रक्षक यंत्र

कविता के रचनाकार: पवन कुमार सिंह (कीमैन) पूर्वोत्तर रेलवे, लखीमपुर

सम्पूर्ण भारतीय रेलवे के ट्रैकमैन को समर्पित

रोज़मर्रा कि तरह,
प्रातः अपने कर्तव्य पथ पर चल दिया।
जान हथेली पर लेकर,
अपने मंजिल के तरफ निकल लिया।।

कर्तव्य पथ पर,
घर से जब निकला तो,
भयभीत परिवार को भरोसा दिया।
इस उम्मीद के साथ,
जल्दी घर वापस आ जाएंगे,
परिवार से वादा किया।।

अपने साथियों का टुकड़ों मे,
कटे-फटे, चिथड़े लाशों को देखकर,
मन डर व सहम जाता है।
अपने कर्तव्य पथ से वापस,
घर आऊंगा कि नहीं,
सोच-सोच कर मन घबराता है।।

शीश पर नित्य मौत मंडराती है,
पर हम मौत के साए में मग्न,
कर्तव्य पथ पर चलते रहते हैं।
एक-एक रोज अपनी जिंदगी,
जीने की कोशिश करते रहते हैं।।

जिस लौह-पथ का हम रोज,
उसकी ढाल बन के,
सेवक की तरह रक्षा करते हैं।
वही बेरहम पटरी हमको,
ऐसी दर्दनाक मौत देगी
जिसकी कभी नहीं कल्पना करते है।।

मौत भी ऐसी ना आए,
जो टुकड़ों में परिवार को लाशें मिले।
पर ऐसी दर्दनाक मौत के बाद भी,
हमारा कहीं कोई नाम नहीं,
इसके जिम्मेदार कौन है,
रेल प्रशासन के पास जवाब नहीं।।

जो तेरी बंदगी कर,
दिन रात तेरी सेवा करता।
तूने अपने ही सेवक को,
मौत के आगोश में…ले लिया।।
रोज-रोज मैं विधाता से यही कहता रहता हूं।
शत्रु को भी ऐसी मौत ना दे यही दुआ करता हूं।।

मुझे भी जीने की इच्छा करता है।
रेल प्रशासन हमें रक्षक यंत्र क्यों नहीं देता है।।
रेल प्रशासन हमें रक्षक यंत्र क्यों नहीं देता है…..

रचनाकार:-  पवन कुमार सिंह (कीमैन), पूर्वोत्तर रेलवे, लखीमपुर की कलम से

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments