कोयला कंपनियों के और भी निजीकरण की योजना

कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

पिछले 12 वर्षों के दौरान सरकार पहले ही कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 66% कर चुकी है। अब वह अपनी सहायक कंपनियों के शेयरों को बेचकर उनका निजीकरण शुरू करने की योजना बना रहा है। कोयला मंत्रालय ने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) और सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिज़ाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (CMPDIL) में 25% हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव रखा है। CIL की कोयला उत्पादक सहायक कंपनियों जैसे सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड, ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड, नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के शेयरों को बेचने की भी योजना तैयार की जा रही है।

भारत के पास कोकिंग कोल का सीमित भंडार है जो स्टील के उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है। देश में कोकिंग कोल का अधिकांश उत्पादन BCCL द्वारा किया जाता है। वर्तमान में यह देश की 50% कोकिंग कोल की आवश्यकता को पूरा करता है और शेष को आयात करना पड़ता है। रणनीतिक रूप से इस महत्वपूर्ण कंपनी का निजीकरण करना देश के हित में नहीं है।

CMPDIL के शेयरों की बिक्री की योजना बनाने से पहले ही सरकार ने इसमें मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MECL) के विलय की योजना की घोषणा की थी। इस प्रकार CMPDIL के निजीकरण परिणामस्वरूप MECL का भी निजीकरण होगा। इस विलय से CMPDIL के कर्मचारियों में काफी चिंताएं हैं और वे घोषणा के दिन से ही इसे लेकर आंदोलन कर रहे हैं।

कोयला मज़दूरों के लिए CMPDIL का कार्य महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुरक्षित खनन सुनिश्चित करता है। इसका निजीकरण मज़दूरों की सुरक्षा से समझौता करने जैसा होगा। MECL देश के विभिन्न खनिजों की खोज करता रहा है। फिर भी सरकार ऐसी महत्वपूर्ण गतिविधियों को निजी हाथों में सौंपना चाहती है।

कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन समाज की और इस प्रकार लोगों की संपत्ति हैं। उन्हें निजी लाभ के लिए सौंपना समाज-विरोधी और जनविरोधी है। जहां देश के कोयला मज़दूर अपने उद्योग के निजीकरण का विरोध करते रहे हैं, वहीं अन्य सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को भी इसे रोकने के लिए उनका साथ देना चाहिए!

 

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