मज़दूर एकता कमेटी का आह्वान, 9 मई 2025
मज़दूर साथियों,
मज़दूर संगठनों ने 20 मई 2025 को सर्व हिन्द आम हड़ताल का आह्वान किया है। इस हड़ताल के द्वारा हम मज़दूर केंद्र और राज्य सरकारों को बताना चाहते हैं कि वे “ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस” के नाम पर हमारे अधिकारों पर जो हमले कर रहे हैं, हम उन्हें स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हम यह स्वीकार करने से इनकार करते हैं कि पूंजीपतियों के लिए जो सबसे अच्छा है, वह देश के लिए भी सबसे अच्छा है। नहीं, पूंजीपतियों के लिए जो सबसे अच्छा है, वह मज़दूरों और किसानों के हितों के खिलाफ़ है। वह पूरे हिन्दोस्तानी समाज के हितों के खिलाफ़ है।
केंद्र और राज्यों में एक के बाद एक सरकारें पिछले 34 वर्षों के दौरान, लगातार उदारीकरण और निजीकरण के जरिये वैश्वीकरण के कार्यक्रम को लागू करती रही हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि अति-अमीर पूंजीपतियों की दौलत में भारी बढ़ोतरी हुई है। इससे मज़दूरों का शोषण, किसानों की लूट तथा अन्य छोटे उत्पादकों की तबाही और भी बढ़ गई है।
केंद्र और राज्य सरकारों ने हमारे अधिकारों को छीनने के लिए कई कदम उठाए हैं। श्रम अधिकारों के किसी भी कानूनी संरक्षण के बिना, आउटसोर्सिंग और ठेके पर मज़दूरों से काम करवाना दोनों सार्वजनिक और निजी कंपनियों में एक व्यापक प्रथा बन गई है। कई मज़दूरों को सरकारों द्वारा घोषित कानूनी न्यूनतम वेतन से बहुत कम वेतन दिया जाता है। बहुत से मज़दूरों को दिन में 12 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। लाखों मज़दूर गिग वर्कर के रूप में काम कर रहे हैं, और उन्हें कोई भी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।
कई वर्षों से पूंजीपति वर्ग श्रम कानूनों में बदलाव की मांग कर रहा था, ताकि हमें अपने अधिकारों से वंचित किया जा सके और हमारा अति-शोषण और आसन बनाया जा सके। इस तरह के बदलाव पहले कई राज्य सरकारों द्वारा लागू किए गए थे। फिर, केंद्र की भाजपा सरकार ने अपने संसदीय बहुमत का इस्तेमाल करके 2019 और 2020 में चार सर्व हिन्द श्रम संहितायें लागू करवाईं।
ये श्रम संहितायें हम मज़दूरों को उन अधिकारों से वंचित करती हैं जो हमने कई दशकों के संघर्ष से जीते हैं। ये हमें संगठित होने और अपनी पसंद की यूनियन बनाने के अधिकार से वंचित करती हैं। ये हड़ताल करना कहीं ज़्यादा मुश्किल बना देती हैं, जब कि हड़ताल ही हमारे हाथों में, मालिकों के खिलाफ़ सबसे सक्षम हथियार है। ये अधिकतम मज़दूरों को किसी भी तरह की सामाजिक सुरक्षा से वंचित करती हैं। ये पूंजीपतियों को अपनी मर्ज़ी से मज़दूरों को काम पर रखने और निकालने की इजाज़त देती हैं। ये पूंजीपतियों को ज्यादा से ज्यादा मज़दूरों को अस्थाई ठेकों पर रखने और कार्यस्थलों में सुरक्षा मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन करने की पूरी छूट देती हैं। ये पूंजीपतियों को काम के घंटों को प्रतिदिन 8 घंटे और प्रति सप्ताह 48 घंटे से ज़्यादा बढ़ाने की छूट देती हैं।
कई राज्य सरकारें श्रम संहिताओं में प्रस्तावित मज़दूर विरोधी बदलावों को बड़े हमलावर तरीक़े से लागू कर रही हैं। कई राज्यों में 300 से कम नियमित मज़दूर रखने वाले पूंजीपति अब बिना किसी सरकारी इजाज़त के, मज़दूरों की छंटनी कर सकते हैं। पहले 100 से अधिक नियमित मज़दूरों को रखने वाले पूंजीपति मालिक को उनकी छंटनी करने के लिए सरकारी इजाज़त की ज़रूरत होती थी। कई राज्यों ने कानून में ऐसा बदलाव किया है ताकि 50 मज़दूर तक ठेके पर रखने वाले ठेकेदार ठेका मज़दूर (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970 के दायरे में न आयें। यह अधिनियम बारह-मासी कामों के लिए ठेका मज़दूरों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाता है। इस क़ानून में यह भी ज़रूरी है कि मुख्य मालिक ठेका मज़दूरों के लिए कुछ सुविधायें सुनिश्चित करे। पहले यह कानून 20 से ज़्यादा मज़दूरों को ठेके पर रखने वाले किसी भी ठेकेदार पर लागू होता था। फ़ैक्टरी की परिभाषा बदल दी गई है — अगर किसी फ़ैक्टरी में 20 से कम मज़दूर काम करते हैं, तो वह फ़ैक्टरी अधिनियम के दायरे में नहीं आती। ज़्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने फ़ैक्टरियों में महिलाओं को रात की पाली में काम करने की अनुमति देने के लिए कानून में बदलाव किया है।
