शुभम कोठारी, ‘अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ’ कृति समिति
यह रिपोर्ट पहले जन स्वास्थ्य अभियान (JSA) ने उनकी वेबसाइट ‘अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ!’ – Jan Swasthya Abhiyan पर प्रकाशित की थी।
(जन स्वास्थ्य अभियान के बारे में जानने के लिए रिपोर्ट के अंत में नोट देखिए)
स्वास्थ्य है सबका अधिकार! बंद करो इसका व्यापार!
अस्पताल हैं जीने के लिए – नहीं देंगे मुनाफ़े के लिए!
रुग्णालय आमच्या हक्काचे – नाही कुणाच्या मालकीचे!
ऐसे कई नारे 7 जुलाई 2024 को मुंबई के मानखुर्द-गोवंडी इलाके में हुए जबरदस्त प्रदर्शन के दौरान गूंजे। 300 से ज़्यादा स्थानीय लोगों ने M-पूर्व वार्ड कार्यालय के बाहर रैली निकाली और विरोध दर्ज किया। उनकी मांग साफ थी: शताब्दी अस्पताल और लल्लुभाई कंपाउंड सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल के निजीकरण को तुरंत रोका जाए। यह प्रदर्शन “अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ कृति समिति” के बैनर तले 25 से ज्यादा संगठनों के गठबंधन द्वारा आयोजित किया गया था। इसका मकसद मुंबई में तेज़ी से बढ़ते कॉर्पोरेट नियंत्रण के खिलाफ सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की रक्षा करना है। यह प्रदर्शन बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) की उस योजना का जमीनी स्तर से विरोध है, जिसमें महत्वपूर्ण सार्वजनिक अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया PPP (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के नाम पर अपनाई जा रही है।
सबसे ज़रूरतमंद लोगों की स्वास्थ्य सेवाएँ निशाने पर
इस संघर्ष के केंद्र में दो प्रमुख अस्पताल हैं—शताब्दी म्युनिसिपल जनरल अस्पताल (गोवंडी) और लल्लुभाई कंपाउंड अस्पताल (मानखुर्द)। ये दोनों अस्पताल M पूर्व वार्ड की जनता की सेवा के लिए हैं, जो वार्ड मुंबई की ‘मायानगरी’ में स्वास्थ्य और सामाजिक विषमता का सबसे कड़वा सच दिखाता है। इस वार्ड में मुंबई की आबादी का सिर्फ 6.7% हिस्सा रहता है, लेकिन यहां शहर के 16% से ज्यादा माता मृत्यु होते हैं । पिछले दस वर्षों में टीबी के मामले 300% बढ़ गए हैं। 50% से ज्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। डंपिंग ग्राउंड और बायोमेडिकल वेस्ट प्लांट की वजह से दमा और सांस की बीमारियां आम हैं।
यह एक ऐसा इलाका है जहाँ ज़्यादातर लोग झुग्गी – झोपड़ियों में रहते हैं, दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं, और जिन्हे दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल होता है। ऐसे में मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण इलाज देने वाले सरकारी अस्पताल लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बने हुए हैं। लेकिन BMC इन सार्वजनिक संस्थानों को सक्षम करने के बजाय उन्हें बेचने की तैयारी में लगी है। पिछले कुछ वर्षों में BMC ने स्वास्थ्य क्षेत्र में करीब 20 PPP प्रोजेक्ट्स को लागू किया है, जिनमें निजी कंपनियों को सरकारी अस्पतालों का संचालन, प्रबंधन और मुनाफा कमाने का अधिकार दिया गया है। ये अस्पताल जनता के टैक्स के पैसे से बने हैं, पर आज इनपर निजी कंपनियों का कब्जा हो रहा है।
सत्ताधारियों ने गढ़ा है यह संकट
