भारतीय रेल के इंजन चालकों की क्रूर कार्य दशाएं

डॉ. ए. मैथ्यू, महासचिव, कामगार एकता कमिटी (KEC) द्वारा
कॉम. एम एन प्रसाद, महासचिव, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) से प्राप्त जानकारी के आधार पर।


एक बच्चा भी समझ सकता है कि ट्रेन यात्रा के दौरान उसकी सुरक्षा इंजन चालक की भलाई पर निर्भर करती है। हमारे देश में IR (भारतीय रेल) पर दैनिक यात्रियों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है। हर दिन ट्रेन से यात्रा करने वाले लोगों की औसत संख्या, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की पूरी आबादी से अधिक है! उस स्थिति में, LP और ALP (लोको पायलट और सहायक लोको पायलट, जैसा कि इंजन ड्राइवरों को कहा जाता है) की भलाई अधिक महत्वपूर्ण है। परन्तु, यह चौंकाने वाला सच है कि इस श्रेणी के रेलकर्मियों के काम करने की स्थिति भयावह है, और उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ भारत में ट्रेन से यात्रा करने वाले सभी लोगों की सुरक्षा पर उसका प्रभाव अत्यंत प्रतिकूल है।

LP और ALP के काम करने की स्थिति

भयानक परिस्थितियों में हद से ज्यादा काम

• 20% से अधिक पद हमेशा खाली रखे जाते हैं। टास्क फोर्स कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, लोको रनिंग स्टाफ (LP और ALP) की कुल संख्या 83098 है जबकि उनकी कुल स्वीकृत संख्या 104446 है।

• नतीजतन, उनके लिए छुट्टी पाना बेहद मुश्किल है। इसके अलावा, बहुतांश के लिए, ड्यूटी 8 घंटे से अधिक होती है, और 5% -10% कर्मचारियों को सीधा 14 घंटे से भी अधिक घंटों की ड्यूटी मिलती है! रेलवे प्रशासन समय-समय पर मुख्यालय में विश्राम और अनिवार्य विश्राम के नियमों का उल्लंघन करता है। दुनिया में हर जगह कामगार कम से कम 40 घंटे के साप्ताहिक आराम के हकदार हैं। इसमें 24 घंटे की छुट्टी के साथ-साथ ड्यूटी के बीच 16 घंटे शामिल हैं। परन्तु, भारतीय रेल के LP और ALP के मामले में उन्हें महीने में सिर्फ 4 बार 30 घंटे का आराम या महीने में 5 बार 22 घंटे का आराम मिलता है यानि कि पूरे दिन की छुट्टी भी नहीं मिलती है! इसके अलावा उनका ड्यूटी का समय अनिश्चित है और बदलता रहता है।

• हम सोच सकते हैं कि इसकी वजह से उनमें अलगाव की भावना, मानसिक तनाव, और उनके परिवार के सदस्यों पर तनाव के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य पर क्या क्या प्रभाव हो सकते हैं। उनमें से अधिकांश सेवानिवृत्ति की आयु से पहले ही मेडिकल रूप से अयोग्य हो जाते हैं। अमानवीय कार्य परिस्थितियों का लोको पायलटों के आयुमर्यादा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

• बड़ी संख्या में लोको पायलट “स्वेच्छा से” समय से पहले सेवा छोड़ देते हैं। वास्तव में, अगर वे अपनी एकाग्रता और फिटनेस के स्तर को बनाए रखने में विफल रहते हैं तो उन्हें बिना किसी मुआवजे के ऐसा करना पड़ता है।

• करोलिंस्का विश्वविद्यालय (स्वीडन) तनाव अनुसंधान रिपोर्ट, डॉ राजेश रंजन रिपोर्ट और RDSO (रेलवे डिजाइन और मानक संगठन रिपोर्ट, जैसे लोको रनिंग स्टाफ की काम करने की स्थिति पर कई रिपोर्ट हैं। वे सभी सहमत हैं कि रेलवे और सभी परिवहन क्षेत्रों के सभी कर्मचारियों की तुलना में लोको रनिंग स्टाफ का व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम सूचकांक सबसे अधिक है। लंबे समय तक काम करने, लगातार रात की ड्यूटी, अनिर्धारित ड्यूटी, उच्च तनाव स्तर आदि के मनोदैहिक (सायकोसोमेटिक) प्रभाव की वजह से सतर्कता और प्रतिक्रिया समय पर बुरा प्रभाव होता है। इस से सुरक्षा पर सीधा गैरअसर होता है। रेलवे प्रशासन ने इन गंभीर और जानलेवा मुद्दों के समाधान के लिए कुछ भी नहीं किया है।

