लखनऊ में आयोजित ‘‘बिजली पंचायत’’ ने निर्णय लिया कि दो विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण वापस कराने हेतु ‘‘करो या मरो’’ की भावना से निर्णायक संघर्ष किया जायेगा

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र से प्राप्त रिपोर्ट


बिजली निजीकरण वापस कराने के लिए हुई बिजली पंचायत में ‘‘करो या मरो’’ की भावना से निर्णायक संघर्ष का निर्णय – शैलेन्द्र दुबे

बिडिंग प्रक्रिया शुरू होते ही अनिश्चितकालीन आंदोलन की घोषणा

यूपीएसईबी लि. के पुनर्गठन की मांग

ऊर्जा मंत्री और प्रबन्धन के प्रति बिजली पंचायत में दिखा भारी गुस्सा

मुख्यमंत्री के प्रति विश्वास व्यक्त करते हुए उनसे बिजली का निजीकरण रोकने के लिए प्रभावी हस्तक्षेप की अपील

22 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित ‘‘बिजली पंचायत’’ में यह निर्णय लिया गया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण वापस कराने हेतु ‘‘करो या मरो’’ की भावना से निर्णायक संघर्ष किया जायेगा। बिजली पंचायत ने ऐलान किया कि बिडिंग प्रक्रिया शुरू होते ही समस्त ऊर्जा निगमों को तमाम बिजली कर्मचारी और अभियंता उसी समय अनिश्चितकालीन आंदोलन प्रारम्भ कर देगें जो बिजली का निजीकरण वापस होने तक जारी रहेगा। यह भी निर्णय लिया गया कि प्रदेश के समस्त जनपदों एवं परियोजनाओं पर बिजली पंचायत आयोजित की जायेंगी। बिजली पंचायत में उप्र सरकार से यह मांग की गयी कि बिजली व्यवस्था सुधारने हेतु यूपीएसईबी लि. का पुनर्गठन किया जाये।

बिजली पंचायत में एक प्रस्ताव पारित करके बिजली कर्मचारियों और उपभोक्ताओं ने प्रदेश के मुख्यमंत्री मा. योगी आदित्यनाथ जी से अपील की है कि वे 42 जनपदों के बिजली के निजीकरण जैसे लोक महत्व के अत्यंत गंभीर सवाल पर प्रभावी हस्तक्षेप करने की कृपा करें जिससे अरबों-खरबों रूपये की परिसम्पत्तियों को चंद कारपोरेट घरानों के हाथ बेचने की प्रबन्धन की साजिश कामयाब न हो सके। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने मा. मुख्यमंत्री जी के प्रति पूर्ण विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि मा. मुख्यमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में बिजली कर्मियों ने वर्ष 2016-17 में 41 प्रतिशत एटी एण्ड सी हानियों को कम करके वर्ष 2023-24 में 17 प्रतिशत तक कर दिया है। बिजली कर्मी मा. मुख्यमंत्री जी से अपील करते हैं कि वे निजीकरण की की जा रही एकतरफा प्रक्रिया को रोकें जिससे बिजली कर्मी पूरे मनोयोग से अपने काम में जुटे रहें। संघर्ष समिति ने विश्वास दिलाया कि जब 7 साल में 24 प्रतिशत लाइन हानियां कम की जा सकती हैं तो अगले 1 वर्ष में निश्चय ही लाइन हानियां 12 प्रतिशत तक ले आने में बिजली कर्मी पूर्णतया समर्थ हैं।

बिजली पंचायत में ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे, ऑल इण्डिया पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष आर के त्रिवेदी, इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाईज फेडरेशन ऑफ इण्डिया के सेक्रेटरी जनरल प्रशान्त चौधरी, ऑल इण्डिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लाईज के सेक्रेटरी जनरल मोहन शर्मा एवं अखिल भारतीय राज्य कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष सुभाष लांबा, उमाशंकर मिश्रा, सतीश पाण्डेय, बालेन्द्र कटियार, चन्द्रशेखर, कमल अग्रवाल, रेनू शुक्ला, मुकुट सिंह, विजय बन्धु, हेमन्त कुमार सिंह, अनिल वर्मा, राम मूरत, अफीफ सिद्दीकी, कमलेश मिश्रा, एस पी सिंह, संजय यादव, राधारानी श्रीवास्तव, एकादशी यादव, रीना त्रिपाठी विशेष तौर पर सम्मिलित हुए। इसके अतिरिक्त उप्र के राज्य कर्मचारी महासंघ और राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद सहित राज्य सरकार के सभी श्रमसंघों के पदाधिकारी भी बिजली पंचायत में शामिल हुए। भारतीय मजदूर संघ, एटक, इण्टक, सीटू, एक्टू, यूटीयूसी के पदाधिकारी भी बिजली पंचायत में आये। सभी श्रम संघ नेताओं ने एक स्वर में कहा कि बिजली के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मियों के संघर्ष का वे पूरी तरह समर्थन करते हैं। श्रम संघों ने चेतावनी दी कि यदि निजीकरण का विरोध कर रहे एक भी बिजली कर्मचारी का कोई भी उत्पीड़न किया गया तो प्रदेश के लाखों कर्मचारी और श्रमिक चुप नहीं रहेंगे और बिजली कर्मियों के साथ आंदोलन में कूद पड़ेंगे। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रस्ताव का जोरदार समर्थन करते हुए कहा कि बिजली के निजीकरण का निर्णय वापस कराने हेतु बिजली उपभोक्ता बिजली कर्मचारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करेंगे। यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक बिजली का निजीकरण वापस न ले लिया जाये।

नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एण्ड इंजीनियर्स के संयोजक प्रशान्त चौधरी ने कहा कि यदि उप्र में बिजली के निजीकरण का फैसला वापस न लिया गया और उप्र के बिजली कर्मियों को आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ा तो पूरे देश के 27 लाख बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता मूक दर्शक नहीं रहेगें। उप्र के बिजली कर्मचारियों के साथ देश भर में बिजली कर्मचारी अनिश्चितकालीन आंदोलन पर चले जायेंगे जो बिजली का निजीकरण वापस होने तक जारी रहेगा। प्रशान्त चौधरी ने चेतावनी दी कि यदि उप्र के किसी भी बिजली कर्मचारी का किसी भी प्रकार से उत्पीड़न करने की कोशिश की गयी तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया होगी।

बिजली पंचायत में पारित प्रस्ताव में निर्णय लिया गया है कि उप्र सरकार ने यदि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण हेतु बिडिंग की कोई भी एकतरफा कार्यवाही प्रारम्भ की तो ‘‘करो या मरो’’ की भावना से समस्त ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मचारी संविदा कर्मी और अभियंता लोकतांत्रिक ढंग से आंदोलन प्रारम्भ करने हेतु बाध्य होंगे जिसकी सारी जिम्मेदारी उप्र सरकार और ऊर्जा निगमों के प्रबन्धन की होगी। आन्दोलन की रूपरेखा यथा समय घोषित कर दी जायेगी।

बिजली पंचायत में मांग की गयी कि 2×800 मेगावाट क्षमता की ओबरा ‘डी’ परियोजना एवं 2×800 मेगावाट क्षमता की अनपरा ‘ई’ परियेजना का कार्य व्यापक जनहित में उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम को पूरी तरह सौंपा जाये। 25 जनवरी 2000 के समझौते के अनुरूप उप्र राज्य विद्युत परिषद के विघटन के फलस्वरूप हुई भारी क्षति को देखते हुए उप्र पावर कारपोरेशन लि., उप्र राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि., उप्र पारेषण निगम लि. और समस्त विद्युत वितरण निगमों का एकीकरण कर यूपीएसईबी लि. का पुनर्गठन किया जाये।

पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के निर्णय के विरोध में व्यापक जन-जागरण करने हेतु प्रदेश के समस्त जनपदों एवं परियोजनाओं पर श्रृंखलाबद्ध ढंग से बिजली रथ निकाल कर ‘‘बिजली पंचायत’’ आयोजित की जायेगी।

प्रस्ताव में यह कहा गया है कि बिजली के निजीकरण का प्रयोग ग्रेटर नोएडा, आगरा और देश के अन्य प्रान्तों में पूरी तरह विफल हो चुका है। अतः इस विफल प्रयोग को गलत आकड़े देकर और भय का वातावरण बनाकर देश के सबसे बड़े प्रान्त उप्र में थोपा जाना किसी प्रकार से उचित नहीं है।

प्रस्ताव में कहा गया है कि 05 अप्रैल 2018 और 06 अक्टूबर 2020 को वित्त मंत्री श्री सुरेश खन्ना एवं तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्री श्रीकान्त शर्मा के साथ हुए लिखित समझौते में यह कहा गया है कि ‘‘उप्र में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही विद्युत वितरण में सुधार हेतु कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्यवाही की जायेगी। कर्मचारियों एवं अभियंताओं को विश्वास में लिये बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जायेगा’’। अब निजीकरण का लिया गया निर्णय साफ तौर पर इस समझौते का उल्लंघन है।

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