कामगार एकता कमेटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
3 सितंबर को, महाराष्ट्र राज्य मंत्रिमंडल ने कारखाना अधिनियम, 1948 और महाराष्ट्र दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम, 2017 में महत्वपूर्ण संशोधनों को मंज़ूरी दे दी, जिससे दैनिक कार्य समय बढ़कर 12 घंटे हो जाएगा।
इस प्रस्ताव का मज़दूर संगठनों ने कड़ा विरोध किया है और इसे वापस लेने की माँग की है।
कारखाना अधिनियम में संशोधन के तहत, उद्योगों में दैनिक कार्य घंटों की सीमा 9 घंटे से बढ़कर 12 घंटे हो जाएगी (धारा 65), जबकि 5 घंटे के बजाय 6 घंटे के बाद विश्राम अवकाश की अनुमति होगी (धारा 55)। विश्राम के अंतराल सहित कार्य घंटों को भी 10.5 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया जाएगा (धारा 56)। श्रमिकों की अनिवार्य लिखित सहमति के साथ, कानूनी ओवरटाइम सीमा प्रति तिमाही 115 घंटे से बढ़कर 144 घंटे हो जाएगी।
किसी कारखाने में वयस्क श्रमिक के कार्य की अवधि धारा 55 के अधीन इस प्रकार व्यवस्थित की जाएगी कि वह किसी भी दिन साढ़े दस घंटे से अधिक नहीं होगी।
संशोधित दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत, दैनिक कार्य घंटे 9 से बढ़ाकर 10 किए जाएंगे, ओवरटाइम सीमा 125 से बढ़ाकर 144 घंटे की जाएगी, तथा आपातकालीन ड्यूटी के घंटे बढ़ाकर 12 किए जाएंगे। ये परिवर्तन 20 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होंगे।
20 से कम कर्मचारियों वाली दुकानों और प्रतिष्ठानों को अब संशोधित दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम से छूट मिलेगी। वर्तमान में लगभग 85 लाख दुकानें और प्रतिष्ठान इस कानून के अंतर्गत आते हैं और इस संशोधन से यह संख्या घटकर लगभग 56,000 रह जाएगी। खुदरा व्यापारी संघ के महासंघ ने इस संशोधन का स्वागत किया है।
सरकार के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य व्यापार सुगमता को बढ़ावा देना और निवेश आकर्षित करना है। सरकार का दावा है कि इससे रोज़गार सृजन होगा और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।
सरकार का यह भी दावा है कि ये संशोधन उद्योगों को चरम माँग या श्रम की कमी के दौरान बिना किसी व्यवधान के काम करने की अनुमति देंगे, साथ ही यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रमिकों को उचित ओवरटाइम मुआवज़ा मिले।
राज्य श्रम विभाग के अनुसार, ये बदलाव एक “अधिक लचीला” कार्य वातावरण तैयार करेंगे, कर्मचारियों और नियोक्ताओं, दोनों की दीर्घकालिक चिंताओं का समाधान करेंगे और कार्यबल में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाएँगे।
इन संशोधनों का वास्तविक उद्देश्य देशी-विदेशी पूँजीपतियों की लंबे समय से चली आ रही माँग को पूरा करना है कि सरकार कार्य दिवस की अवधि 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दे। उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों के पूँजीपति श्रम कानूनों में संशोधन की माँग करते रहे हैं ताकि वे श्रमिकों का और भी अधिक शोषण करके अपने मुनाफे को अधिकतम कर सकें।
राज्य सरकार यह दावा करके सच्चाई से मुँह मोड़ रही है कि ये संशोधन मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करेंगे। काम के घंटों में बढ़ोतरी मज़दूरों के अधिकारों पर एक बड़ा हमला है। दुनिया के कई हिस्सों में मज़दूरों ने दशकों के कड़े संघर्ष के बाद 8 घंटे काम का अधिकार हासिल किया था, जिसे अब इन संशोधनों के ज़रिए छीना जा रहा है।
सरकार का यह दावा कि अतिरिक्त घंटों को ओवरटाइम माना जाएगा और मूल वेतन व भत्ते की दोगुनी दर से भुगतान किया जाएगा, मूल्यहीन है। इसी तरह, ओवरटाइम के लिए मज़दूरों की लिखित सहमति का प्रावधान भी मूल्यहीन है। एक पूँजीपति और उसके कारखाने या दुकान में काम करने वाले मज़दूरों के बीच का रिश्ता ऐसा होता है कि मज़दूर अपनी नौकरी जाने के डर से पूँजीपति की दया पर निर्भर रहता है। अगर मज़दूर अपनी नौकरी बरकरार रखना चाहता है, तो उसके पास सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। पूँजीपति पहले से ही आठ घंटे काम के नियम का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं, कार्यदिवस बढ़ा रहे हैं, मज़दूरों को नौकरी से निकालने की धमकी देकर ओवरटाइम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। यह संशोधन इस प्रथा को कानूनी जामा पहनाएगा और पूँजीपतियों को मज़दूरों का शोषण और तेज़ करने का मौका देगा।
इस संशोधन से बड़ी संख्या में नौकरियाँ खत्म हो जाएँगी क्योंकि पूँजीपति अब तीन पालियों के बजाय दो पालियों में काम कर पाएँगे, जिससे एक तिहाई मज़दूर अधिशेष में आ जाएँगे।
ये संशोधन महिलाओं के लिए काम की परिस्थितियों को और बदतर बना देंगे। हमारे देश में अभी भी घर के काम और बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही ज़्यादा है और उन्हें अपने कामकाजी दिन के बाद भी बच्चों के लिए काफ़ी समय देना पड़ता है। अगर महिलाओं को कार्यस्थल पर बिताया जाने वाला समय और घर से कार्यस्थल तक आने-जाने में लगने वाले समय को भी शामिल कर लिया जाए, तो महिला मज़दूरों की भयावह स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
20 से कम कर्मचारियों वाली दुकानों और प्रतिष्ठानों को दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम के दायरे से बाहर करने का संशोधन राज्य के 99 प्रतिशत से अधिक प्रतिष्ठानों के श्रमिकों के सभी अधिकारों को छीनने के समान होगा। अब मालिकों को अपने श्रमिकों का किसी भी हद तक शोषण करने का लाइसेंस मिल जाएगा।
कामगार एकता कमेटी सभी श्रमिकों से एकजुट होकर कारखाना एवं दुकान एवं प्रतिष्ठान अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का विरोध करने का आह्वान करती है। देश भर के श्रमिकों को राज्य सरकार के इस कदम की निंदा करने के लिए एकजुट होना चाहिए। श्रमिक वर्ग को 8 घंटे के कार्य दिवस के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए।