बिजली के निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष का लोगों ने क्यों समर्थन करना चाहिये?

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉंग्रेस, उत्तर प्रदेश का वक्तव्य

बिजली बचाओ, देश बचाओ!

निजीकरण के ख़िलाफ़ जन-समर्थन क्यों ज़रूरी है?

जब बिजली कर्मचारियों का आन्दोलन सड़कों पर उतरता है, तो यह सिर्फ उनकी नौकरी की लड़ाई नहीं होती — यह देश के हर आम नागरिक के अधिकारों की लड़ाई होती है। बिजली जैसी मूलभूत सेवा का निजीकरण सिर्फ कर्मचारियों के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी एक बड़ा खतरा है। आइए समझते हैं कि क्यों हमें बिजली कर्मचारियों के इस संघर्ष का समर्थन करना चाहिए:

1. मनमाने दरों का खतरा
निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है, सेवा देना नहीं। जैसे ही बिजली निजी हाथों में जाएगी, दरें मनमाने ढंग से तय की जाएंगी। ग्रामीण उपभोक्ता, छोटे दुकानदार, किसान और निम्न मध्यमवर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे। अभी तक नियामक आयोगों के ज़रिए दरों पर नियंत्रण है, लेकिन निजी कंपनियों की लॉबी के सामने यह नियंत्रण भी कमजोर पड़ सकता है।

2. सब्सिडी पर गाज
आज गरीबों और किसानों को बिजली पर सब्सिडी मिलती है — यह राज्य सरकारें देती हैं। निजीकरण के बाद कंपनियां यह कह सकती हैं कि वे घाटे का सौदा नहीं करेंगी। ऐसे में या तो सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा, या उपभोक्ताओं को ज़्यादा बिल भरना पड़ेगा। यानी गरीब की जेब पर सीधा वार!

3. क्रॉस सब्सिडी का अंत
अभी व्यवस्था ये है कि औद्योगिक उपभोक्ताओं से ज़्यादा दर ली जाती है ताकि घरेलू और किसान उपभोक्ताओं को राहत दी जा सके। इसे क्रॉस सब्सिडी कहते हैं। निजी कंपनियाँ इस व्यवस्था को खत्म कर देंगी क्योंकि उनका मकसद मुनाफा है, सामाजिक जिम्मेदारी नहीं। इसका असर सीधे गरीब और ग्रामीण जनता पर पड़ेगा।

4. सेवा में गिरावट, शिकायत का कोई मंच नहीं
बिजली बोर्ड या सरकारी कंपनियों में अगर सेवा खराब होती है तो उपभोक्ता शिकायत कर सकते हैं, अधिकारियों पर जवाबदेही होती है। लेकिन निजी कंपनियों में शिकायतें अक्सर अनसुनी रहती हैं। निजीकरण के बाद सेवा की गुणवत्ता भी गिर सकती है — कटौती, खराब बिलिंग, मरम्मत में देरी जैसी समस्याएँ आम होंगी।

5. श्रमिकों की छंटनी और अस्थिर रोज़गार
बिजली कर्मचारियों की छंटनी और ठेका प्रथा बढ़ेगी। अनुभवी कर्मचारी हटाए जाएंगे, और सस्ते ठेका मजदूर लगाए जाएंगे। इससे न केवल श्रमिकों की जिंदगी असुरक्षित होगी, बल्कि बिजली व्यवस्था की गुणवत्ता और सुरक्षा भी प्रभावित होगी।

6. दूरदराज़ क्षेत्रों में बिजली पहुँचाना होगा कठिन
निजी कंपनियाँ सिर्फ मुनाफे वाले इलाकों में निवेश करना चाहेंगी। ग्रामीण, पहाड़ी और दूरस्थ क्षेत्रों में बिजली पहुँचना उनके एजेंडे में नहीं होगा। इससे असमानता बढ़ेगी — जहां ज़रूरत सबसे ज़्यादा है, वहां बिजली सबसे महंगी या अनुपलब्ध होगी।

7. सार्वजनिक नियंत्रण का अंत = लोकतंत्र पर चोट
बिजली जैसी सार्वजनिक सेवा पर जब तक जनता का, निर्वाचित सरकारों का नियंत्रण रहता है, तब तक जनता की ज़रूरतें प्राथमिकता में होती हैं। लेकिन निजीकरण के बाद निर्णय कॉरपोरेट बोर्डरूम में होंगे, जन प्रतिनिधियों की नहीं चल सकेगी। यानी यह लोकतांत्रिक जवाबदेही को भी कमजोर करेगा।

समर्थन क्यों ज़रूरी है?

बिजली कर्मचारियों का आन्दोलन इस लूट और अन्याय के खिलाफ चेतावनी है। वे अपनी रोज़ी-रोटी के साथ-साथ जनता के हक़ की भी लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर आज जनता साथ नहीं देगी, तो कल सबको निजीकरण की कीमत चुकानी पड़ेगी — महंगे बिलों, अनियमित सप्लाई, और उपेक्षा के रूप में।

इसलिए आज की सबसे ज़रूरी पुकार है —

“बिजली कर्मचारियों का साथ दो, निजीकरण को मात दो!”

बिजली बचाओ, देश बचाओ।

यह सिर्फ नारा नहीं, हमारे भविष्य की ज़िम्मेदारी है।

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