मज़दूर एकता कमेटी (MEC) के संवाददाता की रिपोर्ट
देश भर के सभी क्षेत्रों के मज़दूर अपनी रोजीरोटी और अधिकारों पर बढ़ते हमलों का सामना कर रहे हैं। वे अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त करने के लिए संगठित हो रहे हैं और यूनियन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा पारित चार श्रम संहिताएं और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलाव, यूनियनों का पंजीकरण बेहद कठिन बनाकर तथा हड़ताल करना और भी मुश्किल बनाकर, मज़दूरों को इस अधिकार से वंचित करने का उद्देश्य रखते हैं।
“मज़दूरों पर बढ़ते हमले और हमारे सामने चुनौतियां” – इस विषय पर 15 अगस्त को मज़दूर एकता कमेटी (एमईसी) द्वारा आयोजित बैठक में एमईसी के श्री संतोष कुमार के प्रारंभिक विचार इस प्रकार थे।
इस बैठक में देश के विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें आईटी मज़दूर, वस्त्र मज़दूर, बीड़ी मज़दूर, बुनकर, कचरा बीनने वाले, घरेलू कामगार, स्वास्थ्य कर्मी, नर्स, एम्बुलेंस मज़दूर, ऑटोमोबाइल मज़दूर, परिवहन मज़दूर, गिग वर्कर्स, सफ़ाई कर्मी, वजन ढोने वाले मज़दूर, रेलवे ट्रैक मेंटेनर, सिग्नल और दूरसंचार मज़दूर, विश्वविद्यालयों के शिक्षक और कई अन्य क्षेत्रों के मज़दूर शामिल थे। इन तमान क्षेत्रों के मज़दूरों ने बैठक को संबोधित किया। हर क्षेत्र की समस्याओं और मांगों को लेकर एक साझा मंच पर एकजुट होने की आवश्यकता पर सभी प्रतिभागियों ने बात की।
बैठक का संचालन एमईसी की सुश्री सुचारिता ने किया। सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, उन्होंने श्री संतोष कुमार से एमईसी की ओर से प्रस्तुति को पेश करने का आह्वान किया।
श्री संतोष कुमार ने आठ घंटे के काम के दिन, रोजीरोटी की सुरक्षा, इज्ज़त से जीने लायक वेतन, तथा बढ़ती ठेका मज़दूरी के खिलाफ़, और कार्य स्थल पर सुरक्षा व पेंशन, पीएफ आदि जैसी सामाजिक सुरक्षा के लिए आईटी मज़दूरों, परिवहन और स्वास्थ्य क्षेत्र के मज़दूरों, बैंकिंग और बीमा क्षेत्र के मज़दूरों, रेलवे मज़दूरों, कोयला खदान के मज़दूरों, शिक्षकों और कई अन्य उद्यमों के मज़दूरों के संघर्षों की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने टीसीएस और माइक्रोसॉफ्ट जैसी आईटी कंपनियों का उदाहरण दिया, जो एक झटके में हज़ारों-हज़ारों मज़दूरों को नौकरी से निकाल रही हैं।
मज़दूरों के अधिकारों पर इन हमलों को सरकार द्वारा हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीपतियों के लिए “ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस” सुनिश्चित करने के नाम पर उचित ठहराया जा रहा है। लेकिन, जैसा कि संतोष कुमार ने बताया, जो पूंजीपतियों के लिए अच्छा है, वह मज़दूरों और पूरे समाज के हितों से बिल्कुल विपरीत है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगातार लागू किए जा रहे उदारीकरण और निजीकरण के जरिये वैश्वीकरण के कार्यक्रम ने सबसे बड़े हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों की दौलत को बढ़ाया है, जबकि किसानों और छोटे उत्पादकों को बर्बाद किया है, हमारे प्राकृतिक संसाधनों की निर्मम लूट और प्राकृतिक पर्यावरण के विनाश को पूरी छूट दी है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छंटनी हुई है और बाकी मज़दूरों पर काम का बोझ बढ़ा है। रेलवे, परिवहन, बिजली आपूर्ति, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण इन सेवाओं को बहुसंख्यक मेहनतकश लोगों के लिए लगातार महंगा बना रहा है।
