आंध्र प्रदेश में सरकारी मेडिकल कॉलेजों के निजीकरण के खिलाफ जनआंदोलन

लेखक: कामेश्वर राव और अभय शुक्ला

यह रिपोर्ट पहले जन स्वास्थ्य अभियान (JSA) ने उनकी वेबसाइट सरकारी मेडिकल कॉलेजों को, कंपनियों के हवाले करना बंद करो! – Jan Swasthya Abhiyan पर प्रकाशित की थी।

आंध्र प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से हज़ारों डॉक्टरों ने डिग्री हासिल की है, और वे आज देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चिकित्सा क्षेत्र में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं। यह सब उस दर्जेदार सरकारी मेडिकल शिक्षा की बदौलत है जो उन्हें बेहद कम खर्च में मिली। आज मैं आंध्र मेडिकल कॉलेज के सभी पूर्व छात्रों से यह अपील करता हूं कि वे यह याद रखें कि उन्हें जो शिक्षा और अवसर मिले, वह सार्वजनिक मेडिकल शिक्षा प्रणाली की वजह से था, और अब उन्हें आंध्र प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों के व्यवसायीकरण के खिलाफ संघर्ष को समर्थन देना चाहिए।

डॉ. पी. रामाराव, सेवानिवृत्त जिला मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी, आंध्र प्रदेश

एक जनविरोधी फैसला

पिछले कुछ वर्षों में भारत में एक खतरनाक ट्रेंड शुरू हुआ है – सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों को निजी कंपनियों के हवाले करने का। इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश सरकार ने 2025 की शुरुआत में 10 नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों को PPP मॉडल (पब्लिक–प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत कॉरपोरेट हाथों में सौंपने का ऐलान किया। सरकार ने पहले ही GO 107 और GO 108 के जरिए मेडिकल सीटों की फीस  रु12 लाख से रु 20 लाख प्रति वर्ष तक बढ़ा दी थी। इसका मतलब ये हुआ कि आंध्र प्रदेश में सरकारी कॉलेजों में पढ़ाई का कुल खर्च एक करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है! अब योजना है कि रु 500 करोड़ की लागत से बने इन कॉलेजों को 66 सालों के लिए कॉरपोरेट कंपनियों को सौंप दिया जाए।  सरकार का इरादा है कि दस नए सरकारी मेडिकल कॉलेजों को दीर्घकालीन आधार पर निजी कंपनियों को दे दिया जाए। लेकिन इस जनविरोधी फैसले के खिलाफ अब आंध्र प्रदेश में एक शक्तिशाली जनांदोलन खड़ा हो चुका है, जिसका असर राज्य की सीमाओं से भी परे महसूस किया जा रहा है।

क्या होगी निजीकरण की असली कीमत?

इस फैसले की तीखी आलोचना हो रही है, और इसके खिलाफ अब तीव्र विरोध शुरू हो गया है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता, छात्र संगठन, डॉक्टर्स और सामाजिक संगठन इसका पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं। प्रजा आरोग्य वेदिका (PAV) — जन स्वास्थ्य अभियान की आंध्र इकाई — इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही है। उनका कहना है कि 80% पैसा तो सरकार ही लगाएगी, और कॉरपोरेट सिर्फ 20% लाकर भी पब्लिक ज़मीन गिरवी रखकर पैसा उठाएंगे। लेकिन इस निर्णय का पूरा बोझ पड़ेगा छात्रों और मरीजों पर। PAV और अन्य आलोचकों का कहना है कि ये मॉडल न सिर्फ मेडिकल एजुकेशन को गरीब छात्रों के लिए महंगा बनाएगा, बल्कि मेरिट, आरक्षण और सरकारी जवाबदेही को भी खत्म करेगा। अब मेडिकल एजुकेशन एक भयंकर महंगा बिजनेस बनकर रह जाएगा।

आंदोलन की शुरुआत – लोग उतरे मैदान में

इस जनविरोधी फैसले के खिलाफ आंध्र प्रदेश में एक सशक्त और निरंतर जनआंदोलन खड़ा किया जा रहा है। इस साल की शुरुआत से ही प्रजा आरोग्य वेदिका ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में समन्वित कार्रवाई शुरू की है। 10 मार्च 2025 को स्वास्थ्य मंत्री को एक ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के व्यापारिकरण और स्वास्थ्य के अधिकार के उल्लंघन पर संवैधानिक चिंता जताई गई। 7 अप्रैल 2025 को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अनंतपुर और विशाखापत्तनम जैसे जिलों में हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया, जिसमें नागरिकों ने PPP योजना को पूरी तरह वापस लेने की मांग की।

20 अप्रैल को विजयवाड़ा में एक बड़ा सेमिनार आयोजित किया गया, जिसमें डॉ. पी.वी. रमेश (सेवानिवृत्त स्वास्थ्य सचिव, आंध्र प्रदेश), जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. डेविड सुधाकर, और डॉ. जी. समरम (पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने इस निर्णय के दीर्घकालिक खतरों पर चेतावनी दी। 21 अप्रैल को विशाखापत्तनम में एक और सेमिनार आयोजित हुआ, जिसमें डॉक्टरों, पूर्व अधिकारियों, छात्र संगठनों और सामाजिक संगठनों ने भाग लिया। यहां डॉ. के. सत्यवरा प्रसाद (पूर्व निदेशक, चिकित्सा शिक्षा, आंध्र प्रदेश) ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों के निजीकरण को रोकने की मांग का समर्थन किया। इसके बाद जिले स्तर पर कई बैठकें हुईं—23 मई को अनंतपुर, 27 मई को काकीनाडा, 6 जून को गुंटूर और 21 जून को श्रीकाकुलम—जिनमें छात्र और उनके अभिभावक, स्वास्थ्य संगठन और सामाजिक आंदोलनों ने सक्रिय भागीदारी की।

जनसभाओं के माध्यम से बढ़ा जनमत

इस आंदोलन की सबसे अहम घटनाओं में से एक था 23 फरवरी 2025 को तिरुपति में हुआ जन सम्मेलन, जिसमें SVIMS मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम में 800 से अधिक लोग, विशेषकर छात्र, शामिल हुए। इस सम्मेलन में सुजाता राव (पूर्व स्वास्थ्य सचिव, भारत सरकार), डॉ. पी.वी. रमेश (पूर्व स्वास्थ्य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार) और डॉ. अल्लादी मोहन (डीन, SVIMS तिरुपति) ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी सरकार की है, और चिकित्सा शिक्षा का निजीकरण छात्रों, स्वास्थ्य कर्मियों और समाज के लिए घातक होगा। एक और बड़ा सम्मेलन 15 जून को नेल्लोर में हुआ, जिसमें 500 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। वहां वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. विरिंची ने निजीकरण के खिलाफ कई तर्क रखे, जिन्हें पीपल्स पॉलीक्लिनिक, नेल्लोर के डॉक्टरों और छात्रों का पूरा समर्थन मिला।

आंदोलन को मिल रहा है व्यापक समर्थन

इस अभियान को विभिन्न सामाजिक तबकों से व्यापक समर्थन मिला है। चिकित्सा शिक्षा में प्रवेश की तैयारी कर रहे छात्र, उनके अभिभावक, सरकारी डॉक्टरों की एसोसिएशन, सेवानिवृत्त डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी, यहां तक कि निजी डॉक्टरों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है। आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मेडिकल और हेल्थ डिपार्टमेंट के लैब तकनीशियन, नर्सिंग स्कूलों की फैकल्टी और रिटायर्ड नर्सें भी इस संघर्ष में शामिल हुई हैं। ट्रेड यूनियन, वकील और महिला संगठन भी इस गठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं।

सम्मानित हस्तियां बोलीं, निजीकरण के खिलाफ 

इस अभियान को कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने सार्वजनिक समर्थन दिया है। सुजाता राव, भारत सरकार की पूर्व स्वास्थ्य सचिव ने साफ कहा है कि इस तरह का निजीकरण सार्वजनिक स्वास्थ्य की मूल सोच को कमजोर करता है। डॉ. जी. समरम, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकारी मेडिकल शिक्षा के व्यवसायीकरण का विरोध किया है। डॉ. पी.वी. रमेश, पूर्व स्वास्थ्य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा है कि इस नीति से राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली कमजोर होगी। भारत सरकार के पूर्व सचिव ई.ए.एस. शर्मा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर यह मांग की है कि सरकारी मेडिकल कॉलेजों के निजीकरण का फैसला वापस लिया जाए।

छात्र आंदोलन की पहली कतार में

छात्र इस आंदोलन में बढ़कर हिस्सा ले रहें हैं। SFI, AISF, PDSU, RSU, NSUI जैसे बड़े छात्र संगठनों ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर PPP मॉडल को तुरंत वापस लेने की मांग की है। 2024 के दौरान गुंटूर, राजमुंद्री, विजयनगरम, तिरुपति और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में छात्रों ने भूख हड़तालें, रैलियां और विरोध प्रदर्शन किए, जिससे ये स्पष्ट हो गया कि युवा पीढ़ी इस फैसले के खिलाफ है।

नीति आयोग की चालें 

इस निजीकरण के फैसले के पीछे नीति आयोग का स्पष्ट प्रभाव है। 21 जनवरी 2020 को नीति आयोग ने हर जिले में PPP मॉडल पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए एक राष्ट्रीय बैठक बुलाई थी। उसने राज्यों को ड्राफ्ट एग्रीमेंट भेजे और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज के तहत 30% तक की सब्सिडी देने का वादा किया। NHM और स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2019 में गाइडलाइंस जारी की थीं, जिनके तहत जिला अस्पतालों को भी निजी कंपनियों को सौंपने की योजना बनाई गई थी। 2020–21 में इन नीतियों में 60% तक की सब्सिडी, लागत की पूरी वसूली, टैक्स छूट और सार्वजनिक ज़मीन की उपलब्धता तक शामिल की गई थी।

एक राज्य की नहीं, पूरे देश की लड़ाई

इस पूरे संदर्भ को देखते हुए प्रजा आरोग्य वेदिका अब राज्य के सभी 26 जिलों में बैठकें आयोजित कर रही है, ताकि आम लोगों को जानकारी दी जा सके और व्यापक समर्थन जुटाया जा सके। प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मुख्यमंत्री को पत्र लिखवाए जा रहे हैं। मीडिया में इस आंदोलन की अच्छी कवरेज हो रही है। लेकिन यह सिर्फ आंध्र प्रदेश का मुद्दा नहीं है। इसी तरह के PPP मॉडल अब कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और अन्य राज्यों में भी लाए जा रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रजा आरोग्य वेदिका 24 अगस्त 2025 को विजयवाड़ा में एक राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित कर रही है, जिसमें देशभर से जन स्वास्थ्य अभियान और सामाजिक आंदोलनों के कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया जा रहा है ताकि एकजुट होकर रणनीति बनाई जा सके।

अब समय आ गया है कि हम पूरे भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते कॉरपोरेट कब्जे के खिलाफ एकजुट हों। आंध्र प्रदेश का यह जनांदोलन पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल है। हमें अपने राज्यों में एकजुट होकर सरकारी स्वास्थ्य और शिक्षा संस्थाओं को बचाना होगा, ताकि मेडिकल शिक्षा सभी की पहुँच में रहे, और सबको दर्जेदार स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार मिल सके।

 

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