वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट के संवाददाता की रिपोर्ट
वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट, IT यूनियनों और अन्य मज़दूर संगठनों के साथ मिलकर, कर्नाटक सरकार के उस क़दम की कड़ी निंदा करता है, जिसमें दैनिक काम के घंटों को 10 से बढ़ाकर 12 किया गया है और ओवरटाइम काम की वर्तमान सीमा को 3 महीने की अवधि में 50 घंटे से बढ़ाकर 144 घंटे किया गया है। अन्य प्रस्तावों के अलावा, यह प्रस्तावित संशोधन, IT और ITES कंपनियों को महिलाओं को रात की पाली में काम करने के लिए मजबूर करने की अनुमति देगा।
बताया जा रहा है कि सरकार, कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1960 में संशोधन करने के लिए, कंपनियों और यूनियनों के साथ बातचीत कर रही है, ताकि इन संशोधनों और अन्य मज़दूर-विरोधी प्रस्तावों को लागू किया जा सके। यह संशोधन, IT प्रतिष्ठानों, बार, पब, रेस्तरां और खुदरा दुकानों पर लागू होगा।
इस अधिनियम की वर्तमान धारा 7 के अनुसार, प्रतिदिन काम करने के घंटे, नौ घंटे से अधिक नहीं हो सकते और ओवरटाइम सहित कुल घंटे प्रतिदिन 10 घंटे से अधिक नहीं हो सकते। अधिनियम में तीन महीने की अवधि में ओवरटाइम कार्य की ऊपरी सीमा भी 50 घंटे तक, निर्धारित की गई है।
त्रिपक्षीय वार्ता में उपस्थित, कर्नाटक राज्य IT/ITES कर्मचारी यूनियन (KITU) के प्रतिनिधियों ने प्रस्तावित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई है, जबकि पूंजीपतियों ने इस क़दम का उत्साहपूर्वक समर्थन किया है।
KITU ने बताया है कि यदि यह प्रस्तावित संशोधन लागू किया जाता है, तो हक़ीक़त में, प्रतिदिन काम करने के घंटे, 8 घंटे से बढ़कर 12 घंटे हो जाएंगे। यह कंपनियों को वर्तमान की मौजूदा तीन शिफ्ट प्रणाली के बजाय दो शिफ्ट की प्रणाली को अपनाने का मौका देगा। इसका नतीजा यह होगा कि मज़दूरों का एक वर्ग, अपनी मौजूदा नौकरियों से बाहर कर दिया जाएगा, जबकि जो मज़दूर अपनी नौकरी पर रहेंगे, उनका शोषण और भी अधिक बढ़ जाएगा।
यह ध्यान देने वाली बात है कि पूरे देश के लिए श्रम-संहिताओं की अधिसूचना लंबित होने के कारण, विभिन्न राज्य सरकारों ने, इस तरह के क़ानून बनाने की दिशा में क़दम बढ़ाए हैं, जो काम के घंटे बढ़ाएंगे, एवं यूनियन बनाने और हड़ताल करने पर रोक लगाएंगे। हाल ही में, आंध्र प्रदेश में टीडीपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने “बिजिनेस करने में आसानी और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए” अधिकतम कार्य घंटों को 9 से बढ़ाकर 10 घंटे प्रतिदिन करने का फै़सला किया है।
मज़दूर गुलाम नहीं हैं। वे हर दिन एक निश्चित अवधि के लिए पूंजीपतियों को अपनी श्रम-शक्ति बेचते हैं। बाकी समय मज़दूर का अपना है जिसे वह अपनी मर्ज़ी से अन्य गतिविधियों में लगा सकता है। इसलिए प्रतिदिन काम करने के घंटों पर सख़्त सीमा, सभी मज़दूरों का एक मूलभूत अधिकार है। यह अधिकार मज़दूर वर्ग के वर्षों के संघर्ष द्वारा ही जीता गया था। 8 घंटे प्रतिदिन काम करने की सीमा, सभी क्षेत्रों और मज़दूरों की श्रेणियों के लिए उनका एक सार्वभौमिक अधिकार है।
इस अधिकार का कई क्षेत्रों में – संगठित और असंगठित/गिग क्षेत्र दोनों में – खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। कई मज़दूर, विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में जहां घर से काम करना (वर्क फ्रॉम होम) संभव है, अक्सर खुद को ऑफ-ऑवर के दौरान काम करने के लिए मजबूर पाते हैं। एक वैश्विक नौकरी मंच द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 88 प्रतिशत हिन्दोस्तानी मज़दूरों से उनके नियोक्ता नियमित कार्य घंटों के बाहर संपर्क करते हैं, जिनमें से 85 प्रतिशत ने कहा कि सार्वजनिक अवकाश या बीमार छुट्टी के दौरान भी उनसे यह संपर्क जारी रहता है। इन मज़दूरों में से 79 प्रतिशत ने चिंता व्यक्त की कि काम के घंटों के बाद उनको सम्पर्क करने पर, उनके जवाब न देने से, उनके करियर की प्रगति प्रभावित हो सकती है, जिसमें उनकी पदोन्नति न होना और उनकी प्रतिष्ठा को नुक्सान होना, शामिल है।
सरकार, इस तरह की अमानवीय हालातों को सामान्य बनाने का प्रयास कर रही है, जिसके नतीजे, मज़दूरों, विशेषकर युवाओं के लिए बहुत ही भयंकरमय होंगे। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार, ओवरटाइम से जुड़ी मौतों के मामले में हिन्दोस्तान सभी देशों में सबसे ऊपर है। एक अन्य रिपोर्ट (“स्टेट ऑफ इमोशनल वेलबीइंग रिपोर्ट 2024”) के अनुसार, 25 वर्ष से कम आयु के 90 प्रतिशत मज़दूर, चिंता से ग्रस्त हैं। आईटी क्षेत्र में अत्यधिक काम के दबाव के कारण, मौतें और आत्महत्याएं, एक आम बात होती जा रही हैं। नॉलेज चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (KCCI) की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि आईटी क्षेत्र के 45 प्रतिशत मज़दूर मानसिक दबाव का सामना कर रहे हैं और 55 प्रतिशत मज़दूर विभिन्न शारीरिक बीमारियों से पीड़ित हैं और इसमें काम करने की परिस्थितियों और लंबे काम के घंटों को, इस तरह की हालातों का एकमात्र कारण बताया गया है। काम के घंटे बढ़ाने से यह स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी।
वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट IT क्षेत्र के सभी मज़दूरों से एकजुट होकर श्रम-क़ानूनों में प्रस्तावित संशोधनों का विरोध करने का आह्वान करता है। सभी क्षेत्रों और देशभर के मज़दूरों को राज्य सरकारों के ऐसे क़दमों की निंदा करने और 8 घंटे के कार्य दिवस के अपने अधिकार को बनाए रखने के लिए इस संघर्ष में एकजुट होना चाहिए।