बिजली के निजीकरण पर यूपी सरकार का तर्क भ्रामक है!

दिनकर कपूर, प्रदेश महासचिव, ऑल इंडिया पीपल्स फ्रंट, उत्तर प्रदेश

(अंग्रेजी लेख का अनुवाद)

संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत में व्यक्ति की गरिमा सुनिश्चित की जाएगी। संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन के अधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णयों में प्रत्येक नागरिक को सम्मानजनक जीवन प्रदान करना राज्य का प्रमुख कर्तव्य माना गया है। कोई भी व्यक्ति सम्मानजनक जीवन तभी जी सकता है, जब राज्य उसके जीवन के लिए आवश्यक सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बिजली, पानी, सड़क आदि सुनिश्चित करे। 1991 के बाद लागू की गई नई आर्थिक औद्योगिक नीतियों में पूंजी पर राज्य का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया। राज्य कल्याणकारी नीति से पीछे हट गया और सरकारें अपने सामाजिक दायित्वों से बचने लगीं। अन्य सुविधाओं के साथ-साथ देश भर में बिजली क्षेत्र का भी निजीकरण होने लगा और आम आदमी महंगी बिजली खरीदने को मजबूर हो गया।

हाल ही में यूपी-पावर कॉरपोरेशन ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 3 भागों में और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को 2 भागों में बांटकर निजी क्षेत्र को देने का फैसला किया है। निजीकरण के इस फैसले पर सरकार द्वारा दिए गए तर्क पूरी तरह से भ्रामक हैं। सरकार का कहना है कि बिजली विभाग में बढ़ते घाटे के कारण ऐसा करना जरूरी हो गया है क्योंकि सरकार को विद्युत वितरण निगम को लगातार अतिरिक्त सब्सिडी देनी पड़ रही है, जो बजट पर अतिरिक्त बोझ है। जबकि सच्चाई यह है कि वर्तमान में पावर कॉरपोरेशन का कुल घाटा 1 लाख 18 हजार करोड़ रुपये है, जबकि 2023-24 के अनुसार बकाया वसूली 1 लाख 15 हजार करोड़ रुपये है, जो इस वित्तीय वर्ष में और भी ज्यादा हो जाएगी। विद्युत उपभोक्ता परिषद के अनुसार इसमें बड़ा बकाया सरकार, पुलिस प्रशासन और बड़े व्यापारियों का है। अगर सरकार पावर कॉरपोरेशन को उसका बकाया दे और बड़े व्यापारियों से सख्ती से वसूली करे तो पावर कॉरपोरेशन मुनाफे में आ जाएगा।

बिजली घाटे के कारण बजट पर अतिरिक्त बोझ की सरकार की बात भी सही नहीं है। सच तो यह है कि इस वर्ष सरकार ने निगम को 46,130 करोड़ रुपए दिए हैं, जिसमें से 20 हजार करोड़ रुपए सब्सिडी है, जो विद्युत अधिनियम 2003 के तहत देना सरकार का सामाजिक दायित्व है। इतना ही नहीं, प्रदेश में उलटी अर्थव्यवस्था चलाई जा रही है। प्रदेश में जल विद्युत संयंत्रों में 1 रुपए प्रति यूनिट, सरकारी ताप विद्युत परियोजनाओं में 4.28 रुपए तथा एनटीपीसी में 4.78 रुपए प्रति यूनिट बिजली का उत्पादन होता है। ये संस्थाएं ताप विद्युत बैकिंग करके, यानि उत्पादन बंद करके, अल्पकालीन समझौते के नाम पर निजी क्षेत्र से 7.50 रुपए से 19 रुपए प्रति यूनिट बिजली खरीदती हैं। यह आर्थिक नीति ही बिजली विभाग के घाटे का बड़ा कारण है।

बिजली विभाग के शीर्ष अधिकारियों द्वारा अखबार में दिया गया यह बयान कि इस निजीकरण में उपभोक्ताओं, बिजली कर्मचारियों तथा हितधारकों के सभी हितों की रक्षा की जाएगी, एक दिखावा है। देश में जहां भी निजी क्षेत्र बिजली उपलब्ध करा रहा है, वहां उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। 1 अप्रैल 2024 तक मुंबई में टाटा पावर द्वारा दी जाने वाली बिजली की दर 100 यूनिट तक 5.33 रुपये, 101 से 300 यूनिट के लिए 8.51 रुपये, 301 से 500 यूनिट के लिए 14.77 रुपये और 500 यूनिट से अधिक के लिए 15.71 रुपये है। जबकि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में यह दर 100 यूनिट तक 3.35 रुपये, 101 से 150 यूनिट के लिए 3.85 रुपये, 151 से 300 यूनिट के लिए 5.50 रुपये और 300 यूनिट से अधिक के लिए 5.50 रुपये है। इतना ही नहीं, टाटा पावर ने मुंबई में बिजली की फ्लेक्सी टैरिफ प्रणाली लागू कर रखी है, यानी अलग-अलग समय के लिए बिजली की अलग-अलग दरें हैं।

