रक्षा वाहनों के निर्माण की कार्यक्षमता के बावजूद मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार BEML क्यों बेच रही है? इसके पीछे भ्रष्टाचार?

गिरीश एस., महासचिव, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (BEML) एम्प्लोईज़ यूनियन, पलक्कड़, केरल द्वारा

BEML लिमिटेड (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) रक्षा मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो टाट्रा ट्रक, पिनाका मिसाइल लांचर, रडार ले जाने वाले वाहन और सर्वत्र पुल जैसे सैन्य वाहनों का निर्माण करता है, जिनका हजारों की संख्या में उपयोग, भारतीय सीमाओं के कठिन पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित सैन्य अभियान चलाने के लिए दसों हज़ारों सैनिक कर रहे हैं।

1964 में लोगों के 6.56 करोड़ रुपये के टैक्स के पैसे के साथ बैंगलोर में BEML परिचालन का शुरू किया गया था; अब तक श्रमिकों की कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप वह 350 करोड़ रुपये से अधिक लाभांश और दसियों हज़ार करोड़ रुपये करों के रूप में वापस करने में सक्षम हुआ है। पिछले 50 वर्षों में केंद्र सरकार ने अब तक BEML में 23.56 करोड़ रुपये का निवेश किया है। पांच दशकों में श्रमिकों की कार्यक्षमता के कारण, भारत में कुल चार विनिर्माण इकाइयाँ और 32 क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किए गए हैं और उसके पास बाजार मूल्य की लगभग 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जिसमें 3,500 एकड़ भूमि, विशाल भवन और मशीनरी शामिल हैं।

BEML ने अब तक भारतीय रेलवे के लिए लगभग 20,000 यात्री डिब्बों और भारतीय मेट्रो के लिए लगभग 3500 मेट्रो डिब्बों का निर्माण और आपूर्ति की है। इसके अलावा, BEML ने पहले ही देश में लोहा और इस्पात उद्योग और निर्माण के लिए लगभग 50,000 अर्थ मूवर वाहनों का निर्माण किया है। BEML एक रणनीतिक इकाई है जो राष्ट्रीय सुरक्षा वाहन बनाती है और भारत में मेट्रो कोच बनाने वाली एकमात्र भारतीय कंपनी और एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में BEML एकमात्र है जो खनन और निर्माण वाहनों का निर्माण करता है।

BEML को सालाना 4,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिलते हैं, जिस में 85% ऑर्डर ग्लोबल टेंडर्स में भाग लेकर और विदेशी और घरेलू मल्टी-नेशनल कंपनियों को हराकर मिलते हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में BEML का टर्नओवर 3557 करोड़ रुपये और मुनाफा 93 करोड़ रुपये था। BEML के पास फिलहाल 12,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं।

चूंकि BEML एक रणनीतिक इकाई है, यदि कोई भारतीय नागरिक अगर सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत केंद्र सरकार से BEML उत्पादों या अन्य चीजों के बारे में पूछता है, तो BEML की जानकारी किसी भी भारतीय नागरिक को प्रदान नहीं की जाती है क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 4 जनवरी, 2021 को भारतीय सेना की रीढ़ BEML में 26 प्रतिशत हिस्सेदारी विदेशी और/या घरेलू कॉर्पोरेट कंपनियों को लगभग 1,800 करोड़ रुपये में बेचने का फैसला किया, जिसमें प्रबंधन नियंत्रण भी शामिल है।

पांच दशकों से काम कर रही लाभ कमाने वाली और राष्ट्रीय रक्षा कंपनी BEML की बिक्री राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल देगी। 5 जनवरी, 2021 को केरल के मुख्यमंत्री श्री. पिनाराई विजयन ने माननीय प्रधान मंत्री से केंद्र सरकार द्वारा BEML की बिक्री को वापस लेने के लिए कहा था। जो लोगों के कर के पैसे से बनाया गया था और श्रम कार्यक्षमता में एक वैश्विक नेता बन गया था, उस BEML को बेचने के लिए रुचि की अभिव्यक्ति (EoI) के निमंत्रण के खिलाफ कांजीकोड BEML के श्रमिकों ने 6 जनवरी, 2021 को, अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया।

BEML द्वारा मेट्रो कोच का निर्माण शुरू करने से पहले, देश मेट्रो कोच विदेश से प्रति कोच 16 करोड़ रुपये से अधिक में खरीद रहा था। परन्तु, जब BEML ने मेट्रो कोच का उत्पादन शुरू किया और वैश्विक निविदा में विदेशी कंपनियों को हराकर ऑर्डर हासिल किया, तो भारत में विदेशी कंपनियों को एक कोच की कीमत 16 करोड़ रुपये से घटाकर 8 करोड़ रुपये करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके माध्यम से केंद्र सरकार विभिन्न मेट्रो परियोजनाओं की लागत को लगभग 1 लाख करोड़ रुपये कम करने में सफल रही है। BEML का निजीकरण करके, केंद्र सरकार को उसी कीमत पर खरीदने के लिए मजबूर किया जाएगा, भले ही विदेशी मेट्रो कोच निर्माण कंपनियां एक-दूसरे के साथ समझौता कर लें और इसे प्रति कोच 20 करोड़ रुपये से अधिक पर बेचने का फैसला करें। नतीजतन, अगले 10 वर्षों में, केंद्र सरकार द्वारा 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च किया जा सकता है। ब्राजील और स्पेन की अदालतों ने कई विदेशी मेट्रो निर्माण कंपनियों (जो भारत में निविदाएं जीतती हैं) को अनुबंध जीतने से रोक यह हवाला देते हुए किया कि उनकी मिलीभगत के परिणामस्वरूप मेट्रो कोच की कीमतें उच्च होती हैं। यह भारत में अब तक नहीं हुआ है क्योंकि BEML एक सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में काम करता है और एक वैश्विक निविदा में भाग लेता है और ऑर्डर प्राप्त करता है।

केरल की के-रेल परियोजना के लिए आवश्यक सेमी-स्पीड कोचों के निर्माण के लिए अनुबंध प्राप्त करने वाली एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र की BEML का यदि केंद्र सरकार निजीकरण करती है, तो कोची मेट्रो चरण II के लिए आवश्यक मेट्रो कोच और तिरुवनंतपुरम और कोझीकोड मोनोरेल के लिए आवश्यक कोच को विदेशी कंपनियों से भारी कीमत पर खरीदने के लिए केरल मजबूर होगा। नतीजतन, परियोजनाओं की लागत बढ़ जाएगी। यदि BEML को सार्वजनिक क्षेत्र के रूप में रखा जाएगा और यदि BEML कांजीकोड इकाई में उपरोक्त आर्डर प्राप्त होते हैं, तो इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे, और राज्य को लगभग 300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व, कर के रूप में प्राप्त होगा।

जब केंद्र सरकार ने BEML को बेचने के लिए रुचि की अभिव्यक्ति आमंत्रित की और संसद को बताया कि यह कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए है, तो उम्मीद थी कि निविदा में प्रावधान होगा कि BEML से बेहतर कंपनियों को ही अंतिम सूची में शामिल किया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार का दावा पाखंडी है क्योंकि उसने रियल एस्टेट कंपनियों को अंतिम सूची में शामिल कर दिया; इन कंपनियों को खिलौना हथियार बनाने का भी कोई पूर्व अनुभव नहीं है और केवल बोली लगाने वाले की वित्तीय क्षमता को परिमाण बनाकर यह किया गया है।

मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की अक्षमता के कारण देश एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और देश की संपत्ति और सार्वजनिक क्षेत्रों को बेचा जा रही है। शेयर बाजार में BEML का आधार शेयर मूल्य, जो BEML कर्मचारियों और कंपनी की कार्यक्षमता का प्रमाण है, अब 10 रुपये प्रति शेयर से बढ़कर 1,560 रुपये हो गया है। BEML की 26 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री का मतलब कंपनी के 1 करोड़ 10 लाख शेयरों की बिक्री होगी। यदि कंपनी अक्षम थी और इन शेयरों को 10 रुपये प्रति शेयर पर बेचा जाना था तो कुल मूल्य केवल 11 करोड़ रुपये होगा। श्रमिकों की मेहनत और BEML की कार्यक्षमता से केंद्र सरकार को 1,550 करोड़ रुपये प्रति शेयर के भाव से 1,700 करोड़ रुपये मिलेंगे |