BMC का निजीकरण मॉडल दो चरणों में लागू किया जाता है। पहले चरण में सरकारी अस्पतालों से डॉक्टर, नर्स और ज़रूरी संसाधन कम किए जाते हैं, और प्रबंधन के बारे में लापरवाही बरती जाती है। फिर दूसरे चरण में, खराब हालात का बहाना बनाकर अस्पतालों को PPP मॉडल के तहत निजी कंपनियों को सौंप दिया जाता है।
BMC के द्वारा खुद के ही अस्पतालों को ‘बिगाड़ने’ के तमाम उदाहरण हैं। शताब्दी अस्पताल में आज 31% और देवनार मैटरनिटी अस्पताल में 46% पद खाली हैं। BMC के कुल अस्पतालों में औसतन 36% पद खाली हैं। यह स्थिति तब है जब मुंबई महानगर क्षेत्र में 12 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं , जहाँ हर साल 2000 से ज्यादा MBBS डॉक्टर तैयार होते हैं। अगर BMC चाहे तो इन सभी पदों को भरकर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत कर सकती है।
लेकिन नियमित भर्ती, ढाँचे में विस्तार और सार्वजनिक सेवाओं को बढ़ाने की बजाय, BMC जान बूझकर स्टाफ की कमी और खराब व्यवस्थाएं बनाकर निजीकरण को उचित ठहराने की कोशिश कर रही है। BMC और व्यावसायिक हितों की सांठगांठ से यह संकट गढ़ा गया है। लोगों के मन में अस्पतालों के प्रति अपनापन और भरोसा कमजोर किया जा रहा है, ताकि इसके बाद इन्हें कंपनियों के हाथों में सौंपा जा सके।
जनता ने उठाई आवाज़
अब मानखुर्द और गोवंडी के लोग इस साजिश के खिलाफ खड़े हो रहे हैं, और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की मांग कर रहे हैं। ‘अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ’ समिति में 25 से ज्यादा संगठन शामिल हैं—स्थानीय नागरिक समूह, मज़दूर यूनियनें, जन स्वास्थ्य अभियान-मुंबई के कार्यकर्ता, एनजीओ, प्रगतिशील राजनीतिक संगठन, और नगरपालिका स्वास्थ्य कर्मचारियों की यूनियनें भी इसमें शामिल हैं।
7 जुलाई को इन संगठनों ने एक बड़ी रैली का आयोजन किया, जो M पूर्व वार्ड कार्यालय तक गई। रैली में झुग्गियों के रहवासी, महिलाएं और बुजुर्गों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। स्थानीय निवासियों ने बताया कि वे पूरी तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर हैं, पर आज इन सेवाओं की स्थिति गंभीर है और इन्हे सुधारने की बेहद जरूरत है। महिलाओं ने कहा कि निजीकरण से उन्हें सबसे ज्यादा डर है, क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे निजी अस्पतालों में इलाज करा सकें। संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बताया कि शिक्षा, बिजली, बस सेवा, स्कॉलरशिप और सब्सिडी जैसे अन्य जन कल्याणकारी सेवाओं की तरह ही, अब स्वास्थ्य सेवाएं भी निजी हाथों में दी जा रही हैं।
आंदोलन की मुख्य मांगें
इस संघर्ष के तहत BMC और राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों के समक्ष छह प्रमुख मांगे रखी गई हैं—
- शताब्दी और लल्लुभाई कंपाउंड अस्पतालों सहित, मुंबई के किसी भी सरकारी अस्पताल को किसी भी प्रकार की निजीकरण प्रक्रिया, विशेषकर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल से तुरंत और पूरी तरह से बाहर किया जाए।
- M पूर्व वार्ड के सभी मैटरनिटी अस्पतालों में नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (NICU) तुरंत चालू की जाएं, और सभी खाली पद तुरंत भरे जाएं। महाराष्ट्र नगर मैटरनिटी होम को तुरंत दोबारा शुरू किया जाए।
- सभी सरकारी अस्पतालों में अगले 30 दिनों के भीतर मुफ्त डायग्नोस्टिक लैब सेवाएं शुरू की जाएं।
- अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में सभी रिक्त पदों के लिए 30 दिनों के भीतर विज्ञापन जारी कर 3 महीनों के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए।