चार श्रम संहिताओं के ज़रिए, केंद्र सरकार मज़दूरों पर इन हमलों को क़ानूनी जामा पहनाना चाहती है। इन श्रम संहिताओं के अनुसार, 40 या उससे कम मज़दूरों वाले प्रतिष्ठान या 50 या उससे कम मज़दूरों वाले ठेकेदार के मज़दूरों के कोई भी अधिकार नहीं बनते हैं। उनसे रोज़ाना कितने भी घंटे काम करवाया जा सकता है और कभी भी नौकरी से निकाला जा सकता है। जबकि केंद्र सरकार हमारे कड़े प्रतिरोध की वजह से इन श्रम संहिताओं को लागू नहीं कर पाई है, तो कई राज्य सरकारों ने अपने श्रम कानूनों में बदलाव लागू करना शुरू कर दिया है — जैसे कि प्रतिदिन 12-15 घंटे काम, फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट, बीमारी की छुट्टी और मातृत्व अवकाश से इनकार, महिला मज़दूरों के लिए कम वेतन, महिलाओं के लिए बिना यातायात सुविधा और सुरक्षा के रात्रि पाली में काम, अपनी पसंद की यूनियन बनाने और हड़ताल पर जाने के अधिकार से इनकार, आदि।
संतोष कुमार ने सभी मज़दूरों से आह्वान किया कि वे अपनी एकता को और मज़बूत करें, और पूंजीपतियों की हुकूमत की जगह पर मज़दूर-किसान की हुकूमत स्थापित करने के लक्ष्य के साथ, अपनी रोजीरोटी और अधिकारों पर सभी हमलों के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ करें। अपनी बातों को समाप्त करते हुए, उन्होंने कहा कि केवल यही हमारे सम्मान और खुशहाली की गारंटी दिला सकता है।
विभिन्न क्षेत्रों के मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने बैठक को संबोधित किया। उन्होंने सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को अपनी रोजीरोटी और अधिकारों पर बढ़ते हमलों का विरोध करने के लिए, एक साझा मंच पर एकजुट होने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
फोरम फॉर आईटी एम्प्लॉइज (एफ़आईटीई) के श्री पवनजीत माने ने बताया कि कैसे टीसीएस प्रबंधन मज़दूरों पर नौकरी छोड़ने के लिए अत्यधिक दबाव डालता है। उनके मोबाइल फोन जब्त करके, उन्हें 2-3 घंटे तक कमरे में बंद रखकर, उनसे नौकरी से त्याग पत्र ज़बरदस्ती से लिया जाता है। श्री माने ने आईटी मज़दूरों को अपने अधिकारों के संघर्ष में संगठित करने तथा अदालतों में मज़दूरों के हकों की कानूनी लड़ाई लड़ने में एफ़आईटीई द्वारा किए जा रहे काम की चर्चा की। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि आईटी मज़दूरों को मज़दूर बतौर अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करना और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए संगठित करना ही मुख्य चुनौती है।
जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर देबादित्य भट्टाचार्य ने शिक्षकों के अधिकारों पर हमलों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, शिक्षा संस्थानों के बंद होने और विलयन किये जाने, बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण और दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस लर्निंग) की प्रक्रिया के चलते, ये हमले और भी तेज़ होने वाले हैं। सरकारी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के लिए राज्य द्वारा दी जाने वाली धनराशि में भारी कटौती की जा रही है, जिसके चलते शिक्षण और गैर-शिक्षण नौकरियों की संख्या में भारी कमी की जा रही है। शिक्षकों को अस्थायी अनुबंधों पर नियुक्त किया जा रहा है, जिनमें न तो कोई नौकरी की सुरक्षा है और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि शिक्षकों को मज़दूर के रूप में अपनी स्थिति के प्रति सचेत रहना होगा और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए संगठित होना होगा।
सेल्फ एम्प्लोयेड विमेंस एसोसिएशन (सेवा) की कार्यकर्ता मौमिता चक्रवर्ती ने महिला बीड़ी मज़दूरों, बुनकरों, कचरा बीनने वालों और घरेलू कामगारों की घटती आमदनी व बिगड़ती हालतों के बारे में बात की। ये महिलाएं बहुत कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा, काम की खतरनाक परिस्थितियों और अपनी गरिमा पर लगातार हमलों से पीड़ित हैं। सुश्री चक्रवर्ती ने आशा व्यक्त की कि इतने विविध क्षेत्रों के मज़दूरों के साथ एक संयुक्त मंच पर आने से सरकार उनकी मांगों पर ध्यान देगी।
