28-29 मार्च 2022 को मजदूरों की देशव्यापी दो दिवसीय, संयुक्त किसान मोर्चा समर्थित, हड़ताल के लिए केद्रीय ट्रेड यूनियनों एवं स्वतंत्र फेडरेशनों के संयुक्त मंच का घोषणा-पत्र

मजदूरों की देशव्यापी दो दिवसीय हड़ताल
28-29 मार्च 2022
संयुक्त किसान मोर्चा समर्थित
घोषणा-पत्र

पिछले 3 दशकों के दौरान केंद्र सरकार की नव उदारवादी आर्थिक नीति तथा कॉर्पोरेट सरकार गठजोड़ के षड्यंत्र के कारण मेहनतकश जनता का जीवन, आजीविका एवं अधिकारों पर बहुआयामी हमले होते आ रहे हैं। जिसे देश के मजदूर वर्ग के संयुक्त विरोध कार्रवाईयों के जरिए धीमा करने का प्रयास किया, लेकिन कॉर्पोरेट को दिया गया चुनाव पूर्व आश्वासन, व्यापार करने की आसानी (Ease of Doing Business) का बेहतर दर्जा सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान सरकार द्वारा और तेज कर दिया गया है। जनविरोधी कॉर्पोरेट-परस्त नीतियों के कारण कोरोना महामारी के पहले से ही मेहनतकश जनता के जीवन स्तर पर गहरा संकट छा गया था। इसके बावजूद कोरोना महामारी काल में ‘आपदा को अवसर’ बनाकर केंद्र सरकार ने देश-विदेश के कॉर्पोरेट के हित में लगातार ऐसे कदम उठायी, जिससे छात्रों, बेरोजगारों, युवाओं, महिलाओं, असंगठित-मजदूरों, कर्मचारियों, किसानों और छोटे व्यापारियों आदि का जीवन तबाह हो गया।

# एक तरफ छात्र समुदाय का बड़ा हिस्सा शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं और शिक्षित, बेरोजगार युवा नौकरी की तलाश कर रहे हैं, दूसरी ओर, रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव और कार्यस्थलों पर काम की स्थिति जैसे, तालाबंदी छंटनी, वेतन कटौती, कम के घंटे आदि में वृद्धि के कारण असंगठित मजदूरों, शहरी स्वनियोजित गरीबों, कामकाजी महिलाएं, परिवार की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो गये, उत्पादन और खपत की स्थिति का द्योतक, भारतीय जीडीपी विकास दर प्रमुख देशों में सबसे कम है। इसके विपरीत इस दौरान बड़े कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति में 40% तक की वृद्धि हुई हैं।

# कोविड महामारी के दौरान एक तरफ प्रवासी मजदूरों जैसे हाशिये पर पड़े तबके को सरकार के अमानवीय चेहरे का सामना करना पड़ा। वहीं दूसरी ओर सरकारी स्वास्थ्य सेवा की खराब स्थिति के कारण हजारों अपरिहार्य मौतें हुईं, स्वास्थ्य सेवा की बड़े पैमाने पर निजीकरण के चलते जनता को कॉर्पोरेट लूट के लिए छोड़ दिया गया, सरकार ने प्रारंभिक चरण में सामूहिक टीकाकरण को भी निजी हाथों में डाल दिया था, लेकिन जनता के दबाव और न्यायपालिका कें निर्णय के कारण पीछे हटना पड़ा। कोविड वैक्सीन के 100 प्रतिशत उत्पादन और 25% कारोबार मुनाफाखोरी के लिए छोड़ दिया गया है। एक तरफ बेशर्मी से मुफ्त टीकाकरण का प्रचार किया जा रहा है, दूसरी ओर तथाकथित मुफ्त टीकाकरण के लिए पेट्रोलियम के उच्च उत्पाद शुल्क और करों को उचित ठहराया जा रहा है। पीएम केयर फंड संग्रह और आवंटन भी संदिग्ध बना हुआ है। 20 लाख करोड़ रुपए के तथाकथित पैकेज को गरीबों को राहत देने के नाम पर एक धोखाधड़ी के रूप में ही उजागर हुआ है। उस पैकेज के लिए सरकारी खजाने से वास्तविक खर्च जीडीपी का केवल 1.5% है, क्योंकि वास्तव में शेष राशि सरकारी गारंटी के साथ ऋण मात्र है।

# कोविड की दूसरी लहर के दौरान, 23 करोड़ श्रमिकों की कमाई, वैधानिक न्यूनतम मजदूरी (जो पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों से कम था) से कम हो गया था, नतीजतन, मेहनतकश लोगों के बीच भूख की तीव्रता खतरनाक रूप से बढ़ गई है, भारत 107 देशों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 101वें स्थान पर आ गया है। अमीर और गरीब की कमाई का अंतर खतरनाक स्थिति में चला गया है, सबसे अमीर एक प्रतिशत की 70% है और सबसे गरीब 50% की कुल आय मात्र 10% है। लगभग आधी आबादी को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया गया है।

# दूसरी ओर, “न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन” तथा देशभक्तिपूर्ण लोकप्रिय नारे, “आत्मनिर्भरता” की आड़ में केंद्र सरकार द्वारा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण और लाभकारी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों जैसे रेलवे, रक्षा उत्पादन, बैंक, बीमा, बीएसएनएल, स्टील, कोयला खनन, खनिज संसाधन, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, बिजली, एयरलाइंस और हवाई अड्डे, बंदरगाह, राजमार्ग, दूरसंचार और डाकसेवाएं आदि को विनिवेश के नाम पर अपने चहेते कारपोरेटों के हाथों बेचा जा रहा है कॉर्पोरेट टैक्स की दर को लगातार कम किया जा रहा है, कर भुगतान के समय में छूट दी जा रही है, कॉरपोरेट्स को भारी कर्ज दिया जा रहा है और उसके बाद विलफुल डिफॉल्टरों द्वारा ऋण चुकौती माफ की जा रही है, इस प्रकार ऋण जारी करने वाले बैंकों को भारी नुकसान हो रहा है। अब इन बैंकों को उन्हीं कॉरपोरेट्स को सौंपने की योजना बनाई जा रही है। ये सभी सरकारी खजाने को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे हैं, इस संकट को दूर करने के लिए राष्ट्रीय संपत्ति का मुद्रीकरण (NMPP) किया जा रहा है। (राष्ट्रीय राजमार्ग, ट्रेन, रेलवे स्टेशन, पावर ग्रिड की ट्रांसमिशन लाइन, पनबिजली परियोजनाओं, गैस और तेल कंपनियों की पाइपलाइन आदि को मामूली राशि के बदले निश्चित समय के लिए कारपोरेट लूट के लिए सौंपना)।

# इसके विपरीत तथाकथित धन की कमी की दलील के तहत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं मनरेगा, आईसीडीएस आदि के लिए बजट आवंटन में भारी कटौती की गई है, सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में नियुक्तियां लगभग ठप्प पड़ी हैं, आउटसोर्सिंग, स्कीम वर्कर्स, ठेकेदारी के तहत नौकरी आदि के कारण न केवल नौकरियों की गुणवत्ता और गरिमा खराब हुई, आदिवासी, अनुसूचित जाति पिछड़े वर्ग एवं अन्य के लिए नौकरियों के आरक्षण की गुंजाइश हाशिए पर चला गया है।

# राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के कारण सरकारी कर्मचारियों को पहले ही भारी नुकसान हो चुका है। NPS अब व्यक्तिगत अंशदान के माध्यम से गैर कर्मचारियों के लिए भी लागू है। विशाल NPS फंड को पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) के पर्यवेक्षण और नियामक नियंत्रण से बाहर किया जा रहा है। नतीजतन, कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होने के कारण सामाजिक सुरक्षा और जनता की बचत की भारी मात्रा को कॉर्पोरेट लाभ तथा सट्टा बाजार के लिए उजागर किया जा रहा है और इससे सेवा निवृत्त वरिष्ठ नागरिकों के लिए असुरक्षा का खतरा बढ़ रहा है।