- सभी महापालिका दवाखानों में रिक्त पद तुरंत भरे जाएं और मानकों के अनुसार हर 15,000 की जनसंख्या पर एक दवाखाने के अनुपात में आगामी 3 महीनों में 38 नए दवाखाने स्थापित किए जाएं।
- हर महीने वार्ड कार्यालय में सार्वजनिक समीक्षा बैठक हो, जिसमें जिम्मेदार स्वास्थ्य अधिकारी भाग लें और लोगों की शिकायतों को हाल किया जाए और सेवाओं को सुधारने के बारे में चर्चा करके निर्णय लिए जाएं।
हालाँकि प्रदर्शन की सूचना पहले ही दी गई थी, फिर भी BMC ने मौके पर वार्ड कार्यालय पर कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं भेजा। प्रदर्शनकारियों को बस यह भरोसा दिया गया कि वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक और बैठक होगी। लेकिन यह बेरुखी आंदोलन को नहीं रोक पाएगी। अब क्षेत्र की जनता आने वाले महीनों में और ज़्यादा तीव्र और संगठित आंदोलन की तैयारी कर रही है।
एकजुटता बढ़ाओ, संघर्ष को व्यापक बनाओ
अब यह ज़रूरी है कि मुंबई के अन्य सामाजिक संगठन भी इस संघर्ष का हिस्सा बनें। जन आरोग्य अभियान (JSA – महाराष्ट्र) ने हाल में ही इस आंदोलन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया है। मुंबई का यह निजीकरण सिर्फ एक स्थानीय मामला नहीं है—देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण, PPP के ज़रिए सेवाओं को बेचने की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर चल रही है। यह सब कुछ इस सच्चाई के बावजूद हो रहा है, कि ऐसे PPP मॉडल गरीबों को सेवा से बाहर कर देते हैं, इलाज महंगा हो जाता है, गुणवत्ता गिरती है, और जवाबदेही नष्ट हो जाती है। अब आंदोलनकारी आने वाले एक महीने में झुग्गियों में प्रचार अभियान चलाएंगे, और पूरे मुंबई में समिति का विस्तार करेंगे। जल्द ही एक जन सुनवाई भी वार्ड कार्यालय के सामने आयोजित की जाएगी, जहाँ अस्पतालों की हालत और मांगे सार्वजनिक रूप से रखी जाएंगी। ऐसी व्यापक रणनीति जरूरी है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के पीछे बहुत शक्तिशाली राजनीतिक और कॉर्पोरेट हित हैं। इन्हें रोकने के लिए बड़े और लंबे संघर्ष की जरूरत होगी।
जन स्वास्थ्य अभियान (JSA)
जन स्वास्थ्य अभियान (JSA) का गठन सन 2001 में हुआ था, जब 18 राष्ट्रीय नेटवर्कों ने मिलकर सन 2000 में देशभर में गतिविधियाँ आयोजित की थीं, जो दिसंबर 2000 में ढाका में आयोजित पहले वैश्विक जन स्वास्थ्य महासभा की तैयारी का हिस्सा थीं। JSA, वैश्विक जन स्वास्थ्य आंदोलन (People’s Health Movement – PHM) का भारतीय क्षेत्रीय मंच है।
आज, JSA में 21 राष्ट्रीय नेटवर्क और संगठन शामिल हैं, साथ ही राज्य स्तरीय JSA मंच भी हैं, जो देश के लगभग सभी राज्यों में सक्रिय हैं।
गोवंडी-मानखुर्द का यह संघर्ष हमें दिखाता है कि लोग अब स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अन्याय सहन नहीं करेंगे। वे संगठित हो रहे हैं, जागरूक हो रहे हैं, और अपने अधिकारों के लिए खड़े हो रहे हैं। यह सिर्फ मुंबई के दो अस्पतालों को बचाने की लड़ाई नहीं है, यह पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बचाने के लिए उभर रहे आंदोलन का एक नया और दमदार मोर्चा है।
(यह लेख सामूहिक आंदोलन पर आधारित है और इसमें ‘अस्पताल बचाओ, निजीकरण हटाओ’ कृति समिति की प्रेस विज्ञप्ति व अन्य दस्तावेज़ों का आधार लिया गया है। लेखन और संपादन में अभय शुक्ला का योगदान है।)