीच वितरित करने के लिए अंग्रेज़ी, हिंदी और मराठी में हज़ारों पुस्तिकाएँ खरीदी हैं। इस पुस्तिका (हिंदी, अंग्रेज़ी और मराठी में उपलब्ध) की प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए, कृपया 8454018757 पर व्हाट्सएप पर संपर्क करें।