मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
हिन्दोस्तान के आईटी मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करने वाली टेक्नॉलिजी एम्पलॉयज़ सीनेट (एनआईटीईएस) ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को एक पत्र लिखकर टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) पर अपने मज़दूरों के प्रति दबाव और दंडात्मक व्यवहार करने का आरोप लगाया है।
टीसीएस ने 12 जून को एक नई बेंच नीति की घोषणा की। इस नीति के अनुसार, जिन मज़दूरों को साल में 35 दिन या सात सप्ताह से ज़्यादा कोई परियोजना आवंटित नहीं की जाती, तो उनके करियर में अपने वर्तमान पद से नीचे किये जाने या यहां तक कि निकाले जाने तक का ख़तरा बना रहेगा। वास्तव में, इस नीति ने परियोजनाओं के बीच काम कर रहे मज़दूरों पर डर की माहौल, अत्यधिक दबाव और मनोवैज्ञानिक बोझ डाला है। यदि मज़दूर किसी सौंपे हुए कार्य को पूरा करने के बाद, 35 दिनों के अंदर कोई नई परियोजना हासिल करने में असफल रहते हैं, तो उन पर इस्तीफ़ा देने का दबाव डाला जा रहा है।
टीसीएस जैसी कंपनियां दुनिया भर के ग्राहकों के लिए विभिन्न परियोजनाएं चलाती हैं। कंपनी प्रबंधन द्वारा मज़दूरों को एक परियोजना सौंपी जाती है। जब कोई परियोजना पूरी हो जाती है, तो उस परियोजना पर काम कर रहे मज़दूरों को बेंच पर बैठा दिया जाता है। जब तक उन्हें कोई नई परियोजना नहीं सौंपी जाती, तब तक उन्हें खाली रहने के लिए मजबूर किया जाता है।
नई नीति के अनुसार, मज़दूरों के पास 12 महीने की अवधि में कम से कम 225 बिल योग्य दिन या 45 ऐसे हफ़्ते होने चाहिएं और वे बेंच पर 35 दिन या सात हफ़्ते से ज़्यादा नहीं बिता सकते। मज़दूर परियोजनाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसका मतलब है कि उनके बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है। कुछ को ऐसी परियोजनाओं में धकेला जा रहा है जो उनके कौशल के अनुकूल नहीं हैं। कुछ मज़दूर ग्राहकों द्वारा लिये जाने वाले इंटरव्यू में रिजेक्ट हो रहे हैं, जबकि अन्य अपने गृह स्थान पर परियोजना नहीं ढूंढ पा रहे हैं। मज़दूरों को नयी परियोजना पाने की इस अवास्तविक समय सीमा को पूरा न करने पर बर्ख़ास्तगी और अनुभव से वंचित करने के पत्र जारी करने की बार-बार धमकियां मिल रही हैं। कुछ मामलों में, बेंच पर बैठे मज़दूरों से उनका वेतन वापस करने के लिए भी कहा जा रहा है।
साथ ही, बेंच पर बैठे मज़दूरों से लगातार उपलब्ध रहने, दैनिक टाइमशीट दर्ज़ करने, अनिवार्य शिक्षण घंटे पूरे करने और नई परियोजनाओं पर काम करने की अपेक्षा की जाती है। मज़दूरों पर अपने खाली समय में अपने कौशल को निखारने का लगातार दबाव रहता है। यह लगभग असंभव है जब उन्हें 10 घंटे काम करना पड़ता है और हर दिन अपने घर और कार्यस्थल के बीच दो या तीन घंटे यात्रा करनी पड़ती है।
टीसीएस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक ने कथित तौर पर कहा, “यह हमेशा से अपेक्षित रहा है कि सहयोगी अपने करियर की ज़िम्मेदारी लें। जहां मानव संसाधन विभाग प्रोजेक्ट प्लेसमेंट करने की कोशिश करता है, वहीं हम यह भी अपेक्षा करते हैं कि सहयोगी मौजूदा कार्यभार पूरा करने के बाद नए कार्यभार की तलाश में सक्रिय रूप से जुटेंगे।”
कंपनी में परियोजनाओं की कमी के लिए मज़दूरों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, यही वजह है कि मज़दूर बेंच पर होते हैं। मज़दूरों को “सहयोगी“ कहना गिग वर्कर्स को “सांझेदार” कहने जैसा है। काम के लिए नई परियोजनाएं ढूंढना मज़दूरों की ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती। यह कंपनी प्रबंधन की ज़िम्मेदारी है।
मज़दूर एकता कमेटी टीसीएस के मज़दूरों और सभी आईटी मज़दूरों के 8 घंटे के कार्यदिवस और रोज़ी रोटी की सुरक्षा के संघर्ष में साथ खड़ी है। मज़दूर वर्ग ने सभी मज़दूरों के लिए इन अधिकारों को हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष किया है और सभी आईटी मज़दूरों को उन पर हो रहे नए हमलों के मद्देनज़र अपने संघर्ष को तेज़ करने के लिए एकजुट होना चाहिए।