महिलाओं और श्रमिकों की मुक्ति साथ-साथ होगी

सुश्री शीना अग्रवाल, पुरोगामी महिला संगठन (PMS) द्वारा

हमारे देश के मजदूर 28 और 29 मार्च 2022 को दो दिवसीय अखिल भारतीय हड़ताल की तैयारी में लगे हुए हैं। यह हड़ताल केंद्र सरकार की मजदूर विरोधी और जनविरोधी नीतियों के खिलाफ और उनकी मांगों के चार्टर या मांगपत्र की पूर्ति के लिए है। वे सरकार के पूंजीवाद समर्थक निजीकरण अभियान के खिलाफ एक के बाद एक संघर्ष कर रहे हैं। देश के किसानों ने एक साल से अधिक समय तक किसान विरोधी, जनविरोधी कृषि बिलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और सरकार के अधूरे वादों के लिए अपने संघर्ष को जारी रखने का फैसला किया है। सरकार के द्वारा लोगों पर नीतियां थोपनेवले बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के खिलाफ मजदूरों और किसानों दोनों की लड़ाई है, यह समझते हुए अखिल भारतीय हड़ताल में शामिल होने का किसनों ने भी फैसला किया है। मज़दूरों और किसानों दोनों की लड़ाई अंततः एक शोषण-मुक्त समाज के निर्माण के लिए है जहाँ पूंजीपतियों के बजाय लोग केंद्र-मंच पर होंगे।

हमारे देश में महिलाएं भी आज समाज में सभी को प्रभावित करने वाले संघर्षों में शामिल हैं – सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण के खिलाफ संघर्ष, और स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं के खिलाफ संघर्ष, चार श्रम संहिताओं के माध्यम से हमारी आजीविका और अधिकारों पर हमलों के खिलाफ संघर्ष, आजीविका की सुरक्षा, न्यूनतम मजदूरी और काम की बेहतर स्थिति की मांग को लेकर आंगनबाडी कार्यकर्ताओं, आशा और मिड डे मील वर्कर, स्वास्थ्य कर्मियों, नर्सों, डॉक्टरों और अस्पताल कर्मियों, शिक्षकों और अन्य सेवाओं में महिलाओं के संघर्ष, इ.। वे समान काम के लिए समान वेतन के अधिकार के लिए, पारिवारिक संपत्ति के समान हिस्से के अधिकार के लिए, किसान महिलाओं के लिए जो वे जोतती हैं उस ज़मीन पर अधिकार के लिए, आदिवासी महिलाओं के अपने जंगलों, वन उपज और पानी के स्रोत पर अधिकार के लिए (जल-जंगल-ज़मीन )लड़ रही हैं। । वे राज्य द्वारा संगठित सांप्रदायिक हिंसा और राज्य के आतंक के खिलाफ संघर्ष और धर्म के आधार पर हमारे लोगों को विभाजित करने के राज्य के प्रयासों, जाति उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष, कार्यस्थल पर, घर पर और सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ संघर्ष में सक्रिय रूप से शामिल हैं।

किसानों के संघर्ष में महिलाओं को बड़ी संख्या में शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया गया। महिलाओं का ट्रैक्टर चलाना, ट्रैक्टर ट्रॉलियों के काफिले का नेतृत्व करना और शासकों से सवाल करने के लिए और अपनी माँगे पेश करने के लिए लाखों विरोध करने वाले किसानों का देश की राजधानी में प्रवेश करना,, यह कोई रोज़ का नज़ारा नहीं है! और यह निश्चित रूप से ऐसी स्मृति नहीं है जिसे बहुत आसानी से भुलाया जा सके। पूरी लड़ाई के दौरान किसानों के विरोध स्थलों पर महिलाओं की उत्साहजनक उपस्थिति देखी गई। आंदोलन में महिला किसान न केवल मौजूद थीं, बल्कि उन्होंने सामने से पुलिस बैरिकेडिंग, तोप और आंसू गैस के हमलों का डटकर मुकाबला भी किया। महिलाओं को नेतृत्व करने की और पहल लेने की आवश्यकता है, ये किसानों के संघर्ष ने स्वीकार किया और व्यवहार में प्रदर्शित किया। 18 जनवरी को आंदोलन में महिलाओं के योगदान का जश्न मनाने के लिए आरक्षित दिन के रूप में चुना गया था। विरोध मंच चलाने और पूरे दिन कार्यवाही चलाने के लिए महिलाएं जिम्मेदार थीं।

