कामगार एकता समिति (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
“वे एक आवश्यक सेवा करते हैं!” बेशक, वे करते हैं! यदि रनिंग स्टाफ (ट्रेन चालक तथा ट्रेन मैनेजर जिन्हें पहले गार्ड कहलाते थे) काम नहीं करते हैं तो भोजन, ईंधन और अन्य सामानों की आवाजाही बुरी तरह प्रभावित होगी, निर्यात और आयात बुरी तरह प्रभावित होंगे।
चूंकि वे इतनी आवश्यक सेवा करते हैं, तो क्या उनकी अच्छी सेवा शर्तें नहीं होनी चाहिए और उनके साथ सम्मान का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए? बेशक होना चाहिए। हम लोग यही सोचते हैं, लेकिन हमारे शासक ऐसा नहीं सोचते। वे स्वास्थ्य, परिवहन आदि जैसी कई सेवाओं की आवश्यक प्रकृति के प्रति सिर्फ तब जाग जाते हैं, जब वे अपनी उचित मांगों के लिए लड़ते हैं और शासक उन पर ESMA (आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम) लागू करना चाहते हैं।
भारतीय रेल के रनिंग स्टाफ की स्थिति (रेलवे के साथ-साथ अन्य आवश्यक क्षेत्रों में कई अन्य लोगों की तरह) वास्तव में भयानक है, और कुछ दिन पहले ही वह मध्य रेलवे (CR) के मुंबई डिवीजन में रनिंग स्टाफ के लिए अधिकारीयों ने बद से बदतर बनाने की कोशिश की।
कल्याण, लोनावला और पनवेल में आंदोलन तब शुरू हुआ जब प्रशासन ने एकतरफा स्टाफ के ऊपर काम के के नियमों में अमानवीय बदलाव लादने की कोशिश की। अगर इन्हें लागू किया जाता तो इसका मतलब होता कि उन्हें बार बार 2 से 3 दिनों तक लगातार अपने घरों से दूर रहना पड़ता और पर्याप्त नींद और आराम के बिना काम करना पड़ता। इन परिवर्तनों का उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव वास्तव में भयानक होता।
रनिंग स्टाफ के पास 6 अप्रैल की सुबह से काम करने से मना करने और इस मंडल में मालगाड़ी यातायात को ठप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उन्हें ESMA सहित और धमकियां दी गईं और उन्हें आतंकित करने के लिए पुलिस को बुलाया गया। परन्तु इसका विपरीत प्रभाव पड़ा और इसने उन्हें लड़ने के लिए और भी दृढ़ बना दिया।
तथ्य यह है कि मुंबई डिवीजन की अपनी विशिष्ट समस्याएं हैं। क्षेत्र छोटा है, और दूरियां भी। मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों (प्रति दिन लगभग 200) और लोकल ट्रेनों (लगभग 1800 प्रति दिन) का घनत्व इतना अधिक है कि मालगाड़ियों के ड्राइवरों को अगले पड़ाव पर जाने से पहले नियमित रूप से घंटों इंतजार करना पड़ता है। साइन इन करने और साइन आउट करने के बीच 11 घंटे बहुत आम बात है, और कभी-कभी यह अवधि 12-14 घंटे तक बढ़ जाती है! ऐसा इसलिए है क्योंकि एक यात्रा जिसमें यदि लाइन खुली होती तो वास्तव में 2 घंटे से अधिक नहीं लगना चाहिए, वहां 8 घंटे और कभी-कभी 12-14 घंटे भी लगते हैं! कई बार मालगाड़ी को सिग्नल के इंतजार में यार्ड में 5 घंटे भी इंतजार करना पड़ता है, हालांकि कर्मचारी इसे चलाने के लिए तैयार होते हैं।
इन विशिष्ट स्थितियों को ध्यान में रखने के बजाय, प्रशासन चलने के समय या तय की गई दूरी की बात करता है। यह अत्यंत अन्यायपूर्ण है, क्योंकि लोको चालक, सहायक चालक और साथ ही ट्रेन प्रबंधक (पहले गार्ड के रूप में जाने जाते थे) पूरा कोटा काम करने के लिए तैयार हैं, और यह उनकी गलती नहीं है अगर ट्रेनों को सिग्नल नहीं मिलते हैं।
नियमों के अनुसार, एक ड्राइवर ड्यूटी के बीच 16 घंटे के आराम का हकदार है। परन्तु, यह लागू नहीं होता है यदि वह घर से दूर है और उसे रनिंग रूम में आराम करना है! उस स्थिति में, उसके आराम के घंटे रेलगाड़ी चलने के समय के आधे ही होते हैं। मान लीजिए कि उसने 10 घंटे काम किया है, तो वह केवल 5 घंटे के आराम का हकदार है। यह 5 घंटे भी सिर्फ कागजों पर है। वह लगभग 2 घंटे रनिंग रूम तक पहुंचने, फ्रेश होने, नहाने, खाने और फिर अगली ट्रेन के लिए खुद को तैयार करने में लगाते हैं। रनिंग रूम या लॉबी से इंजन तक चलने में लगने वाला समय भी आराम की अवधि में गिना जाता है। याद रखें कि इन दिनों मालगाड़ियां काफी लम्बी होती हैं। इससे पहले अगर कोई ट्रेन आती है और कोई कर्मचारी उपलब्ध नहीं होता है, तो उसकी परेशानी और बढ़ती है और आराम के इस सीमित समय को भी उसे भूलना पड़ता है। अगर वह ऐसा करने से मना करता है तो अधिकारी उसे फोन करके निलम्बन की धमकी देकर दबाव बनाते हैं।
कई बार रनिंग रूम में बेड उपलब्ध नहीं होते हैं। चाय-नाश्ता तो भूल ही जाइए, कई बार तो उन्हें पीने का पानी भी नहीं दिया जाता। और उनसे इस “आराम” के बाद 11 घंटे और काम करने की उम्मीद की जाती है!
एक और नियम कहता है कि अगर कर्मचारी अपने गंतव्य से एक घंटे से भी कम दूरी पर खड़ा हो, तो वह राहत नहीं मांग सकता। मुंबई मंडल में, 80% ट्रेनों को एक घंटे से भी कम समय में, कभी-कभी, अपने गंतव्य से दस मिनट की दूरी पर भी रुकना पड़ता है। अगर वह राहत मांगता है तो उस पर दबाव बनाया जाता है और धमकी दी जाती है।
मालगाड़ी चालक की एक छोटी सी चूक से करोड़ों का नुकसान हो सकता है या रेल यातायात में भारी व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। उनका काम इतना संवेदनशील है। और फिर भी, अगर वह सिग्नल से कुछ इंच आगे भी रुक जाता है तो उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाती है।
हालांकि क्षेत्रफल में छोटा, मुंबई मंडल में कई खंड और हजारों सिग्नल हैं। यहाँ मालगाड़ी का ड्राइवर बनना कोई बच्चों का खेल नहीं है!
मुंबई में करीबन 1400 रनिंग स्टाफ सदस्यों द्वारा की गई जबरदस्त एकजुट लड़ाई के सामने, अधिकारियों को दूसरी शाम, यानी 7 अप्रैल को पीछे हटना पड़ा और नये काम एके घंटों के नियम वापिस लेने पड़े।
सभी संबद्धताओं से ऊपर उठकर एक होकर अपनी न्यायोचित मांग के लिए लड़नेवाले रनिंग स्टाफ को हम बधाई देते हैं!
मज़दूर एकता ज़िंदाबाद!