BEML में फिलहाल केंद्र सरकार की 54 फीसदी और अन्य की 46 फीसदी हिस्सेदारी है। BEML के पास बंगलौर, मैसूर, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोची जैसे प्रमुख शहरों में करीब 3,500 एकड़ जमीन है। अपनी 54% हिस्सेदारी का 26% एक निजी कंपनी को लगभग 1800 रुपये के शेयर मूल्य के लिए बेचने और उन्हें प्रबंधन नियंत्रण देने से एकड़ों की जमीन का स्वामित्व भी कॉर्पोरेट के हाथों में आ जाएगा। जब केंद्र सरकार BEML की 50,000 करोड़ रुपये के बाजार मूल्य की संपत्ति का निजीकरण कर रही है और प्रबंधन नियंत्रण सिर्फ 1,700 करोड़ रुपये में सौंप रही है, तो इसके पीछे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार लगता है। जबकि केंद्र सरकार BEML जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बाजार मूल्य की परवाह किए बिना कॉरपोरेट्स को बेचने की नीति लागू कर रही है, वहीं कोई केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रम बंद होने से बचने के लिए यदि राज्य सरकार को सौंपा जाता है, तो केंद्र सरकार यह नीति लागू कर रही है कि शेयर की कीमत के बजाय जमीन, भवन और मशीनरी का बाजार मूल्य माँगा जाता है । जिसे केंद्र सरकार ने बंद करने का फैसला किया था, उस कांजीकोड इंस्ट्रूमेंटेशन को लेने के लिए जब केरल राज्य सरकार सहमत हुई, तो केंद्र सरकार ने राज्य द्वारा भुगतान की जाने वाली भूमि का बाजार मूल्य मांगा, जिसे राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को शुरू में मुफ्त में दिया था। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण सिर्फ कॉरपोरेट्स की मदद के लिए है।

COVID-19 महामारी के बावजूद, कार्यकर्ताओं ने बिना किसी विराम के BEML की बिक्री के खिलाफ 435 दिनों का अनिश्चितकालीन धरना पूरा कर लिया है। मजदूरों का अनिश्चितकालीन धरना सिर्फ रोजगार और मजदूरी की रक्षा के लिए नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए भी है, जो 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को मात्र 1,800 करोड़ रुपये के शेयर की कीमत पर बेचने के संकट में है और जिसे जनता के टैक्स के पैसे से और दशकों से मेहनत करनेवाले श्रमिकों की कार्यक्षमता द्वारा बनाया गया है। सार्वजनिक संपत्ति के निजीकरण से खतरे में पड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने के लिए यह धरना है। निजीकरण के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के शिक्षित युवाओं के लिए 50% नौकरी आरक्षण ख़त्म होगा। केंद्र सरकार को हर साल टैक्स और डिविडेंड के रूप में लाखों करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। जबकि मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का दावा है कि भारत रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को लागू करेगा, वह सुरक्षा की रक्षा कैसे कर सकता है जब BEML जैसी मौजूदा रक्षा कंपनी को भी विदेशी कंपनियों को बेच दिया जाता है।

जो रूस-यूक्रेन संघर्ष, भारत-पाक सीमा संघर्ष के साथ-साथ तीसरे विश्व युद्ध की संभावित अवधि के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उस BEML को विदेशी कंपनियों को बेचना देशद्रोही है। जो यह दावा करते हैं कि भाजपा सरकार राष्ट्रवाद और देशभक्ति की रक्षक है, उन्हें विदेशियों को राष्ट्रीय सुरक्षा वाहन बनाने वाली BEML की बिक्री से भाजपा की देशभक्ति का दावा जूठा होने का एहसास होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा के लिए आम जनता और कार्यकर्ताओं को आगे आना चाहिए।

 

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