9000 और 12,000 हौर्स पॉवर के इलेक्ट्रिक इंजन अन्य रेल कारखानों में बनाने के निर्णय के विरोध में चितरंजन रेल कारखाना कर्मचारियों ने नागरिकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू किया

कॉम. राजीव गुप्ता, महासचिव, चि.रे.का. लेबर यूनियन (सी.आई.टी.यू.) से प्राप्त रिपोर्ट और पत्र के आधार पर कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

हाल ही में रेल मंत्रालय ने 9000 हौर्स पॉवर के इलेक्ट्रिक इंजन गुजरात के दाहोद रेल वर्कशॉप में बनाने के लिए विदेशी कंपनियों से अभिरुचि की अभिव्यक्ति (EOI) मांगे हैं| इस वर्कशॉप में अभी किसी भी तरह के इंजन का उत्पादन नहीं होता है| इसी तरह 12,000 हौर्स पॉवर के इलेक्ट्रिक इंजन का उत्पादन वाराणसी में डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (DLW) में करने के लिए विदेशी कंपनियों से अभिरुचि की अभिव्यक्ति (EOI) मांगे हैं| कुछ वर्ष पहले बिहार में माधेपुरा में भारतीय रेल ने फ़्रांस की ऑलस्टोम कम्पनी के साथ अधिक हौर्स पॉवर के इलेक्ट्रिक इंजन बनाने के लिए एक संयुक्त उद्दयम स्थापित कर एक नया कारखाना शुरू किया है|

यह सब करते हुए रेल मंत्रालय ने चितरंजन रेल इंजन कारखाना (चिरेका) की उत्पादन क्षमता और अनुभव को पूरी तरह से नजरंदाज किया है| चिरेका देश का सबसे पुराना और बड़ा इंजन उत्पादन करने वाला कारखाना है| वहाँ पर कर्मचारियों ने 9000 और 12,000 हौर्स पॉवर के इलेक्ट्रिक इंजन बना कर अपनी क्षमता और काबलियत पहले ही साबित कर दी थी| इन इंजनों का उत्पादन चिरेका में बिना ज्यादा विनिवेश के किया जा सकता है| अतः चिरेका के कर्मचारियों में रेल मंत्रालय के निर्णय को लेकर बहुत गुस्सा है और चिरेका के भविष्य के बारे में आशंका भी है|

उन्होंने पूर्व में रेल मंत्रालय और प्रधान मंत्री को इस बारे में अनेक पत्र लिखे हैं लेकिन उन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है| इसलिए अब चि.रे.का. लेबर यूनियन (सी.आई.टी.यू.) के नेतृत्व में एक खुला पत्र लिख कर कर्मचारियों ने नागरिकों के बीच एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है|

(पत्र की प्रति नीचे देखिये)

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