केईसी संवाददाता की रिपोर्ट
महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC, जिसे एसटी के नाम से जाना जाता है) के कार्यकर्ता राज्य सरकार के साथ विलय की अपनी प्राथमिक मांग के लिए नवंबर 2021 से जुझारू और दृढ़ता से लड़ रहे हैं। कामगार एकता कमिटी (केईसी) कार्यकर्ताओं की टीमों ने भिवंडी, ठाणे और पुणे के विभिन्न डिपो और आजाद मैदान, मुंबई में बैठे श्रमिकों के साथ मुलाकात की और एकजुटता व्यक्त की। उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया और उन्हें अपने संगठन की ओर से बोलने को कहा गया।
केईसी के सदस्यों ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और उनकी एकता और अटूट भावना की सराहना की। “एसटी वर्कर्स एकता जिंदाबाद” और “एसटी वर्कर्स स्ट्राइक जिंदाबाद” जैसे साइट पर मौजूद सभी लोगों के नारे बड़ी ऊर्जा के साथ गूँज रहे थे!
प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं ने ताली बजाकर AIFAP का स्वागत किया और इस बात पर सहमति जताई कि निजीकरण का किसी भी रूप में विरोध करने के लिए सभी क्षेत्रों के श्रमिकों और उपभोक्ताओं की एकता समय की आवश्यकता है! वे AIFAP द्वारा लाए गए समर्थन वक्तव्य के साथ-साथ उपभोक्ताओं को संबोधित पुस्तिका से बहुत खुश थे और उसे अपने साथियों के बीच उन्होंने उत्सुकता से वितरित किया ।
बहुत पीड़ा के साथ उन्होंने उन 40 एसटी श्रमिकों के प्रति सरकार के कठोर रवैये के बारे में बात की जिन्होंने पिछले 1 साल में बहुत कम और अनियमित वेतन के कारण आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे सरकार उनकी एकता को तोड़ने के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए, लगभग 40 श्रमिकों को 27 अक्टूबर को बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि वे ड्यूटी पर नहीं लौटे थे। लेकिन हड़ताली मजदूरों की एकता को किसी चीज ने नहीं हिलाया और वे अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं। हालांकि राज्य सरकार ने कुछ वेतन वृद्धि का वादा करके श्रमिकों को काम पर वापस लाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने घोषणा की है कि वे तब तक काम पर नहीं लौटेंगे जब तक कि राज्य सरकार के साथ विलय की उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती।
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एसटी कर्मचारियों का संघर्ष जायज है । तथाकथित संसदीय लोकतंत्र में ही यह संभव हो सकता है जब सरमायदारी व्यवस्था निहित उनकी पार्टी रूपी मैनेजर सरकारें , सार्वजनिक संपत्ति को कौड़ियों के दाम पूंजीपतियों को बेच रही हैं । एस टी का निजीकरण होने का अर्थ है सर्व सामान्य लोगों की जेब पर हमला । जो परिवहन सेवा आज एस टी गांव गांव तक पहुंचा पा रही है उसका खात्मा करने की राह पर है। कर्मचारियों की मांगे बहुत ही मौलिक और जरूरी है । अनियमित वेतन देकर क्या यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सार्वजनिक सेवा जो एक बुनियादी कर्तव्य है उसमे कार्यरत लोगों के प्रति सरकारों की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? यह तर्क न्यायसंगत नहीं और मान्य भी नहीं कि एक तरफ़ पूंजीपति को सहूलियत देने के के लिए लाखों करोड़ों की सब्सिडी तो है परंतु सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों के प्रति इतनी लापरवाही ! बुनियादी वेतन और अधिकारों के लिए सड़कों पर आकर संघर्ष करना लाजमी है ।
एस टी का संघर्ष मा कर्मचारियों का न होकर आम लोगों का भी है क्योंकि हम सभी इन सेवाओं से कहीं न कहीं जुड़े हैं। एसटी का निजीकरण मतलब निजी घरानों के लिए मुनाफे कमाने का सुनहरा मौका । सामान्य लोगों के प्रति यह दृष्टिकोण दिखाता है कि निजी इजारेदार घरानों के लिए ही सरकारें इच्छुक हैं । सरकारों को बदलना हल नहीं है बल्कि इस राज्य यंत्रणा को बदलना जरूरी हो गया है।