उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण वापस होने तक संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया! निजीकरण से 76,500 बिजली कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उप्र की प्रेस विज्ञप्ति

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उप्र

 प्रेस विज्ञप्ति 21 अगस्त 2025

निजीकरण से 76500 बिजली कर्मियों की नौकरी खतरे में: निजीकरण के विरोध में निर्णायक संघर्ष की तैयारी: सेवा करेंगे और हक भी लेंगे – संघर्ष समिति

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने कहा है कि यदि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण किया गया तो लगभग 76500 सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगेगा। आज निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 267 वें दिन बिजली कर्मियों ने निजीकरण रोकने के लिये निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया।

संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली की बढ़ी हुई मांग को देखते हुए बिजली कर्मी आंदोलन के साथ-साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं को भी सर्वोच्च प्राथमिकता पर अटेंड कर रहे हैं । संघर्ष समिति ने कहा कि उनका नारा है – सेवा करेंगे और हक भी लेंगे।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने बताया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 17500 और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 10500 नियमित कर्मचारी कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त इन दोनों विद्युत वितरण निगमों में लगभग 50 हजार संविदा कर्मी काम कर रहे हैं।

संघर्ष समिति ने कहा कि पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष द्वारा निजीकरण के बाद बिजली कर्मियों को तीन विकल्प दिए गए हैं। पहला विकल्प यह है कि वे निजी कंपनी की नौकरी स्वीकार कर लें। दूसरा विकल्प यह है कि वे अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस आ जाए और तीसरा विकल्प यह है कि वे स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर घर चले जाएं। संघर्ष समिति ने कहा कि ऐसे बिजली कर्मी बहुत बड़ी संख्या में हैं जो निजी कंपनियों की नौकरी छोड़कर पावर कारपोरेशन में सरकारी नौकरी करने आए थे। अब कई कई साल की नौकरी के बाद उनसे यह कहना कि वे फिर निजी कंपनी में चल जाए यह पूरी तरह अन्यायपूर्ण है और बिजली कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

दूसरे विकल्प के रूप में यदि बिजली कर्मी अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस आते हैं तो वे सरप्लस हो जाएंगे और उनकी छटनी की नौबत आ जाएगी। इतना ही नहीं तो पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम से अन्य विद्युत वितरण निगमों में आने वाली बिजली कर्मी नियमानुसार वरिष्ठता क्रम में 2025 बैच के नीचे अर्थात सबसे नीचे रखे जाएंगे। स्वाभाविक है कि सरप्लस होने पर सबसे पहले इन बिजली कर्मियों की ही छटनी होगी।

संघर्ष समिति ने दिल्ली का उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2002 में निजीकरण के बाद दिल्ली के विद्युत वितरण निगमों में कुल 18097 बिजली कर्मी कार्यरत थे। निजीकरण के एक वर्ष के अंदर-अंदर निजी घरानों के उत्पीड़न से तंग आकर 8190 बिजली कर्मियों ने सेवानिवृत्ति ले ली। इस प्रकार दिल्ली में निजीकरण के एक साल के अंदर ही अंदर-अंदर 45% बिजली कर्मी सेवानिवृत्ति लेकर घर चले गए। तब बिजली कर्मचारियों को पेंशन मिलती थी। अब पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में कार्यरत 90% बिजली कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिलती वे सेवा निवृत्ति लेकर कहां जाएंगे ?

हाल ही में 1 फरवरी 2025 को चंडीगढ़ विद्युत विभाग का निजीकरण किया गया। निजीकरण जिस दिन किया गया उसी दिन लगभग 40% बिजली कर्मी सेवा निवृत्ति लेकर घर चले। चंडीगढ़ में बिजली कर्मचारियों की यूनियन और सरकार के बीच 1 फरवरी की रात जो समझौता हुआ था आज तक उसे लिखकर नहीं दिया गया है। और निजी कंपनी यह कह रही है कि यह समझौता सरकार ने किया था हमें इससे कोई मतलब नहीं है। निजीकरण की यही भयावह कहानी अब उत्तर प्रदेश में दोहराई जा रही है जिसे बिजली कर्मी कदापि स्वीकार नहीं करेंगे।

निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 267 वें दिन आज बिजली कर्मचारियों ने प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर व्यापक विरोध प्रदर्शन कर निजीकरण के विरोध में निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया। बिजली कर्मियों ने कहा कि निजीकरण बिजली कर्मचारियों और उनके परिवार के लिए अंधेरे का संदेश लेकर आ रहा है। बिजली कर्मियों ने कहा कि वे किसी कीमत पर निजीकरण स्वीकार नहीं करेंगे और यह संघर्ष तब तक चलता रहेगा जब तक निजीकरण का फैसला वापस नहीं लिया जाता।

शैलेंद्र दुबे

संयोजक

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