छत्तीसगढ़ में गरीब-विरोधी और किसान-विरोधी बिजली दरों में वृद्धि

कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग की मंज़ूरी से बिजली की दरों में बढ़ोतरी की घोषणा की है, जिसका सबसे ज़्यादा असर छोटे और कृषि उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। बढ़ी हुई बिजली दरें जुलाई महीने से ही लागू हो गई हैं।

इन बढ़ी हुई दरों से राज्य सरकार को सालाना 523 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा, जिसमें से 330 करोड़ रुपये घरेलू उपभोक्ताओं से और शेष औद्योगिक उपभोक्ताओं से वसूले जाएँगे।

घरेलू उपभोक्ताओं के लिए दरों में औसतन 15 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की गई है। परंतु, सबसे ज़्यादा बोझ उन लोगों पर पड़ा है जो गरीब होने के कारण कम बिजली की खपत करते हैं। 100 यूनिट तक बिजली की खपत करने वालों, जिनमें एकल बत्ती कनेक्शन वाले, गरीबी रेखा से नीचे और निम्न आय वर्ग के लोग शामिल हैं, पर 20 पैसे प्रति यूनिट की अतिरिक्त बढ़ोतरी की गई है, जबकि 100 यूनिट से ज़्यादा खपत करने वालों पर सिर्फ़ 10 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी की गई है। औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए भी यह बढ़ोतरी सिर्फ़ 10 पैसे प्रति यूनिट की है।

सबसे ज़्यादा मार किसानों पर पड़ेगी, जिनके लिए 50 पैसे प्रति यूनिट की दर बढ़ा दी गई है। इससे राज्य में कृषि संकट और बढ़ेगा, क्योंकि उत्पादन लागत में भारी वृद्धि होगी। इस साल किसान पहले से ही DAP खाद की कमी और उसकी कालाबाज़ारी से जूझ रहे हैं और उनकी खाद की कीमत दोगुनी हो गई है।

यह स्पष्ट है कि दरों में वृद्धि सब्सिडी वाली बिजली के प्रावधान को रोकने की दिशा में एक कदम है। टाटा, अडानी, टोरेंट और अन्य बड़ी बिजली इजारेदार कंपनियाँ चाहती हैं कि सरकारी वितरण कंपनियों के निजीकरण से पहले बिजली आपूर्ति पर सभी सब्सिडी समाप्त कर दी जाएँ। छत्तीसगढ़ सरकार स्पष्ट रूप से इस दर वृद्धि के माध्यम से बिजली क्षेत्र के निजीकरण की ज़मीन तैयार कर रही है। राज्य सरकार ने प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाकर निजीकरण की दिशा में एक और कदम बढ़ाया है।

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