कामगार एकता कमेटी (KEC) संवाददाता के द्वारा रिपोर्ट
हर साल गर्मी के मौसम में भारतीय रेलवे के लोको पायलटों के लिए काम करने की परिस्थिति असहनीय हो जाती है क्योंकि इंजन केबिन के अंदर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। लोको पायलट कई सालों से लोको केबिन में AC सिस्टम लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन रेलवे प्रशासन ने उनकी मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) के महासचिव श्री केसी जेम्स के अनुसार, भारतीय रेलवे में कुल 10,500 विद्युत् इंजन और 4500 डीजल इंजन हैं, यानी कुल 15,000 इंजन हैं। इनमें से 700 से भी कम AC लगे हैं और इनमें से भी 50 प्रतिशत से कम कार्यरत हैं।
उचित रख-रखाव के लिए कर्मचारियों की कमी और अधिकारियों की सौतेला नीति के कारण इंजन केबिन में लगे AC काम करना बंद कर चुके हैं। यदि वे 700 AC वर्षों के आंदोलन के परिणामस्वरूप लगाए गए हैं, तो उन्हीं अधिकारियों को 14300 इंजनों में उन्हें लगाने में और कितने साल लगेंगे?
लोको पायलटों ने बार-बार बताया है कि भारत में ग्रीष्म ऋतु जैसे अप्रैल, मई और जून के दौरान सबसे अधिक परिवेशी तापमान राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में होता है।
AILRSA के केंद्रीय अध्यक्ष श्री राम शरण के अनुसार राजस्थान में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच चुका है। पिछले साल तापमान 40 से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच था और हर साल इसमें बढ़ोतरी हो रही है।
लोको पायलट बार-बार अधिकारियों को बताते रहे हैं कि ट्रेन के इंजन का तापमान इन परिवेशी तापमानों से 5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा होता है। फिर भी, इंजन केबिन में इस तापमान को मापने के लिए एक भी थर्मामीटर नहीं लगाया गया है।
AILRSA ने रेलवे से अनुरोध किया है कि वह संबंधित अधिकारियों और लोको शेड पर्यवेक्षकों को निर्देश दे कि वे गर्मी के मौसम में इंजन में यात्रा करें, विशेष रूप से 12-16 घंटे तक और वह भी WAG 9 (बिना AC) लोको में, ताकि लोको पायलटों की परेशानी को समझ सकें।
AILRSA ने मांग की है कि लोको केबिन में AC की विफलता को लोको विफलता माना जाना चाहिए, क्योंकि लोको पायलटों के लिए चलती ट्रेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 40-50 डिग्री सेल्सियस पर काम करना मुश्किल होता है।