महिलाओं ने पूरे संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और साल भर की लड़ाई की वे रीढ़ थीं। उन्होंने विरोध स्थलों पर बड़ी संख्या में बारी-बारी से प्रदर्शन किया, और उन्होंने जागरूकता फैलाने और लोगों को लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैकएंड या अपने गावों में भी लगन से काम किया। उन्होंने दिन में खेतों में जिम्मेदारियों को संभाला और पंजाब के गांवों में घूमने और लोगों के बीच संघर्ष का संदेश फैलाने के लिए “जागो” रातों का आयोजन किया। दिल्ली की सीमाओं पर भी, जब किसानों के विरोध के कारण स्थानीय लोग बाधाओं से नाखुश थे, महिलाओं ने बाहर जाकर किसानों की उचित मांगों और लड़ाई के बारे में स्थानीय लोगों से बात करने की पहल की। इसे विरोध के लिए लोगों का भरपूर समर्थन मिला, जिसकी बहुत जरूरत थी। बाद में यह भी देखा गया कि लोगों ने विरोध करने वाले किसानों को खान पान दिया और यहां तक कि अपने घरों को भी जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करने के लिए दरवाज़े खोल दिए। किसी भी विरोध स्थल पर रसोई चलाना महिलाओं की प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं थी। इसके अलावा, जब पूछा गया या साक्षात्कार किया गया, तो कई महिलाओं ने इस तथ्य को प्रतिध्वनित किया कि वे विरोध स्थलों पर बेहद सुरक्षित थीं। किसानों के संघर्ष ने न केवल महिलाओं को संघर्ष में शामिल करने की आवश्यकता बल्कि इसे सक्षम करने के तरीके भी दिखाए।

गहराते कृषि संकट के कारण कृषि क्षेत्र में रोजगार का नुकसान हो रहा है, जो महिलाओं को सबसे ज्यादा आहत करने वाले परिणामों में से एक है। जबकि परिवार संकट का बोझ उठाते हैं, किसानों की आत्महत्याओं का महिलाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उस समय इसका बोझ उठाने के लिए वे अकेली रह जाती हैं। किसानों के संघर्ष में महिलाओं की भागीदारी एक रात में जारी किए गए आह्वान का परिणाम नहीं थी। वर्षों से पंजाब में यूनियनों ने महिलाओं को संगठित करने और संघर्षों में भाग लेने के महिलाओं के अधिकारों के बारे में सवाल उठाने पर गंभीरता से ध्यान दिया है। MSP, सब्सिडी, किसानों की आत्महत्या के लिए मुआवजे और फसल खराब होने के मुद्दे पर महिलाएं लंबे समय से विरोध प्रदर्शन का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं।

