हिन्दोस्तान में मज़दूर वर्ग के आंदोलन के सामने चुनौतियां

कामगार एकता कमिटी (केईसी) के संवाददाता द्वारा मीटिंग की रिपोर्ट

 

कामगार एकता कमिटी ने 11 जून 2023 को रविवार के दिन मुंबई में “हिन्दोस्तान में मज़दूर वर्ग के आंदोलन की चुनौतियां“ के महत्वपूर्ण विषय पर एक मीटिंग आयोजित की। सभागृह सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं, रेलवे, बिजली, रक्षा, सूचना प्राद्योगिकी, शिक्षा और गारमेंट क्षेत्र जैसे विविध व्यवसायों से आये मज़दूरों से भरा हुआ था।

मीटिंग के प्रारंभ में, हाल ही में हुई ओडिशा रेल दुर्घटना के पीड़ितों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सहभागियों को याद दिलाया गया कि समय आ गया है कि एकजुट होकर सरकार और रेल अधिकारियों से कठोरता से सवाल पूछें जायें और इस प्रणालीगत विफलता के लिए जवाबदेही की मांग की जाये।

यह रिपोर्ट विभिन्न सहभागियों द्वारा व्यक्त किए गए मुख्य बिंदुओं को प्रस्तुत करती है।

मज़दूर और किसान आवश्यकता की सभी वस्तुएं बनाते हैं और देश का भरण-पोषण करते हैं और वे पूरी आबादी का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं। लेकिन उनकी बहुत ही सरल, बुनियादी ज़रूरतें – भोजन, पानी, स्वच्छता, आवास, कपड़े, बिजली, अच्छे स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं, उन्हें नहीं मिल पा रही हैं और उनकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। देश के क़ानून और नीतियां कैसे तय होती हैं और लागू की जाती हैं, जिसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। शासक हमारे संघर्षों को कुचलने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देते हैं। सत्ता में कोई भी पार्टी हो वह पूंजीपति वर्ग के एजेंडे को लागू करती है ताकि वे हमारे ख़र्च पर अमीर होते रहें।

पूंजीवाद हमारे देश में उत्पादन का प्राथमिक तरीक़ा है, जो अर्थव्यवस्था को चला रहा है। पूंजीपति उत्पादन के साधनों और वित्तीय संसाधनों को अपनी निजी संपत्ति के रूप में रखते हैं और पूरी तरह से दूसरों के श्रम पर जीते हैं। इनमें बड़े उद्योगों, खदानों और सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के मालिक, बड़े थोक व्यापारी, साहूकार, ज़मीन और भवन के मालिक और बड़े पूंजीपति किसान शामिल हैं। उनकी संख्या कुछ दस-लाख में है।

हिन्दोस्तान में 166 अमरीकी डॉलर के अरबपति हैं, संयुक्त रूप से उनकी संपत्ति लगभग 60 लाख करोड़ रुपये (750 बिलियन डॉलर) है। इन 166 व्यक्तियों की संयुक्त संपत्ति, हिन्दोस्तान की पूरी आबादी 140 करोड़ की कुल वार्षिक आय के एक चौथाई से अधिक है।

जबकि देश में 14 लाख से अधिक पंजीकृत कंपनियां हैं जो वस्तुओं और सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन करती हैं। लगभग 150 इजारेदार समूहों की मालिकी वाली 1000 से कम कंपनियां लगभग सभी बाज़ारों पर हावी हैं। बढ़ती हुई सीमा तक वे हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों – भोजन, बिजली, शिक्षा, परिवहन, संचार, आईटी आदि जैसी बुनियादी सेवाओं पर हावी हो जाते हैं। ये इजारेदार कंपनियां अपने मज़दूरों को कम से कम वेतन देकर, उपयोगकर्ताओं तथा उपभोक्ताओं को लूटकर और मनमाना मूल्य वसूल कर उनका शोषण करती हैं।