होज़ूर के मज़दूर संघ के श्री कुमनन ने बताया कि सरकार के बहुप्रचारित ‘कौशल विकास’ कार्यक्रम का उद्देश्य पूंजीवादी मुनाफ़ों को बढ़ाने के लिए युवाओं का शोषण तीव्र करना है। उन युवाओं को अपरेंटिस और प्रशिक्षुओं के रूप में काम पर लगाया जाता है, उन्हें कभी भी काम से निकाला जा सकता है और उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं दी जाती। श्री कुमनन ने कहा कि इस बढ़ते शोषण का विरोध करने के लिए मज़दूरों को संगठित करना हमारे सामने चुनौती है।
एमआरबी नर्सेज़ यूनियन की अध्यक्ष सुश्री शशिकला ने संविदा नर्सों की दयनीय स्थिति का वर्णन किया। उनकी नौकरी सुरक्षित नहीं है और उन्हें नियमित नर्सों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है, जबकि उन्हें लंबे समय तक काम करना पड़ता है। सुश्री शशिकला ने कहा कि संविदा नर्सों को मातृत्व अवकाश और बीमारी अवकाश जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है। उन्होंने नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों को अन्य मज़दूरों के साथ एकजुट होकर अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होने के महत्व पर ज़ोर दिया।
फेडेरशन आफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (एफ़आईटीयू) का प्रतिनिधित्व कर रहे श्री सुब्रमणि अर्मुगम ने ठेका मज़दूरी और फिक्स्ड टर्म कांट्रेक्ट के बढ़ते उपयोग के चलते, महिला मज़दूरों के शोषण और उनके साथ भेदभाव पर चिंता व्यक्त की।
सुश्री सुजाता मोदी ने बताया कि कैसे वस्त्र और फैशन उद्योग में महिला मज़दूरों को मात्र 12,500-15,000 रुपये प्रति माह के वेतन पर, फिक्स्ड टर्म कांट्रेक्ट पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
प्रोफेसर मनभंजन मेहर ने अतिथि शिक्षकों और संविदा शिक्षकों के शोषण पर प्रकाश डाला।
तमिलनाडु के तंजावुर के किसान नेता थिरुनावुकारसु ने बताया कि कैसे कृषि में रोजीरोटी की असुरक्षा बड़ी संख्या में किसानों को देश के विभिन्न शहरों में पलायन करने और बेहद कम वेतन पर बहुत कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर कर रही है।
डॉ. हेडगेवार आरोग्य संस्थान मज़दूर संघ, दिल्ली के श्री विक्की कपूर ने अस्पतालों में ठेका मज़दूरों के शोषण का वर्णन किया।
अन्य वक्ताओं में लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष श्री हनुमान प्रसाद शर्मा; वनिता पत्रिका की संपादक सुश्री रंजना; अधिवक्ता राजेंद्र पाठक; दिल्ली कामगार यूनियन के श्री जेपी दुबे; और बाल शिक्षा विकास समिति के श्री प्रेम दसानी शामिल थे।
एमईसी के श्री बिरजू नायक ने मज़दूरों से जाति, धर्म और राजनीतिक पार्टी संबंधों से ऊपर उठकर, अपने बढ़ते शोषण के ख़िलाफ़ संघर्ष में एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने हमारे शोषण के मूल कारण, यानी पूंजीवादी व्यवस्था पर प्रहार करने और पूंजीवादी गुलामी को समाप्त करने की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया।
चर्चा का सारांश प्रस्तुत करते हुए, सुश्री सुचरिता ने विभिन्न क्षेत्रों में मज़दूरों की समस्याओं को सामने लाने के लिए सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमारे सामने चुनौती इन सभी विविध क्षेत्रों के मज़दूरों को एक साझा मंच पर एकजुट करना, हमारी एकता को और मज़बूत करना तथा हमारी रोजीरोटी व अधिकारों पर हो रहे सभी हमलों के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ करना है। उन्होंने समापन में कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी संयुक्त शक्ति का उपयोग करके, पूंजीपतियों की हुकूमत को मज़दूरों और किसानों की हुकूमत में बदल कर, हमारी शोषित वर्ग होने की इस स्थिति को ही समाप्त कर डालें।