कई राज्य अब एक ऐसा कानून लाने पर विचार कर रहे हैं जिसके तहत सभी मज़दूरों को पहले ही हड़ताल की सूचना देनी होगी, जो अब तक सिर्फ़ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में ज़रूरी थी।
केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही निजीकरण कार्यक्रम को लागू कर रही हैं। निजीकरण सार्वजनिक संपत्तियों और सेवाओं को निजी कंपनियों को सौंपने का कार्यक्रम है। इसे विनिवेश, मुद्रीकरण और सार्वजनिक-निजी सांझेदारी (पीपीपी) जैसे अलग-अलग तरीकों और अलग-अलग नामों से लागू किया गया है। इसका उद्देश्य आवश्यक सार्वजनिक संसाधनों व सेवाओं को अधिकतम पूंजीवादी मुनाफे़ के स्रोतों में बदलना है। इसके चलते, कई आवश्यक वस्तुएं व सेवाएं बहुत महंगी हो गयी हैं और अनेक मेहनतकश लोगों की पहुंच से बाहर हो गयी हैं। इसने रेलवे, कोयला खदानों, बिजली, दूरसंचार, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य और कई अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की हालतों को और खराब कर दिया है।
मज़दूर साथियों,
आज यह वक्त की मांग है कि हम एक प्रबल शक्ति बतौर एकजुट हो जायें और पूंजीवादी शोषकों तथा उनकी सरकारों के खिलाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ायें।
कानून और सरकारी नियम हमें औपचारिक और अनौपचारिक मज़दूर, नियमित और अस्थायी मज़दूर, संगठित और असंगठित मज़दूर, में बांट देते हैं। पूंजीपति वर्ग की राजनीतिक पार्टियां हमें धर्म और जाति के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं। आइए, हम इन सारे बंटवारों से ऊपर उठें, जो पूंजीपति वर्ग और उसकी पार्टियां हम पर थोपती हैं!
आइये, अपने कार्यक्रम के इर्द-गिर्द अपनी एकता को मज़बूत करें! मज़दूर संगठनों ने फौरी मांगों का एक मांगपात्र पेश किया है। आइये, उन मांगों को पूरा करवाने के लिए संघर्ष को तेज़ करें!
जीवन के अनुभव से हमने देखा है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में चुनाव पूंजीपति वर्ग की विभिन्न पार्टियों के बीच एक प्रतिस्पर्धा है। ये पार्टियां पूंजीपति वर्ग की हुकूमत का मेनेजर बनने के मौके के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करती हैं। हम ऐसी पार्टियों की सरकारों से हमारी मांगों को पूरा करने की उम्मीद नहीं कर सकते।
मज़दूर और किसान आबादी के 90 प्रतिशत से ज़्यादा हैं, लेकिन इस व्यवस्था में हमारी कोई शक्ति नहीं है। कानून और नीतियां तय करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है। देश का असली हुक्मरान पूंजीपति वर्ग है। पूंजीपति चुनाव का इस्तेमाल करके, अपनी किसी एक या दूसरी भरोसेमंद पार्टी को सरकार चलाने के लिए चुनते हैं। वे उस पार्टी को चुनते हैं जो पूंजीवादी कार्यक्रम को सबसे ज़्यादा प्रभावी ढंग से लागू कर सकती है, और साथ ही साथ लोगों को बुद्धू बना सकती है कि यह पार्टी उनके हित में काम कर रही है।
हमें पूरी राजनीतिक व्यवस्था को बदलने, और पूंजीपति वर्ग की हुकूमत की जगह पर मज़दूरों व किसानों की हुकूमत स्थापित करने के राजनीतिक उद्देश्य के साथ संघर्ष करना होगा। अपने हाथों में राजनीतिक सत्ता लेकर, हमें उत्पादन के मुख्य साधनों को पूंजीपति वर्ग के हाथों से लेकर, उन्हें सामाजिक नियंत्रण में लाना होगा। तभी हम यह सुनिश्चित कर पायेंगे कि हमारे सभी अधिकार सुनिश्चित हों और हमारी सभी लम्बे समय से चली आ रही मांगें पूरी हों।
मज़दूर साथियों,
यह हड़ताल पूंजीपति वर्ग और उसकी सरकारों के खिलाफ़ आगे आने वाले बड़े-बड़े संघर्षों की तैयारी का हिस्सा है।
मज़दूर एकता कमेटी सभी क्षेत्रों के मज़दूरों से 20 मई की सर्व-हिन्द आम हड़ताल को सफल करने के लिए संगठित होने का आह्वान करती है। आइये, हम मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापना करने के प्रेरणादाई उद्देश्य के साथ, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लें!