# इतना ही नहीं, कॉरपोरेट्स सेवा में कृषि और कृषि व्यापार संबंधी जनविरोधी तीन कानून अब आंदोलन के बाद निरस्त कर दिया गया है। बिजली संशोधन बिल, मोटर वाहन संशोधन विधेयक के साथ-साथ 29 श्रम कानूनों को निरस्त करते हुए चार लेबर कोड पारित किए गए हैं। लेबर कोड लागू करने का एकमात्र उद्देश्य, नियोक्ता वर्ग के पक्ष में, काम करने की स्थिति तथा कानूनी अधिकार, कार्य दिवस को बढ़ाने, सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार और ट्रेड यूनियन अधिकारों को पूरी तरह से ध्वस्त करना है।

# आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। इस मूल्यवृद्धि के लिए पूरी तरह से सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। अमीरों को लाभ पहुंचाने के लिए एक तरफ भेदभावपूर्ण प्रत्यक्ष कर नीति बनायी गयी है और दूसरी तरफ, उच्च GST दर, उत्पाद शुल्क, सेस आदि के माध्यम से आम लोगों पर भारी अप्रत्यक्ष कर लगाया जा रहा है। पेट्रोल, डीजल, गैस की कीमतें लगभग दैनिक आधार पर वृद्धि की जाती हैं, जिससे सभी वस्तुओं सार्वजनिक परिवहन और अन्य सेवाओं पर मूल्यवृद्धि का व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। सरकारी राजस्व का लगभग आधा हिस्सा ईंधन से आ रहा है। स्वास्थ्य, चिकित्सा, शिक्षा आदि सहित लगभग सभी सार्वजनिक उपयोगिताओं पर उच्च सेवा कर (सर्विस टैक्स), संकट की तीव्रता को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।

# मेहनतकश वर्ग, इस अत्याचारी और विनाशकारी नीति के खिलाफ शुरू से ही संघर्ष करते आ रहा है। ऐतिहासिक संघर्ष के बाद किसान संगठनों के संयुक्त मंच ने प्रारंभिक जीत हासिल की है और अभी भी हुए वैधानिक MSP सह 6 बिंदु मांगों के लिए संघर्ष कर रहा है, राष्ट्रविरोधी विनाशकारी नीति के खिलाफ पूरे देश में ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों के संयुक्त आंदोलन और कार्रवाई एक नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। ट्रेड यूनियनों के लगातार संघर्षों ने भी कुछ परिणाम लाए हैं। बैंक कर्मचारियों की शानदार हड़ताल के बाद शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित बैंक निजीकरण बिल टला है। यूपी में बिजली वितरण कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव आंदोलन के बाद टला है, सरकार ने सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (CEL) के निजीकरण पर रोक लगा दी है। विजाग स्टील के निजीकरण के कदम के खिलाफ वीरतापूर्ण संघर्ष एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है। इसी तरह कोयला, इस्पात, बीमा क्षेत्रों में भी संघर्ष जारी है। रेलकर्मी, डाक और तार कर्मचारी भी संघर्ष के पथ पर हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगातार संघर्ष के कारण चार श्रम संहिताओं को टाला जा रहा है।