देश भर में श्रमिक संघों ने हमेशा अपने न्यायपूर्ण संघर्षों के लिए परिवारों का समर्थन जुटाने की कोशिश की है। हड़ताली श्रमिकों का समर्थन करने के लिए रेल कर्मियों के परिवारों के सड़कों पर उतरने के कई उदाहरण हैं – अपने परिवारों की सुविधाओं का पूर्ण अभाव जहाँ है, ऐसे दूरस्थ स्थानों पर रनिंग स्टाफ की तैनाती के खिलाफ बिलासपुर में लोको चालकों द्वारा हड़ताल, रेलवे के निजीकरण का विरोध करने वाले इंजन ड्राइवर और गार्ड द्वारा संसद के सामने बड़ा धरना, कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री के कर्मचारियों और केंद्रीय श्रम कर्मचारियों द्वारा आयोजित रेलवे के निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी हड़ताल, रेल उत्पादन इकाइयों के निजीकरण का विरोध करने के लिए हड़ताल, और ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। MSRTC (Maharashtra State Road Transport Corporation) के कार्यकर्ताओं द्वारा हाल ही में जारी हड़ताल के दौरान भी, उन्हों ने परिवार की महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों का समर्थन प्राप्त किया। धरना स्थलों पर मौजूद महिलाएं MSRTC कार्यकर्ताओं के मुद्दों और मांगों के बारे में सड़कों पर लोगों से बात करने निकलीं। इससे पहले 2019 में, बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) उपक्रम द्वारा हड़ताल पर जाने के लिए अपने कर्मचारियों को बेदखली नोटिस जारी करने के एक दिन बाद, गुरुवार को वडाला (मुंबई में) बस डिपो के बाहर 100 से अधिक श्रमिकों के परिवारों ने विरोध प्रदर्शन किया। मजदूरों के हड़ताली परिवारों का दबाव इतना जबरदस्त था कि बेस्ट बोर्ड को अपना फैसला वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

महिलाओं को रसोई या घरों में बंद करना शासकों के काम आता है। इस प्रकार शासकों के विरुद्ध लड़ने वाले श्रमिकों के संघर्षों को विभाजित किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि आधी ताकत दूर रखी जाए। जो महिलाएं कार्यबल का हिस्सा हैं, उन पर महिलाओं और श्रमिकों के रूप में दोगुने अत्याचार किए जाते हैं। श्रमिकों के सभी वर्गों की मजदूरी को दबाने के लिए उन्हें जानबूझकर पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है और इसलिए सभी का शोषण बढ़ता है। इसलिए, संघर्ष में महिलाओं की ताकत को स्वीकार करना और उन्हें इसके लिए लामबंद करना मजदूरों के सभी विभागों की जिम्मेदारी है।

सच तो यह है कि आज न तो महिलाएं और न ही पुरुष निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। सत्तारूढ़ दल के मंत्रिमंडल द्वारा निर्णय लिए जाते हैं। हर चुनाव में पूंजीपतियों द्वारा अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी को धन देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। तब चुनी हुई पार्टी पूंजीपतियों द्वारा निर्धारित एजेंडे के कार्यान्वयन की गारंटी देती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी पार्टी सत्ता में आती है। न ही निर्वाचित प्रतिनिधियों का लिंग मायने रखता है। वास्तव में वे सभी उन्हें फंड देनेवाले पूंजीपतियों के प्रतिनिधी हैं और मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में उनकी चुनावी जीत सुनिश्चित होती हैं। इसका एकमात्र समाधान भारत का नव निर्माण है; मौजूदा प्रणाली की जगह एक ऐसी प्रणाली प्रस्थापित करना जो लोगों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए ही बनायी हो। एक पूरी तरह से नई राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया, जिसमें हम, यानि सब लोग, निर्णय लेने वाले होंगे। हमें चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन करने का अधिकार होना चाहिए। हमें निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने का अधिकार होना चाहिये और अगर वे हमारे हितों का उल्लंघन करते हैं तो उन्हें वापस बुलाने में हम सक्षम होने चाहिए। हमें अपने हित में कानून बनाने और उनमें संशोधन करने का अधिकार होना चाहिए।

महिलाओं की मुक्ति का मार्ग सभी क्षेत्रों के मज़दूरों के साथ एकजुट होने और नव निर्माण के सामान्य लक्ष्य की ओर लड़ने में निहित है! श्रमिक आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी समय की मांग है और इसके महत्व को सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को समझना चाहिए।

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