इसके बावजूद प्रशासन कर्मचारियों की संख्या को और कम कर रहा है! ट्रेन के समय के हर संशोधन के मामले में मकसद एक ही है – ड्यूटी की तय की गई दूरी को बढ़ाना और मुख्यालय और बाहरी स्टेशनों पर बाकी समय को कम करना। इसके अलावा EMU (इलेक्ट्रो-मैकेनिकल यूनिट) और DEMU (डीजल इलेक्ट्रो मैकेनिकल यूनिट) का उपयोग किया जा रहा है और कर्मचारियों की संख्या को कम करने के लिए पारंपरिक यात्री रेक, और उच्च गति और उच्च क्षमता वाले इंजनों और वैगनों को लाया जा रहा है।

• काम का बहुत तनाव और अपर्याप्त आराम के कारण आवश्यक उच्चतम स्तर की फिटनेस को बनाए रखने में जो असमर्थ होते हैं, उन्हें विवर्गीकृत (डीकेटेगराइज) किया जाता है। मेडिकल विवर्गीकरण प्रक्रिया जानबूझकर वर्षों वर्षों तक विलंबित की जाती है और पूरी अवधि को IRMM (भारतीय रेलवे मेडिकल मैनुअल) का उल्लंघन करके उसे बीमारी की छुट्टी के रूप में माना जाता है।

• विकलांगता अधिनियम और रेलवे पेंशन नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करके, रनिंग स्टाफ के अतिरिक्त पेंशन लाभों से विवर्गिकृत रनिंग स्टाफ को वंचित किया जाता है। NPS (नई पेंशन योजना) के दायरे में आने वाले रनिंग स्टाफ को भी इस लाभ से वंचित रखा जाता है।

• मेडिकल रूप से विवर्गीकृत कर्मचारियों को समकक्ष पदों पर नहीं लगाया जाता है और वरिष्ठता ठीक से नहीं दी जाती है; इस प्रकार उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाता है।

दुर्घटनाओ के मामले में अनुचित और अन्यायपूर्ण व्यवहार

• रेल प्रशासन, विशेष रूप से जोनल और मंडल प्रशासन, निर्धारित सुरक्षा नियमों के अनुसार ट्रेन सेवाओं का संचालन नहीं कर रहे हैं और सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने के लिए वे कर्मचारियों पर दबाव डालते हैं। हर शॉर्ट कट या असुरक्षित अभ्यास से अंतत: रनिंग स्टाफ पर तनाव बढ़ता है।

• दुर्घटनाओं की जांच, तकनीकी जांच सहायता और साइकोमेट्रिक मूल्यांकन प्रक्रिया के साथ निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं की जाती है। प्रशासन की गलती कभी स्वीकार नहीं की जाती है। जस्टिस खन्ना कमेटी की सिफारिश के 34 साल बाद भी जांच समितियों का रवैया ‘कौन गलत हुआ’ से ‘क्या गलत हुआ’ में बदल जाना चाहिए, हालांकि जांच समितियों के संचालन के तरीके में कोई बदलाव नहीं आया है।

• दुर्घटनाओं के मामले में, LP और ALP को अक्सर जिम्मेदार ठहराया जाता है, चाहे उनकी गलती हो या ना हो। असहनीय कामकाजी परिस्थितियों के कारण होने वाली हर दुर्घटना के लिए रनिंग स्टाफ पर अमानवीय दंड लगाया जाता है।

कम वेतन और पदोन्नति के अवसर

• हालांकि इंजीनियरिंग स्नातक ज्यादातर ALP के रूप में भर्ती होते हैं, उनके पास स्तर 2 (रू. 1900 बेसिक) का बहुत कम प्रारंभिक वेतनमान होता है। यद्यपि मेल, एक्सप्रेस और फिर राजधानी में जाने के साथ-साथ काम और जिम्मेदारी के स्तर में वृद्धि होती रहती है, मूल वेतन के केवल दो अन्य ग्रेड हैं – रु. 2400 और रु. 4200 के।

• रनिंग अलाउंस को औसत वेतन के बजाय न्यूनतम मूल वेतन के आधार पर तय किया जाता है और इस तरह पूरे रनिंग स्टाफ के लिए भत्ते एक तिहाई कम हो जाते हैं।

• छठे CPC (केंद्रीय वेतन आयोग) में वेतन विसंगतियों से संबंधित औद्योगिक विवादों को 2011 में राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा अधिनिर्णय के लिए भेजा गया था। प्रशासन की जानबूझकर और आपराधिक देरी करने की रणनीति के कारण वे अभी भी लंबित हैं।

• लोको पायलटों को कोविड के कारण ट्रेनों के रद्द होने के दौरान 3O% वेतन कटौती का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने बिना किसी गलती के अपना रनिंग अलाउंस खो दिया। रनिंग अलाउंस नियमों का उल्लंघन करते हुए कोई मुआवजा नहीं दिया गया।

AILRSA केंद्र सरकार और रेलवे प्रशासन के हर उस फैसले के खिलाफ लड़ रहा है जो रेलवे के निजीकरण के प्रयासों सहित श्रमिकों और आम जनता को प्रभावित करता है।

उनका संघर्ष न्यायसंगत है और “एक पर हमला यानि सब पर हमला!” की भावना से वे हमारे समर्थन का हकदार है।

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