महाराष्ट्र राज्य विद्युत कर्मचारी, अभियंता, अधिकारी कार्य समिति द्वारा महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री को पत्र
पुनर्गठन से हमेशा कर्मचारियों की संख्या में कमी आई है और अक्सर इसका इस्तेमाल निजीकरण के लिए संगठन को आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है। पुनर्गठन से बचे हुए मज़दूरों पर काम का बोझ बढ़ जाता है। बिजली कर्मचारियों का पुनर्गठन प्रस्ताव का विरोध पूरी तरह से जायज़ है।
सबस्टेशन को निजी पूंजीपतियों को सौंपना उपभोक्ताओं और मज़दूरों के हित में नहीं है और इसका विरोध किया जाना चाहिए।
(मराठी पत्र का अनुवाद)
महाराष्ट्र राज्य विद्युत कर्मचारी, इंजीनियर, अधिकारी कार्रवाई समिति
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री एवं ऊर्जा मंत्री,
महाराष्ट्र राज्य, मंत्रालय,
मुंबई 400032
दिनांक 22 सितंबर 2025
विषय: महावितरण कंपनी में पुनर्गठन के गलत प्रस्ताव के क्रियान्वयन को तत्काल रोकने के संबंध में
संदर्भ:- 1) पुनर्गठन एवं प्राप्त प्रस्तावों के संबंध में निदेशक स्तर पर 18-02-2025 को आयोजित बैठक।
2) निदेशक (संचालन) स्तर पर 11-09-2025 को आयोजित बैठक।
3) बोर्ड संकल्प संख्या 478, दिनांक 23-02-2005 तथा MPR संख्या 29, दिनांक 4-11-2010।
4) MPR संख्या 117, दिनांक 01-01-2020।
5) कार्य समिति का पत्र दिनांक 16 सितंबर 2025।
महोदय,
संदर्भ क्रमांक 1 के अनुसार, महावितरण कंपनी द्वारा आयोजित बैठक में कर्मचारी पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव सभी यूनियनों को उपलब्ध कराए जाने के बाद, कार्य समिति में भाग लेने वाली सभी यूनियनों ने इस पर विस्तार से विचार-विमर्श किया। चूँकि उक्त पुनर्गठन नीति अधूरी, अस्पष्ट और अवास्तविक थी, इसलिए यूनियनों ने इस संबंध में अधिक स्पष्टता की माँग की थी। महावितरण कंपनी ने मज़दूर यूनियनों को एक संशोधित प्रस्ताव उपलब्ध कराया और उस पर चर्चा करने का सुझाव दिया।
परंतु, महावितरण कंपनी ने मज़दूर यूनियनों का पक्ष लिए बिना, संदर्भ क्रमांक 2 के अनुसार निदेशक (संचालन) स्तर पर इस मुद्दे पर पुनः एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में भी प्रबंधन ने सरकार की नीति के संबंध में महावितरण कंपनी का रुख स्पष्ट नहीं किया। इसी प्रकार, संशोधित प्रस्ताव में कार्य समिति में भाग लेने वाले यूनियनों के प्रस्ताव और स्थिति पर सकारात्मक रूप से विचार नहीं किया गया। इसलिए, बिजली कर्मचारियों में बढ़ते असंतोष को देखते हुए, संदर्भ क्रमांक 5 के अनुसार 19 सितंबर 2025 को विरोध सभाएँ आयोजित की।
इसके बाद भी प्रबंधन की भूमिका को देखते हुए दिनांक 21.09.2025 को यूनियन एक्शन कमेटी की ऑनलाइन बैठक आयोजित कर उक्त पुनर्गठन प्रस्ताव का पूर्ण विरोध करने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया, जो महावितरण कंपनी के भविष्य के अस्तित्व और कंपनी के कर्मचारियों के लिए घातक होगा।
इस संबंध में, यह स्पष्ट नहीं है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस नीति पर सहमति दी है या नहीं। इसके अलावा, उक्त नीति तय करने के पीछे की मंशा और कंपनी के रुख के बारे में मज़दूर यूनियनों को सूचित नहीं किया गया है। इसलिए, महावितरण कंपनी और कंपनी के कर्मचारियों के भविष्य के अस्तित्व पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों, ग्राहकों में उत्पन्न असंतोष, साथ ही कंपनी के बिल संग्रह और राजस्व पर पड़ने वाले गंभीर परिणामों और परिणामस्वरूप होने वाले वित्तीय नुकसान को ध्यान में रखते हुए, मज़दूर यूनियन कार्य समिति ने सर्वसम्मति से उक्त पुनर्गठन प्रस्ताव का विरोध करने का निर्णय लिया है।
एक ओर जहां प्रबंधन की गलत और लगातार बदलती नीतियों ने बिजली कर्मचारियों में भ्रम और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है, वहीं प्रशासन बिना कोई ठोस कदम उठाए समय-समय पर नई एकतरफा नीतियां थोपने की कोशिश कर रहा है। आज जहां समानांतर बिजली वितरण लाइसेंस वाले 329 बिजली सबस्टेशनों को निजी पूंजीपतियों को सौंपने का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, वहीं संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य का दर्जा प्राप्त महावितरण कंपनी और इस कंपनी के सभी कर्मचारियों के हितों की रक्षा करके राज्य को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए एक स्थायी और सकारात्मक नीति बनाने की जरूरत है। परंतु, इस दृष्टिकोण से कोई ठोस कदम उठाए बिना, महावितरण कंपनी के अस्तित्व पर ही हमला करने की कोशिश की जा रही है। कार्रवाई समिति ने सर्वसम्मति से ऐसे प्रयासों के लिए जिम्मेदार लोगों का विरोध करने का निर्णय लिया है। इसके कारण इस प्रकार हैं:
1) केंद्र सरकार ने विद्युत उद्योग के पुनर्गठन, अर्थात् धारा 14 और 15 के आधार पर निजी निवेशकों/पूंजीपतियों को विद्युत वितरण क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने हेतु विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक 2003 को 2014 से समय-समय पर संसद में पारित कराने के लिए प्रस्तुत किया है। उक्त संशोधन विधेयक अभी तक पारित नहीं हुआ है और अधिनियम में अभी तक संशोधन नहीं किया गया है। अतः प्रस्तावित पुनर्गठन सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं है।
2) ट्रेड यूनियनों को प्राप्त पुनर्गठन प्रस्ताव मुख्यतः स्टाफिंग नमूना और कार्य-मानदंडों से संबंधित है। इस संबंध में, संदर्भ संख्या 3 और 4 के अनुसार, पहले भी इसी प्रकार का प्रस्ताव स्वीकृत किया जा चुका है। परंतु, इसके कार्यान्वयन की वास्तविकता और इसके अनुकूल या प्रतिकूल प्रभावों को अभी तक ट्रेड यूनियनों के समक्ष नहीं रखा गया है।
3) महावितरण कंपनी में कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 30% से 32% पद रिक्त होने और कंपनी की वित्तीय प्रगति व ग्राहक सेवा पर इसके दूरगामी प्रभाव पड़ने के बावजूद रिक्त पदों को क्यों नहीं भरा गया? इस संबंध में मज़दूर यूनियनों को भी कोई जानकारी नहीं दी गई है।
4) मज़दूर यूनियनों को अभी तक इस पुनर्गठन के लिए ज़िम्मेदार कंपनी से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। इसी तरह, यूनियनों को इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं दी गई है कि किन अन्य राज्यों ने इस तरह का पुनर्गठन लागू किया है और इसके क्या सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव देखे गए हैं। इसी तरह, इस बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है कि प्रस्तावित पुनर्गठन से वास्तव में क्या हासिल होगा, और राजस्व में होने वाली किसी भी हानि की ज़िम्मेदारी किसकी होगी।
5) केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा फरवरी 2025 में प्रकाशित एकीकृत रिपोर्ट में महावितरण कंपनी को अंतिम स्थान दिया गया है। प्रबंधन ने मज़दूर यूनियनों के समक्ष इस बारे में कोई स्पष्टता प्रस्तुत नहीं की है कि इस स्थिति के लिए कौन से कारक या प्रबंधन की गलत नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं।
6) संसद में अभी तक विद्युत अधिनियम संशोधन विधेयक पारित नहीं हुआ है, वहीं महावितरण कंपनी के 329 बिजली उपकेंद्रों को निजी पूंजीपतियों को सौंपने की अवैध प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। तो क्या महावितरण कंपनी के उपकेंद्रों को निजी पूंजीपतियों को सौंपकर और राज्य में निजी समानांतर बिजली वितरण व्यवस्था लागू करके राजस्व घाटा पैदा करने के उपाय करने के लिए यह गलत पुनर्गठन प्रस्ताव लाया जा रहा है? ऐसा प्रश्न राज्य की जनता और बिजली कर्मचारियों के सामने खड़ा हो गया है।
इसलिए, चूंकि ट्रेड यूनियनों के सामने रखा गया पुनर्गठन मॉडल अधूरा, अवास्तविक और अव्यवहारिक है और इसमें महावितरण कंपनी के भविष्य के सशक्तिकरण के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, इसलिए कार्रवाई समिति में भाग लेने वाले सभी यूनियन ने पुनर्गठन प्रस्ताव का विरोध किया है। साथ ही, यदि उक्त नीति के कार्यान्वयन को नहीं रोका गया तो बिजली कर्मचारियों में उत्पन्न असंतोष को देखते हुए, 01.10.2025 से विरोध करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है। विरोध के चरणों की जानकारी 30.09.2025 से पहले दी जाएगी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चूंकि प्रबंधन जानबूझकर इस तरह की हड़ताल को थोपने की कोशिश कर रहा है, इसलिए इस हड़ताल के कारण औद्योगिक शांति भंग होने या ग्राहक सेवा पर पड़ने वाले किसी भी प्रभाव के लिए प्रशासन पूरी तरह से जिम्मेदार होगा।
आपसे अनुरोध है कि आप अपने स्तर पर महावितरण कंपनी के प्रबंधन को प्रस्तावित गलत पुनर्गठन प्रस्ताव के क्रियान्वयन को रोकने के निर्देश दें। साथ ही भविष्य में अनुचित निजीकरण को रोकने तथा समानांतर बिजली वितरण लाइसेंस देने की नीति को त्यागने के लिए अपने स्तर पर एक बैठक आयोजित करें और राज्य के हितों के साथ-साथ कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों के हितों की दृष्टि से एक प्रभावी नीति तय करें।
भवदीय,
कार्यवाही समिति में भाग लेने वाली यूनियनें