जहां तक कर्मचारियों के हितों की बात है तो इस समय पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 7 मुख्य अभियंता स्तर-I, 25 मुख्य अभियंता स्तर-II, 109 अधीक्षण अभियंता, 362 अधिशासी अभियंता, 1061 सहायक अभियंता, 2154 अवर अभियंता, 23818 टेक्नीशियन, क्लर्क व अन्य कर्मचारी हैं। इसके अलावा करीब 50 हजार संविदा कर्मी हैं। इनमें सबसे ज्यादा मार संविदा कर्मियों पर पड़ेगी। दिल्ली और ओडिशा में निजीकरण के प्रयोग में काम कर रहे तमाम संविदा कर्मियों की नौकरी चली गई है। सरकार ने खुद कर्मचारियों को तीन प्रस्ताव दिए हैं। पहला, एक ही स्थान पर बने रहो, दूसरा, किसी दूसरी डिस्कॉम में चले जाओ और तीसरा, आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) स्वीकार करो। इन विकल्पों से साफ है कि कर्मचारियों के हित बुरी तरह प्रभावित होंगे।

सरकार ने यह भी कहा है कि निजीकरण से लाइन हानियों पर काबू पाया जा सकेगा। देश में निजी क्षेत्र द्वारा दी जा रही बिजली में लाइन हानियां अधिक हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 तक ओडिशा में रिलायंस द्वारा दी जाने वाली बिजली में 47 प्रतिशत लाइन लॉस था। 2020 से वहां टाटा पावर द्वारा दी जा रही बिजली में दक्षिणी क्षेत्र में 31.3 प्रतिशत, पश्चिमी क्षेत्र में 20.5 प्रतिशत और मध्य क्षेत्र में 22.6 प्रतिशत बिजली का नुकसान हुआ है। जबकि यूपी पावर कॉरपोरेशन में कुल लाइन हानि सिर्फ 19 प्रतिशत है।

दरअसल निजीकरण के जरिए सरकार सरकारी संपत्ति की लूट भी कर रही है। बिजली कर्मचारियों के मुताबिक पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगम में पुनर्विकसित वितरण क्षेत्र सुधार योजना (आरडीएसएस) में 42,968 करोड़ रुपये के सरकारी काम चल रहे हैं। साथ ही बिजनेस प्लान के तहत पूर्वांचल में 1,204 करोड़ और दक्षिणांचल में 1,190 करोड़ रुपये के काम चल रहे हैं। सरकारी खजाने में जमा जनता के इतने बड़े पैसे को मुफ्त में निजी क्षेत्र को दे दिया जाएगा। इस तरह की लूट कोई नई बात नहीं है। इससे पहले CAG की रिपोर्ट में साबित हुआ था कि गुजरात की टोरेंट पावर को आगरा का बिजली वितरण देने में सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।

देखा जाए तो देश में जब भी भाजपा की सरकार आती है, बिजली क्षेत्र का निजीकरण तेज हो जाता है। सबको याद होगा कि 13 दिन की अटल बिहारी सरकार ने एनरॉन के साथ बिजली समझौता किया था, जिसमें महाराष्ट्र सरकार को बिना बिजली दिए करोड़ों रुपए चुकाने पड़े थे और जिसे बाद में रद्द कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड का बंटवारा भी भाजपा राज में ही हुआ था। बिजली के निजीकरण और कॉरपोरेट मुनाफे का रास्ता खोलने वाला इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 भाजपा राज में ही आया। अब मोदी सरकार इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2022 लेकर आई है जिसमें सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी की व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, यानी किसानों को सिंचाई और कृषि कार्य के लिए जो सस्ती बिजली मिलती थी, वह भी उनसे छीन ली जाएगी। स्थिति यह होगी कि किसानों को 7.5 हॉर्स पावर के सिंचाई कनेक्शन के लिए 10 हजार रुपए प्रतिमाह चुकाने होंगे, जिससे संकटग्रस्त खेती पर बुरा असर पड़ेगा।

निजीकरण के इस फैसले के खिलाफ बिजली कर्मचारियों से लेकर किसान और नागरिक समाज के लोग खड़े हो गए हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में बिजली के निजीकरण का सवाल उत्तर प्रदेश में एक बड़े राजनीतिक आंदोलन का केंद्र बनेगा।

3 दिसंबर 2024

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