विरोध कर रहे पहलवानों और उनके समर्थकों पर क्रूर हमला

मज़दूर एकता कमेटी (एम्ईसी) के संवाददाता की रिपोर्ट

“जिस लोकतंत्र का हमारे शासक इतना ढिंढोरा पीटते हैं, जिसके प्रतीक – नया संसद भवन – का इस समय उद्घाटन किया जा रहा है, यह बड़े पूंजीपतियों के लिए लोकतंत्र है। संसद में बैठे लोग खुलेआम बड़े पूंजीपतियों के हितों की सेवा करते हैं, जबकि हमारी महिलाओं और सभी लोगों की न्याय के लिए आवाज़ को क्रूरता से कुचला जा रहा है …“, पुरोगामी महिला संगठन की एक कार्यकर्ता ने 28 मई को, पहलवानों के संघर्ष के समर्थन में कई संगठनों द्वारा किये गए एक बड़े विरोध प्रदर्शन में कहा।

28 मई को राजधानी में जब नए संसद भवन का उद्घाटन किया जा रहा था, तो उसी समय दिल्ली पुलिस ने बीते एक महीने से अधिक समय से नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध कर रहे पहलवानों पर क्रूर हमला किया। ये पहलवान भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख के ख़िलाफ़, महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के लिए, कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

दिल्ली और देश के अन्य भागों से महिला संगठनों, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों, मज़दूर संगठनों और युवा संगठनों ने 28 मई को नए संसद भवन के सामने ’महिला सम्मान महापंचायत’ में इकट्ठा होने की योजना बनाई थी। ’महिला सम्मान महापंचायत’ का आयोजन पहलवानों के संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने और महिलाओं पर बढ़ती हिंसा तथा मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और नौजवानों के अधिकारों पर चौतरफा हमलों पर रोशनी डालने के लिए किया गया था।

27 मई की आधी रात से सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के बीच, दिल्ली की सीमाओं को सील कर दिया गया था और भारी बैरिकेडिंग कर दी गई थी। दिल्ली के बाहर से कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आने वाले किसान संगठनों, मज़दूर संगठनों और महिला संगठनों को राजधानी में प्रवेश करने से रोक दिया गया था।

जंतर-मंतर के चारों ओर भारी सुरक्षा घेरा बनाया गया था। 28 मई की सुबह से ही, पहलवानों के विरोध स्थल की ओर जाने वाली सभी सड़कों पर पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स (आर.ए.एफ.) की भारी तैनाती के साथ बैरिकेड्स लगा दिए गए थे। किसी को भी जंतर-मंतर की ओर जाने की इजाज़त नहीं दी जा रही थी। ’महिला सम्मान महापंचायत’ कार्यक्रम को सफलता से संपन्न होने से रोकने के लिए, अधिकारियों ने दिल्ली के महिला संगठनों की कई प्रमुख कार्यकर्ताओं को सुबह धरना स्थल की ओर जाते समय ही गिरफ़्तार कर लिया था। उन्हें जबरन पुलिस वैन में धकेल दिया गया, दिल्ली के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में ले जाया गया और दिन भर हिरासत में रखा गया।

पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को जंतर-मंतर पर जाने से रोका गया और कुछ बेरिकेड्स पर उन पर हमला भी किया गया।

जैसे ही विरोध करने वाले पहलवानों ने ’महिला सम्मान महापंचायत’ के स्थल की ओर मार्च करना शुरू किया, वैसे ही पुलिस ने उन पर बेरहमी से हमला किया, उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया और पीटा। इसके बाद पहलवानों और उनके समर्थकों को पुलिस वैन में बिठाया गया और शहर के दूर-दराज़ इलाकों में विभिन्न स्थानों पर पुलिस थानों में ले जाया गया, जहां उन्हें पूरे दिन हिरासत में रखा गया। इस सब का स्पष्ट मक़सद था उन्हें अलग-थलग करना, उन्हें डराना, उन्हें एक-दूसरे से समर्थन और शक्ति प्राप्त करने से रोकना और उनके मनोबल को तोड़ना।