पूंजीपतियों और आम लोगों के बीच की खाई और भी गहरी होती रहती है, चाहें कोई भी सत्ता में हो। ये कारोबारी घराने भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों को हजारों करोड़ रुपये देते हैं। यही उन्हें इन पार्टियों का मालिक बनाता है। जब कोई पार्टी या पार्टियों का गठबंधन सरकार बनाता है तो उसका काम होता है, करोड़ों रुपये देने वालों के एजेंडे को लागू करना, जबकि विपक्ष की पार्टी लोगों के हितों की रक्षा का ढोंग करके लोगों को मूर्ख बनाती है।

जाहिर है कि अगर हम पूंजीपतियों के शासन को जारी रहने देंगे तो हमारा भविष्य बहुत अंधकारमय हो जाएगा। विकल्प है मज़दूर वर्ग और मेहनतकशों का शासन स्थापित करना और उनके लिए धरती पर स्वर्ग बनाना। यही कामगार एकता कमेटी का उद्देश्य है। पहला क़दम है यह पहचानना कि मज़दूर वर्ग कौन है।

आय या नौकरी के प्रकार के आधार पर मज़दूर वर्ग की पहचान करना ग़लत है। जो कोई भी उत्पादन के साधनों और सेवाओं के मालिकों को अपनी श्रम शक्ति बेचकर अपनी आजीविका कमाता है, वह एक श्रमजीवी है। निचले दर्जे़ के कामगारों के साथ-साथ, इसमें अत्यधिक योग्य लोग जैसे डॉक्टर, प्रोफेसर, आईटी कर्मचारी आदि भी शामिल हैं। उत्पादन के साधनों और सेवाओं के मालिकों का एकमात्र उद्देश्य अधिकतम लगातार लाभ कमाते रहना। यह केवल मज़दूरों को न्यूनतम संभव मज़दूरी देकर ही किया जा सकता है। मालिकों और मज़दूरों के हित, एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं और इन हितों को कभी भी एक साथ नहीं रखा जा सकता है।

किसानों के साथ-साथ मज़दूर एक ऐसी भूमिका निभाते हैं जो लोगों के जीवन और भलाई के लिए आवश्यक है। आज पूंजीपति, ख़ासकर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने बड़े पैमाने पर कृषि में प्रवेश कर रहे हैं और किसानों और मज़दूर वर्ग को बर्बाद कर रहे हैं। पूंजीपति वर्ग मज़दूरों और किसानों दोनों का साझा दुश्मन है। मज़दूरों और किसानों, दोनों के लिए यह आवश्यक है कि वे इसे पहचानें और पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एकजुट हों।

पूंजीपति वर्ग यह अच्छी तरह जानता है कि अपने शासन को बनाए रखने के सबसे विश्वसनीय तरीक़ों में से एक है “फूट डालो और राज करो“ की ब्रिटिश नीति, जिसको इसने और विकसित किया है। हर दिन हम अपने देश के मज़दूरों और मेहनतकशों को उनके धर्म, जाति, भाषा, राष्ट्रीयता आदि के आधार पर विभाजित और निशाना बनते देखते हैं। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि यह सिर्फ़ उस समुदाय विशेष पर नहीं, बल्कि पूरे मज़दूर वर्ग पर हमला है!

पूंजीपति वर्ग भी मज़दूरों को यूनियन और पार्टी संबद्धता, सुपरवाईज़रों और प्रबंधकों के खि़लाफ़ मज़दूरों (जो वास्तव में मज़दूर हैं), जो शारीरिक श्रम करते हैं और जो बौद्धिक श्रम करते हैं (जिन्हें यहां तक कि मज़दूर बतौर मान्यता प्राप्त नहीं है), स्थायी और अनुबंध कर्मचारी, कर्मचारी और प्रबंधक और भी कई तरीक़ों के आधार पर विभाजित करके उन्हें विभाजित करता है।

हिन्दोस्तानियों में एकमात्र विभाजन है जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए और वह वर्ग विभाजन। पूंजीपति वर्ग और मज़दूरों व अन्य मेहनतकशों के हित बिल्कुल विपरीत हैं और इनमें कभी भी तालमेल नहीं हो सकता। हमारी प्राथमिक पहचान मज़दूर वर्ग के सदस्य की होनी चाहिए। हमारी प्राथमिक निष्ठा मज़दूर वर्ग के प्रति होनी चाहिए।