# लेकिन आत्मसंतुष्टता की कोई गुंजाइश नहीं है। सत्तावादी तरीके से “आवश्यक रक्षा सेवा अधिनियम, 2021”, (EDSA) के जरिए आयुध कारखानों के निजीकरण के कदम के खिलाफ अनुकरणीय संघर्ष को समाप्त कर दिया गया। किसान संघर्ष को बदनाम करने तथा कुचलने के लिए कोई कदम सरकार और उनके एजेंटों द्वारा नहीं छोड़ा गया था। कॉर्पोरेट के हितों में आर्थिक मामले में विनाशकारी नीति के साथ-साथ सरकार सत्तावादी उपायों को अपनाते हुए, लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को ध्वस्त करने में अति सक्रियता दिखाते हुए, बुनियादी संसदीय प्रावधानों सहित सभी संवैधानिक मानदंडों को भी कुचल रही है। असहमति और विरोध को दबाने के लिए सरकार द्वारा गिरफ्तारी, हिरासत, राजद्रोह की धारा UAPA आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही, सरकार प्रायोजित सांप्रदायिक विभाजनकारी ताकतों द्वारा लोगों का ध्यान गैर-मुद्दों की ओर हटाने और सांप्रदायिक, जातिवादी विभाजन के आधार पर लोगों को विभाजित करने और ध्रुवीकरण करने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसलिए यह सिर्फ प्रतीकात्मक प्रदर्शनकारी विरोध का समय नहीं है। बल्कि लगातार प्रतिरोध और अवज्ञा का समय है।

# इस प्रतिगामी नीति सत्तावादी शासन व्यवस्था तथा कॉर्पोरेट वर्ग और शासन में उनके एजेंट की निर्णायक हर सुनिश्चित करने के लिए हम मजदूर किसान के संयुक्त संघर्ष को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना चाहिए और इसके लिए हमारा नारा होना चाहिए : “जनता बचाओ – देश बचाओ”। इसी क्रम में कानूनों और आर्थिक नीतियों में कॉर्पोरेट पक्षीय बदलाव, मेहनतकश आम जनता के आजीविका की दयनीय स्थिति महंगाई, बेरोजगारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेश निजीकरण एवं राष्ट्रीय संपत्ति की लूट और लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमलों के खिलाफ 11 नवंबर 2021 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय श्रमिक सम्मेलन में दो दिन की देशव्यापी हड़ताल करने का निर्णय लिया गया।

28 व 29 मार्च, 2022 को 2 दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल की मुख्य मांगें:

01) 4 श्रम संहिता (LABOUR CODES) एवं आवश्यक रक्षा सेवा अधिनियम (EDSA) को रद्द करो;

02) संयुक्त किसान मोर्चा के 6 सूत्री मांगों को पूरा करो;

03) किसी भी रूप में निजीकरण, विनिवेश और एनएमपी (National Monetary Pipeline) के प्रयासों को समाप्त करो;

04) आयकर भुगतान के दायरे से बाहर वाले परिवारों को प्रतिमाह 7,500 रुपए की आय और खाद्य-सहायता सुनिश्चित करो;

05) मनरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि और शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना का विस्तार सुनिश्चित करो;

06) अनौपचारिक क्षेत्रों के कामगारों एवं GIG WORKERS के लिए कानूनी तथा सामरिक सुरक्षा सुनिश्चित करो;

07) आंगनबाड़ी आशा सहयोग मध्याह्न भोजन जैसे स्कीम कर्मचारियों के लिए वैधानिक न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करो;

08) ठेकेदार कामगारों और स्कीम वर्करों का नियमितीकरण तथा समान कम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करो;

09) NPS रद्द करो; पुरानी पेंशन स्कीम लागू करो; EPS के तहत न्यूनतम पेंशन राशि में पर्याप्त वृद्धि सुनिश्चित करो;

10) महामारी के दौरान लोगों की सेवा करने वाले फ्रंट लाइन कामगारों के लिए उचित सुरक्षा और बीमा सुविधाएं सुनिश्चित करो;

11) पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क कम करो और मूल्य वृद्धि पर रोक लगाने के लिए कारगर उपाय सुनिश्चित करो;

12) राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और सुधारने के लिए धनकर (WEALTH TAX) आदि के माध्यम से अमीरों पर कर लगाकर कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य महत्वपूर्ण जन सुविधाएं के क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि किया जाए !

एवं
संयुक्त मंच और स्वतंत्र फेडरेशनों की अन्य लम्बित मांगें
: आवाहक :

इंटक (INTUC), ऐटक (AITUC), सीटु (CITU), ऐक्टु (AICCTU), AIUTUC, HMS, JWU (झारखंड राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ), FMRAI, AIBEA, BEFI, NCBE, IEAJD, ….

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