इसके तुरंत बाद, पुलिस ने धरना स्थल पर पहलवानों और उनके समर्थकों के लिए लगाए गए टेंट और अस्थायी ढांचों को तोड़ दिया। पहलवानों का सामान हटा दिया गया। पहलवानों का विरोध स्थल, जहां हर रोज़ देशभर से आये समर्थकों की भीड़ लगी रहती थी, उसके हर नाम-निशान को बेरहमी से फाड़ कर गिरा दिया गया।

जैसे ही पहलवानों पर हमले, उन्हें हिरासत में लेने और विरोध स्थल को नष्ट करने की ख़बर फैली, वैसे ही बैरिकेड्स पर जमा हुए संगठनों के कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर अपना गुस्सा ज़ाहिर करने के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किए।

पुरोगामी महिला संगठन, प्रगतिशील महिला संगठन, एन एफ़ आई डब्ल्यू, मज़दूर एकता कमेटी, अनहद, आदि के कार्यकर्ताओं, विभिन्न किसान और युवा कार्यकर्ताओं ने जनपथ मेट्रो स्टेशन पर लगे बैरिकेड्स के सामने एक विरोध रैली का आयोजन किया। रैली का स्थान पर जंतर-मंतर और उद्घाटित हो रहे नए संसद भवन से सिर्फ कुछ ही दूरी पर था। उस विरोध रैली में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।

लोगों की आवाज़ को कुचलने पर शासकों से गुस्साए हुए, प्रदर्शनकारियों ने ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाए – “महिला पहलवानों को इंसाफ दिलाने के संघर्ष में एकजुट हों!“, “महिलाओं पर हिंसा मुर्दाबाद!“, “पहलवानों के संघर्ष पर दिल्ली पुलिस का हमला मुर्दाबाद!“, “कार्यस्थल पर यौन हिंसा पर रोक लगाओ!“, “हमारी रोज़ी-रोटी और अधिकारों पर हमले मुर्दाबाद!“, इत्यादि। प्रदर्शनकारियों के हाथों में इन और कई अन्य नारों वाले बैनर और प्लेकार्ड थे। उन्होंने प्रतिरोध के गीत गाए। दो घंटे से अधिक समय तक यह विरोध प्रदर्शन चलता रहा। इसके बाद भी पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को परेशान करने और हिरासत में लेने की ख़बरें आती रहीं।

किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर, जहां उन्हें रोक दिया गया था, वहीं इकट्ठे हुए और उन्होंने पहलवानों की मांगों के समर्थन में विरोध रैलियां कीं। उन्होंने महिलाओं के सभी प्रकार के यौन उत्पीड़न के खि़लाफ़ नारे लगाए और महिलाओं के लिए न्याय की मांग की। उन्होंने लोगों पर शासकों के हमलों की निंदा की और इन हमलों को हराने के लिए एकजुट प्रतिरोध संघर्ष का आह्वान किया। संयुक्त किसान मोर्चा (एस.के.एम.) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके, “सभी लोकतांत्रिक लोगों को विरोध में उठ खड़े होने“ का आह्वान किया। विज्ञप्ति में पहलवानों के समर्थन में आने वाले कई किसान कार्यकर्ताओं पर हमलों और गिरफ़्तारी की निंदा की गयी। यह चेतावनी दी गयी कि संघर्ष “तेज़ किया

जाएगा और तब तक जारी रहेगा जब तक कि यौन उत्पीड़कों को गिरफ़्तार न किया जाये और उन्हें सज़ा न दी जाये“।
विरोध करने वाले पहलवानों और उनके समर्थकों पर हिन्दोस्तानी राज्य का क्रूर हमला एक बार फिर यह दर्शाता है कि बड़े इजारेदार घरानों की अगुवाई में शासक पूंजीपति वर्ग को देश की आम जनता की समस्याओं को हल करने की कोई चिंता नहीं है। इससे पता चलता है कि हमारे देश के वर्तमान शासक राज करने के क़ाबिल नहीं हैं। पूंजीपतियों के इस अत्याचारी राज की जगह पर, किसानों और सभी उत्पीड़ितों के साथ गठबंधन में, मज़दूर वर्ग के राज की स्थापना करने की सख्त़ ज़रूरत है।

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