(अंग्रेजी में संपादकीय का हिन्दी अनुवाद)
रेलवे की संपत्ति का मुद्रीकरण राष्ट्र और रेल कर्मियों के हित में नहीं
सार्वजनिक संपत्तियों की बिक्री के संबंध में भारत सरकार द्वारा घोषित मुद्रीकरण नीति जिसमें भारतीय रेलवे, सड़क परिवहन, बिजली, दूरसंचार, भंडारण, खनन, विमानन, बंदरगाह जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ रेलवे स्टेडियमों के साथ-साथ शहरी रियल एस्टेट भी शामिल हैं, वह जन-विरोधी, मजदूर-विरोधी और गरीब-विरोधी है। इसलिए नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (NFIR) सरकार के फैसले का विरोध करता है।
नीति बनाते समय सरकार ने इस तथ्य को नज़रअंदाज कर दिया कि ये महत्वपूर्ण संपत्ति पूरे राष्ट्र की है और किसी की व्यक्तिगत नहीं है। यह दुखद है कि सरकार भारतीय रेलवे की भूमिका को पहचानने में विफल रही है जो कि राष्ट्र की जीवन रेखा है क्योंकि यह लोगों के सभी वर्गों को, खासकर देश के गरीबों और दलितों को सेवाएं प्रदान कर रही है। भारत के 2.30 करोड़ से अधिक लोग प्रतिदिन रेलवे ट्रेनों से यात्रा करते हैं और भारतीय रेलवे ने वर्ष 2020-21 में 1234 मिलियन टन से अधिक माल ढुलाई करके महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। कोविड -19 महामारी का सामना करना और पूरे देश को निर्बाध आपूर्ति लाइन सुनिश्चित करने के लिए भारतीय रेलवे और उसके कर्मचारियों को पुरस्कृत करने के बजाय, सरकार कुछ व्यक्तिगत इजारेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण संपत्तियों के मुद्रीकरण का सहारा ले रही है।
रेल कर्मचारियों का मानना है कि निजी ऑपरेटरों को राष्ट्र पी. वे ट्रैक, स्टेशन, सिग्नलिंग आदि का उपयोग करके ट्रेनें चलाने की अनुमति दिया जाना अत्यधिक अनुचित होगा। लेकिन दुख की बात है कि सरकार निजी संस्थाओं को राष्ट्र की संपत्ति का उपयोग करने और राष्ट्र और आम लोग की कीमत पर भारी मुनाफा कमाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सूत्रधार बनना चाहती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि निजी कंपनियों द्वारा किराए में बढ़ोतरी का सहारा लिया जाएगा, जो भारतीय रेलवे को भारतीय आबादी के निम्न आय वर्ग की पहुंच से बाहर कर देगा। यदि निजी संस्थाओं को यात्री ट्रेनों के संचालन की अनुमति दी जाती है तो भारत के लोगों को बहुत बुरी तरह से नुकसान होगा क्योंकि निजी व्यक्ति टिकट का किराया बहुत अधिक लेंगे क्योंकि उन पर कोई नियंत्रण नहीं होगा।
भारत सरकार को रेलवे संपत्तियों के मुद्रीकरण, यात्री ट्रेनों को निजी संस्थाओं को सौंपने और उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण के अपने निर्णय की राष्ट्र के और साथ ही रेल कर्मचारियों हित में समीक्षा करनी चाहिए जो क्योंकि रेल कर्मचारी भारत सरकार के इस फैसले से क्षुब्ध और आक्रोशित हैं.
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