उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति (UPVKSS) से प्राप्त रिपोर्ट और पत्र
संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने प्रदेश के सभी सांसदों और विधायकों को पत्र भेज कर मांग की है कि वे प्रभावी पहल करें जिससे उत्तर प्रदेश की जनता पर निजीकरण का विफल हो चुका प्रयोग थोपा न जाय और ग्रेटर नोएडा व आगरा की बिजली वितरण व्यवस्था को पॉवर कारपोरेशन टेकओवर करे।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज यहां बताया कि बिजली के निजीकरण का प्रयोग उड़ीसा और अन्य स्थानों पर पूरी तरह विफल हो चुका है। उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा और आगरा में बिजली के निजीकरण से पावर कारपोरेशन को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है और हो रहा है। ऐसे में विकसित भारत और विकसित उप्र के विजन में सबसे बड़ी प्राथमिकता पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय निरस्त करना और ग्रेटर नोएडा और आगरा की विद्युत वितरण व्यवस्था को तत्काल सरकारी क्षेत्र में टेकओवर करना होना चाहिए।
आगरा डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी मेसर्स टोरेंट पावर कंपनी के बारे में सांसदों और विधायकों को भेजे गए पत्र में वर्ष 2010 से 2024 तक का प्रत्येक साल का विवरण दिया गया है। विवरण के अनुसार प्रत्येक वर्ष पॉवर कॉरपोरेशन ने महंगी दरों पर बिजली खरीद कर टोरेंट पावर को सस्ती दर पर आपूर्ति की है और इससे भारी घाटा होता जा रहा है। संघर्ष समिति ने सवाल किया कि यह कौन सा निजीकरण है जिसमें निजी क्षेत्र को बिजली आपूर्ति करने में ही पावर कारपोरेशन को 2434 करोड रुपए का नुकसान हो चुका है।
संघर्ष समिति ने कहा कि दरअसल यह नुकसान लगभग 10000 करोड रुपए का है। आगरा एक औद्योगिक और व्यावसायिक शहर है। आगरा भारत की लेदर कैपिटल है। वर्ष 2023 – 24 में जहां पावर कारपोरेशन ने 05 रुपए 55 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर टोरेंट पावर को 04 रुपए 36 पैसे प्रति मिनट की दर पर बेचा। महंगी बिजली खरीद कर सस्ते में बेचने से पॉवर कॉरपोरेशन को वर्ष 2023 – 24 में 274 करोड रुपए का नुकसान हुआ है। आगरा औद्योगिक शहर होने नाते आगरा में बिजली विक्रय की दर 07 रुपए 98 पैसे प्रति यूनिट है। इस प्रकार सस्ती बिजली खरीद कर टोरेंट पावर ने केवल एक वर्ष में 800 करोड रुपए का मुनाफा कमाया है। यदि आगरा की बिजली व्यवस्था सरकारी क्षेत्र में रहती तो यह मुनाफा पावर कारपोरेशन को मिलता । इस प्रकार एक वर्ष में ही लगभग 1000 करोड रुपए का घाटा पावर कारपोरेशन को उठाना पड़ा है।
संघर्ष समिति ने पत्र मे लिखा है कि इसके अतिरिक्त 01 अप्रैल 2010 को पावर कारपोरेशन का आगरा शहर में बिजली राजस्व का 2200 करोड रुपए का बकाया था जिसे एग्रीमेंट के अनुसार टोरेंट पावर को एकत्र करके पावर कारपोरेशन को वापस करना था। इसके एवज में पावर कॉरपोरेशन 10% धनराशि टोरेंट पावर को इंसेंटिव के रूप में देती। आज 15 वर्ष व्यतीत हो गए हैं और टोरेंट पावर ने 2200 करोड रुपए की बकाया की धनराशि में एक पैसा भी पावर कारपोरेशन को वापस नहीं किया।
संघर्ष समिति ने कहा कि इस प्रकार आगरा के अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी में हजारों करोड रुपए का नुकसान पावर कारपोरेशन को उठाना पड़ रहा है और पावर कारपोरेशन ने इस एग्रीमेंट को निरस्त करने के लिए एक बार भी टोरेंट पावर को नोटिस नहीं दिया।
ग्रेटर नोएडा के बारे मे संघर्ष समिति ने पत्र में लिखा है कि ग्रेटर नोएडा में निजी कंपनी मेसर्स नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को शेड्यूल के अनुसार विद्युत आपूर्ति नहीं करती क्योंकि यह घाटे वाले क्षेत्र हैं। इसी कारण और कई अन्य शिकायतों के चलते उत्तर प्रदेश सरकार नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड का वितरण लाइसेंस निरस्त कराने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ रही है।
संघर्ष समिति ने पत्र में उदाहरण देकर बताया है कि उड़ीसा में निजीकरण का प्रयोग तीसरी बार विफल हो गया है। उड़ीसा का विद्युत नियामक आयोग टाटा पावर की चारों कंपनियों के बहुत खराब परफॉर्मेंस के चलते 15 अगस्त के बाद टाटा पावर के विरुद्ध जन सुनवाई करने जा रही है। इसके अतिरिक्त अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी का प्रयोग उज्जैन, सागर, ग्वालियर, रांची, जमशेदपुर, औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया में विफलता के चलते निरस्त किया जा चुका है।
संघर्ष समिति ने माननीय सांसदो और विधायको से मांग की है कि वे अपने पद का सदुपयोग करते हुए प्रभावी पहल करें और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय निरस्त कराने की कृपा करें।
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