कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के सहयोग से पूरे देश में उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति के लिए प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का अभियान चलाया है। प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगने के बाद, उपभोक्ता को, मोबाईल फोन की तरह, मीटर को पैसे भर कर चार्ज करना पड़ता है। जब उसका बैलेंस शून्य हो जाता है, बिजली की आपूर्ति अपने आप बंद हो जाती है। अर्थात, बिजली उपयोग करने के लिये पहले पैसे दो तब ही उसका उपयोग कर सकते हो!
प्रीपेड स्मार्ट मीटर का एक कड़वा अनुभव बिहार के उपभोक्ताओं को 12 अप्रैल को हुआ जब अचानक 13 हजार से अधिक घरों की बिजली गुल हो गई। इन उपभोक्ताओं का बैलेंस अचानक माइनस में चला गया था, जिससे बिजली कट गई। जिनके प्रीपेड खाते में 641 रुपए थे, उनका बैलेंस माइनस 10,143 रुपए दिख रहा था।
बिजली जैसी आवशयक सेवा की आपूर्ति के साथ इस तरह की खिलवाड़ अमानवीय है।
बिजली वितरण के निजीकरण की मांग करनेवाले टाटा, अदानी, जिंदल, गोइंका, टौरेंट जैसे देश के बड़े पूंजीपतियों के हाथ ही प्रीपेड स्मार्ट मीटर अभियान के पीछे हैं। वे चाहते हैं कि बिजली वितरण अपने हाथ में लेने से पहले सरकार बिजली बिल वसूली की समस्या को प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगा कर हल कर दे।
एक बार प्रीपेड स्मार्ट मीटर लग गया तो वितरण कंपनी के लिए बिल वसूली पर सारा खर्च बच जाता है। बिजली काटने के लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ता है। उल्टे, बिजली आपूर्ति करने के पहले अग्रिम धन मिल जाता है।
प्रीपेड स्मार्ट मीटर की आपूर्ति के द्वारा भी देशी और विदेशी इजारेदार कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने का खर्च भी उपभोक्ता से वसूला जाता है।
प्रीपेड स्मार्ट मीटर का सबसे बुरा असर किसानों, छोटे उपभोक्ताओं, अस्पतालों, स्कूलों, म्युनिस्पैलटी, पानी आपूर्ति जैसी आवश्यक सेवाओं पर पड़ेगा जिन्हें बिजली उपयोग के लिए पहले पैसे खर्च करने पड़ेंगे। सब तरह की बिजली पर सब्सिडी ख़त्म हो जाएगी।
यह स्पष्ट है कि प्रीपेड स्मार्ट मीटर की सरकार की पहल एक जन-विरोधी कदम है जिसका सब बिजली उपभोक्ताओं और मजदूरों ने विरोध करना चाहिए।