पितृसत्ता को जीवित रखने वाली इस पूंजीवादी व्यवस्था में महिलाओं का दोहरा शोषण किया जाता है, मज़दूर के रूप में भी और महिलाओं के रूप में भी। यदि महिलायें जागृत और संगठित हों तो वे हमारे वर्ग की शक्ति को कई गुना बढ़ा देंगी। इसी तरह नौजवानों में भी क्रांतिकारी क्षमता है। उनके पास असीम ऊर्जा और आशावाद है और वे नए विचारों के साथ प्यार करते हैं। ऐतिहासिक रूप से पूरे विश्व में महिलाओं और नौजवानों ने मानवता की प्रगति में एक बड़ी भूमिका निभाई है। मज़दूर संगठनों को विशेष प्रयास करने चाहिएं और अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करना चाहिए जो महिलाओं के साथ-साथ नौजवानों की भागीदारी को प्रोत्साहित करें।

अगर हम वर्ग के रूप में एकजुट हो जाएं तो हम अपने ऊपर बढ़ते हमलों को विफल कर सकेंगे। जबकि ऐसा करना महत्वपूर्ण है, हमारे रणनीतिक लक्ष्य को ध्यान में रखना भी महत्वपूर्ण है। हमें संगठित होकर किसानों और अन्य मेहनतकशों के साथ मिलकर अपने देश का शासक बनना है।

हमें अपने वर्ग के भाइयों और बहनों को यह विश्वास दिलाना होगा कि हम शासन करने में सक्षम हैं, क्योंकि उनमें से एक बड़ी संख्या अपने वर्ग की ताक़त को कम आंकती है। एक शासक का प्राथमिक कर्तव्य है उन सभी की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करना, जो काम करते हैं और समाज में योगदान करते हैं। आज के शासक इसके ठीक विपरीत काम कर रहे हैं।

यह हम ही हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ मानव निर्मित आपदाओं जैसे हड़बड़ी में लगाये गये लॉकडाउन और राज्य द्वारा आयोजित सांप्रदायिक “दंगों“ से अपने अनगिनत साथी नागरिकों को बचाते हैं। एक साल तक चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण था, जिसमें किस तरह से लोगों की ज़रूरतों के साथ-साथ सुरक्षा का भी लोगों ने बहुत ही संगठित तरीक़े से ध्यान रखा।
हमने समय-समय पर अपनी इच्छा और हमारे पास मौजूद अल्प संसाधनों के साथ ऐसा करने की क्षमता का प्रदर्शन किया है। आज देश के संसाधनों को नियंत्रित करने वाले अरबपतियों के बजाय अगर हम देश के संसाधनों को नियंत्रित करते हैं, तो हम इस धरती पर स्वर्ग बना पाएंगे।

2024 के चुनाव की तैयारी में अलग-अलग पार्टियों ने अभी से हमें रिझाना शुरू कर दिया है। हमें इस धोखे में नहीं रहना चाहिए कि 2024 में सत्ता में आने वाली यह या वह पार्टी हमारी समस्याओं को हल करने जा रही है, लेकिन मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र कार्यक्रम को विकसित करने और एकजुट करने के लिए यथासंभव व्यापक चर्चा करें : अर्थव्यवस्था को सभी मेहनतकशों की निरन्तर बढ़ती हुई भौतिक और मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए उनकी भलाई को अधिकतम करने ओर उन्मुख होना चाहिए, और किसी के शोषण या दमन की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए; अंतिम निर्णय लेने की शक्ति लोगों के पास होनी चाहिए और निर्वाचित प्रतिनिधियों को लोगों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए; दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के लोगों के साथ आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए जाने चाहिए।
हमें अपने संगठनों को गुणात्मक रूप से और संख्या की दृष्टि से मजबूत करके अपनी लड़ने की क्षमता को मजबूत करना चाहिए। हमें एकजुट होकर मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकशों के एजेंडे को केंद्र में लाना होगा! हमें अपनी देश का शासक बनने के लिए संगठित होना होगा।

 

 

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