उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष का समर्थन करें!

कामगार एकता कमेटी (KEC) का आह्वान, 22 जून 2025

उत्तर प्रदेश में पिछले करीब 200 दिनों से बिजली के निजीकरण के ख़िलाफ़ वीरतापूर्ण संघर्ष चल रहा है। यह संघर्ष केवल निजीकरण के लिए लक्षित दो वितरण कंपनियों – पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम, के मज़दूरों के हितों की रक्षा तक सीमित नहीं है। यह उन सभी किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों के हितों की रक्षा का संघर्ष भी है, जिन्हें सस्ती बिजली आपूर्ति की आवश्यकता है।

बिजली उपभोक्ताओं से व्यापक संपर्क स्थापित करने और इस संघर्ष में उनके परिवार के सदस्यों को शामिल करने की दिशा में बिजली मज़दूरों द्वारा जबरदस्त प्रयास किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में निजीकरण के विरोध में इस अभियान के तहत सफलतापूर्वक महापंचायतें आयोजित की गई हैं, जिनमें हजारों बिजली उपभोक्ताओं ने भाग लिया है। 22 जून को लखनऊ में एक विशाल बिजली महापंचायत हुई है, जिसका आयोजन मज़दूर यूनियनों, किसान यूनियनों, उपभोक्ता समूहों और अन्य जन संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।

आधुनिक परिस्थितियों में बिजली, जीवन की एक मूलभूत आवश्यकता है। किफ़ायती दर पर विश्वसनीय बिजली आपूर्ति की उपलब्धता एक सर्वव्यापी मानव अधिकार है। यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि यह अधिकार सभी के लिए सुनिश्चित हो। निजीकरण का उद्देश्य बिजली को अधिकतम पूंजीवादी मुनाफ़े के स्रोत में बदलना है। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिससे न केवल नौकरियां जाएंगी और बिजली मज़दूरों का और अधिक शोषण होगा, बल्कि अधिकांश किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों के लिए बिजली पहुंच से बाहर हो जाएगी।

बताया गया है कि यूपी सरकार का लक्ष्य दिवाली 2025 तक दोनों वितरण कंपनियों (पूर्वांचल और दक्षिणांचल) का निजीकरण पूरा करना है। कम से कम आठ पूंजीवादी इजारेदार कंपनियों ने इन कंपनियों में बड़े हिस्से की हिस्सेदारी के लिए बोली लगाने में रुचि दिखाई है। इनमें टाटा, अडानी समूह और आरपी-संजीव गोयनका समूह शामिल हैं। ये इजारेदार पूंजीपति 51 प्रतिशत के मालिक बनना चाहते हैं, जबकि राज्य के स्वामित्व वाली यूपीपीसीएल 49 प्रतिशत स्वामित्व बनाए रखेगी।

मज़दूरों की एकजुट कार्रवाई के बाद, यूपी सरकार ने 2018 और 2020 में बिजली मज़दूरों के प्रतिनिधि संघों और यूनियनों को लिखित आश्वासन दिया था कि उन्हें विश्वास में लिए बिना वितरण कंपनियों का कोई भी “सुधार/निजीकरण” नहीं किया जाएगा। यूपी सरकार का नवीनतम क़दम इन लिखित आश्वासनों का पूर्ण उल्लंघन है।

बिजली मज़दूरों ने बताया है कि यूपीपीसीएल वितरण कारोबार के घाटे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए आंकड़ों में हेराफेरी कर रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि सार्वजनिक कंपनियों और उनकी संपत्तियों को उनके वास्तविक मूल्य, जो कि हजारों करोड़ रुपये है, उससे कहीं कम क़ीमत पर निजी कंपनियों को सौंपने को सही ठहराया जा सके।

यूपीपीसीएल ने एक कठोर आदेश जारी किया है, जिसमें कंपनी प्रबंधकों को निजीकरण के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले बिजली मज़दूरों और इंजीनियरों को मनमानी से बर्खाश्त करने, हटाने और पद घटाने का अधिकार दिया गया है। उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने संघर्षरत मज़दूरों को डराने के लिए एस्मा (आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम) भी लगाया है। इसका मज़दूरों ने विरोध किया है और चेतावनी दी है कि इस तरह के उत्पीड़न को चुपचाप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने घोषणा की है कि अगर उत्तर प्रदेश में उनके साथियों पर हमला हुआ तो देशभर के बजली क्षेत्र के 27 लाख मज़दूर सड़कों पर उतरेंगे।

उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, चंडीगढ़ और पुडुचेरी सहित कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली क्षेत्र के मज़दूरों ने समर्थन दिया है। इसके अलावा, 16 किसान संगठन, व्यापारी संगठन, छात्र संगठन, जन अधिकार संगठन, मंडी मज़दूर और अन्य मज़दूर संगठन भी समर्थन में आगे आए हैं।

सत्ताधारी पूंजीपति वर्ग द्वारा बिजली वितरण के निजीकरण का प्रयास बहुत लंबे समय से चल रहा है, जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में विश्व बैंक के सहयोग से हुई थी। इसे केवल कुछ राज्यों में सीमित सफलता मिली है। बिजली संशोधन विधेयक नामक एक केंद्रीय क़ानून लाने का प्रयास अब तक सफल नहीं हो पाया है, क्योंकि मज़दूरों और किसानों दोनों ने इसका कड़ा विरोध किया है। सत्ताधारी वर्ग एक बार फिर इस कार्यक्रम को कुछ ख़ास राज्यों में आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उत्तर प्रदेश में संघर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश में सबसे बड़ा वितरण नेटवर्क वाला राज्य है।

बिजली वितरण के निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष एक साझा संघर्ष है जो इजारेदार पूंजीपतियों और अधिकतम मुनाफ़े के लिए सार्वजनिक संपत्तियों और सेवाओं का निजीकरण करने के उनके एजेंडे के ख़िलाफ़ निर्देशित है।

कामगार एकता कमेटी उत्तर प्रदेश में दक्षिणांचल और पूर्वांचल वितरण निगम के निजीकरण के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए सभी वर्गों के लोगों से बिना शर्त समर्थन देने का आह्वान करती है। हम राष्ट्र-विरोधी, मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी और जन-विरोधी निजीकरण के कार्यक्रम को तत्काल रोकने और उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियों के मज़दूरों पर थोपे गए कठोर सेवा आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग करते हैं।

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