कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
पूंजीपतियों ने रेलवे की जमीन पर कार्गो टर्मिनल स्थापित करने में तब तक ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई थी जब तक कि भूमि को पट्टे (लीज) पर देने की नीति में संशोधन नहीं किया था। पुरानी नीति में जमीन का पट्टा किराया बाजार मुल्य का 6 फीसदी तय किया गया था और लीज सिर्फ 5 साल के लिए दी जाती थी।
अब सरकार ने उनकी मांग मान ली है और पट्टा किराए को घटाकर बाजार मुल्य का 1.5% कर दिया है, जो पहले की दर का एक चौथाई है। 7 सितंबर 2022 को घोषित संशोधित नीति के अनुसार पट्टे की अवधि को सात गुना बढ़ाकर 35 वर्ष कर दिया गया है।
सरकार ने अगले पांच वर्षों में 300 कार्गो टर्मिनल विकसित करने की योजना की घोषणा की थी।
पूंजीपतियों ने कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (कॉनकोर) के निजीकरण में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, जब तक कि पट्टे का किराया काफी कम नहीं किया जाता था और पट्टे की अवधि में वृद्धि नहीं की जाती थी क्योंकि अधिकांश कॉनकोर टर्मिनल पट्टे पर रेलवे भूमि पर स्थित थे। कॉनकॉर का निजीकरण अब पूंजीपतियों के लिए और अधिक आकर्षक होगा।
सरकार ने पीपीपी मोड के तहत स्कूलों और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी सार्वजनिक सेवाओं की स्थापना के लिए रेलवे की भूमि मुफ्त देने का भी फैसला किया है। केवल 1 रुपये प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष का मामूली किराया लिया जाएगा।
सैकड़ों शहरों के बीचों-बीच रेलवे के पास जमीन का बड़ा क्षेत्रफल उपलब्ध है। बड़े शहरों में यह भूमि बहुत दुर्लभ और कीमती है। यह जमीन अब निजी अस्पतालों और स्कूलों की श्रंखलाओं के लिए मुफ्त उपलब्ध होगी। पहले से ही बड़े पैमाने पर निजीकृत स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का अब सार्वजनिक धन से बनाई गई सार्वजनिक संपत्ति का उपयोग करके और अधिक निजीकरण किया जाएगा।