रेलवे में आउटसोर्सिंग और कर्मचारियों के अधिकारों की अनदेखी

राकेश चन्द्र वर्मा द्वारा
महामंत्री, ऑल इंडिया रेलवे ट्रैकमेन्टेनर यूनियन, पूर्वोत्तर रेलवे

16 अप्रैल 1853, वह दिन जब भारत मे पहली बार ट्रेन चली जिसकी कल्पना भी कभी नहीं की गई थी वह दिन भारत के स्वर्णिम इतिहास में जुड़ा किंतु उस ट्रेन को चलाने से लेकर अब तक भारतवर्ष के प्रत्येक राज्य के कोने कोने तक रेल परिवहन का जो जाल सा फैल गया है यह संभव हुआ तो श्रम और श्रमिकों की इच्छाशक्ति से।

रेल परिवहन आज भी भारत में सबसे सस्ता और सबसे सुरक्षित यात्रा का साधन है तभी तो आज के परिदृश्य में देखा जाए तो हमारे देश में जो भी सबसे सस्ती चीजें तंत्र या यूं कहिए उपक्रम हैं उन पर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों की नजरें गड़ी हुई है।

येन केन प्रकारेण उस पर अपना आधिपत्य स्थापित करके उस क्षेत्र में मुनाफाखोरी शुरू करना और चंद दिनों में ही उस सेक्टर में कीमतों का बढ़ जाना, आज एक आम सी बात हो चली है। रेलवे भी इससे अछूता नहीं है। कॉर्पोरेट घरानों की नजरों में आते ही आज रेलवे में चारों तरफ आउटसोर्सिंग का बोलबाला सा हो गया है। रेलवे का प्रत्येक कार्य आउटसोर्सिंग की भेंट चढ़ गया है। यहां पर मैं एक बात साफ करना चाहता हूं कि आउटसोर्सिंग के माध्यम से किया गया प्रत्येक कार्य और उसकी गुणवत्ता बहुत ही दयनीय होती है क्योंकि मुनाफाखोरी प्रत्येक प्राइवेट कंपनी का मूल उद्देश्य होता है।

यह भारत सरकार की लचर नीति ही है जिनकी वजह से सबसे पहले सरकारी उपक्रम को घाटे में होना दिखाया जाता है, तत्पश्चात कर्मचारियों पर कम क्रियाशील होने का आरोप-प्रत्यारोप लगाया जाता है। हर एक सरकारी उपक्रम को पहले आज की मीडिया के माध्यम से बदनाम सा किया जाता है, तत्पश्चात उसको खुद की जागीर समझ कर नीलाम किया जा रहा है।

यहां पर प्रश्न यह उठता है कि यदि सरकारी उपक्रम घाटे में हैं तो कोई प्राइवेट कंपनी उसको किस आधार पर खरीद रही है और सरकार किस अधिकार से उसकी नीलामी कर रही है, जिसको सोचने का काम हमारे देश के प्रत्येक नागरिक द्वारा किया जाना है।

सरकार में बैठे चंद लोग ही इस बात का निर्णय किस आधार पर ले लेते हैं? यदि आज सरकार चलाने के लिए इनको नीलाम करना और नीलाम करके धनराशि इकट्ठा करना और फिर सरकार चलाना, यह एकमात्र रास्ता बचा है तो सोचने वाली बात यह है कि भविष्य में जो सरकारें आएंगी वह किस प्रकार से सरकार चलाएंगे। उनके लिए तो कोई तंत्र बचेगा नहीं जिनको वह बेच सकें या नीलाम कर सकें और ना ही कोई सरकारी तंत्र बचेगा जो उनको कमाई करके देगा।

यह हम आप और तमाम देश के नागरिकों को विचार करना है कि यह जो सरकारी तंत्रों को बेचने की, नीलाम करने की होड़ लगी हुई है इस पर लगाम लगाने के लिए किस प्रकार से रणनीति तैयार की जाए। कैसे देश को बर्बाद होने से बचाया जाए तथा भारत जहां इस समय विश्व में सबसे अधिक युवा शक्ति है उसका सदुपयोग करके रोजगार सृजित करके देश को प्रगति के रास्ते पर अग्रसर किया जाए।

देश के तमाम छोटे से लेकर के बड़े तक संगठनों से मैं अपील करता हूं कि सभी एकजुट होकर पूंजीवाद और इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करें जिससे हमारी आने वाली पीढ़ियां स्वतंत्र भारत में स्वतंत्रता पूर्वक सांस ले सकें और उनका भविष्य अंधकारमय ना होने पाए।

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Pratibha
Pratibha
2 years ago

आउटसोर्सिंग सेवा की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। यदि कर्मचारी योग्य और प्रशिक्षित नहीं हैं, तो यह यात्रियों और रेलवे को जोखिम में डाल देगा। साथ ही ठेके पर रखे गए ऐसे कर्मचारियों का शोषण किया जाएगा और उन्हें बहुत कम वेतन दिया जाएगा। इसलिए बेहतर सेवा या रोजगार के अवसर पैदा करना दोनों ही झूठ हैं।
आउटसोर्सिंग निजीकरण शुरू करने का एक रूप है, चाहे मंत्री कुछ भी कहें। सरकार का यह कर्तव्य है कि वह लोगों को सही तरीके से भर्ती करके रिक्त पदों को भरें।