मज़दूर संगठनों ने दिल्ली सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में प्रस्तावित बदलावों का विरोध किया

मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

देश की राजधानी में ट्रेड यूनियनें और मज़दूर संगठन, दिल्ली सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में प्रस्तावित बदलावों के विरोध में आगे आए हैं।

दिल्ली सरकार के प्रस्तावित संशोधन, सभी प्रकार के कार्यो के लिए, सभी संस्थानों में महिलाओं को रात की पाली में काम करने की अनुमति देने के लिए है। इससे पूंजीपति महिलाओं की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए किसी भी उपाय के बिना, महिलाओं को रात में काम करने के लिए मजबूर कर पायेंगे।

अधिकांश मेहनतकश महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मज़दूरी पर काम करना पड़ता है और आधिकारिक तौर पर यह निर्धारित न्यूनतम मज़दूरी से भी कम होती है। अधिकांश कार्यस्थलों में शौचालय की सुविधा, आराम के लिए कमरे, पर्याप्त पानी, स्वच्छता की कमी होती है, जो महिला मज़दूरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बच्चों के देखभाल की सुविधाओं की कमी मेहनतकश महिलाओं को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। कार्यस्थल पर भेदभाव और यौन उत्पीड़न लगातार चलते आ रहे हैं। इसके अलावा, महिलाओं के ख़िलाफ़ रिपोर्ट किए गए अपराधों की सबसे बड़ी संख्या के लिए दिल्ली पहले से ही बदनाम है।

अगर महिलायें रात की पाली में काम करने से इनकार करती हैं या अपनी काम की भयानक परिस्थितियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती हैं तो उनको अपनी रोज़ी रोटी खोने का ख़तरा सबसे अधिक होता है। इन परिस्थितियों में, कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षा और साथ ही आने-जाने के लिये सुरक्षित यात्रा को सुनिश्चित किए बिना उनके लिए रात की पाली को वैध बनाना, पूरी तरह से मज़दूर और महिला विरोधी क़दम है। इसका उद्देश्य पूंजीपतियों को एक ऐसा कार्यबल प्रदान करना है जिसका वे अति शोषण कर सकें, ताकि उनके लिए अधिकतम मुनाफ़े की गारंटी दी जा सके।

औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत, 100 मज़दूरों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों में मज़दूरों की छंटनी करने और कंपनी को बंद करने के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता थी। अब यह सीमा 200 मज़दूरों तक बढ़ाने का प्रस्ताव है। इससे पूंजीपतियों के लिए हर समय अधिकतम लाभ सुनिश्चित करने के लिए, अपनी इच्छा अनुसार मज़दूरों को काम पर रखना या निकालना आसान हो जाएगा।

दिल्ली दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम में संशोधन किया जाना है ताकि यह केवल उन दुकानों और प्रतिष्ठानों पर लागू हो जो दस या अधिक मज़दूरों को रोज़गार देते हैं।
वर्तमान में यह अधिनियम उन सभी दुकानों पर भी लागू होता है जहां एक भी मज़दूर कार्यरत है। प्रस्तावित संशोधन पूंजीवादी मालिकों को खुदरा क्षेत्र के अधिकांश मज़दूरों को किसी भी अधिकार से वंचित करने में सक्षम करेगा, जिसमें कार्य दिवस की अवधि पर एक सीमा भी शामिल है।

दिल्ली के अधिकांश औद्योगिक मज़दूर सबसे ख़तरनाक और भीषण परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर हैं। कार्यस्थलों पर सुरक्षा के कोई नियम लागू नहीं होते हैं। कारखाने में आग और अन्य औद्योगिक दुर्घटनाएं नियमित रूप से सैकड़ों मज़दूरों की जान ले रही हैं, और सैकड़ों अन्य लोगों को गंभीर रूप से पूरे जीवन के लिये जख़्मी कर रही हैं। मज़दूर संगठनों ने बताया है कि कुछ समय पहले ही अग्निशमन विभाग को सरकारी निर्देश दिए गए हैं कि कारखानों के सुरक्षा ऑडिट के लिए निजी एजेंसियों को नियुक्त किया जाए। इसका सीधा मतलब है कि सरकार कारखानों में मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी सभी ज़िम्मेदारी को त्याग रही है।

दिल्ली सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में प्रस्तावित संशोधन पूरी तरह से मज़दूर-विरोधी हैं। वे 2019 और 2020 में केंद्र सरकार द्वारा घोषित किए गए चार मज़दूर-विरोधी श्रम कोड के बिल्कुल समान हैं। देशभर की राज्य सरकारें पूंजीपतियों के पक्ष में श्रम क़ानूनों में संशोधन करने के लिए एक-दूसरे से दौड़ में लगी हैं। ये सब मज़दूरों के अधिक शोषण को वैध बनाने और पूंजीपतियों के लिए मुनाफ़े की उच्चतम दर की गारंटी देने के लिए किया जा रहा है।

दिल्ली के संयुक्त ट्रेड यूनियन फ़ोरम ने दिल्ली सरकार के श्रम क़ानूनों में प्रस्तावित बदलावों के खि़लाफ़ अपना कड़ा विरोध जताया है। दिल्ली की मुख्यमंत्री, श्रीमती रेखा गुप्ता को 7 जुलाई को दिये गये एक संयुक्त ज्ञापन में, उन्होंने बताया है कि प्रस्तावित संशोधन उन सभी अधिकारों पर क्रूर हमला है, जो मज़दूरों ने वर्षों के संघर्ष के ज़रिये हासिल किए हैं। उन्होंने सरकार से समान काम के लिए समान वेतन और कार्यस्थल के साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया है। उन्होंने मांग की है कि सरकार तुरंत इन प्रस्तावित परिवर्तनों को वापस ले, और मौजूदा श्रम क़ानूनों के तहत न्यूनतम मज़दूरी और मज़दूरों के सभी अधिकारों को सख़्ती से लागू करे।

ज्ञापन के हस्ताक्षरकर्ता थे – ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC), सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (AICCTU), हिंद मजदूर सभा (HMS), मज़दूर एकता कमेटी (MEC), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (AIUTUC), यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (UTUC), ट्रेड यूनियन कॉर्डिनेशन सेंटर (TUCC) लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (LPF), इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC), और इंडियन काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियनंस (ICTU)।

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments