ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन का प्रेस नोट
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन
प्रेस नोट
08 जुलाई, 2023
पावर इंजीनियरों ने केंद्र सरकार से बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में पारित करने में जल्दबाजी न करने की अपील की:
विधेयक पारित करने से पहले बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के विभिन्न जनविरोधी प्रावधानों पर बिजली इंजीनियरों और उपभोक्ताओं के साथ चर्चा की जाए:
कोई भी एकतरफा कदम उठाने के खिलाफ़ सीधी कार्रवाई की चेतावनी दी।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन की संघीय कार्यकारिणी ने बेंगलुरु में हुई बैठक में केंद्र सरकार से मांग की है कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को बिजली इंजीनियरों, कर्मचारी और बिजली उपभोक्ता से व्यापक विचार-विमर्श के बिना जल्दबाजी में संसद में नहीं रखा जाना चाहिए।
फेडरेशन ने एक प्रस्ताव पारित कर संसद की बिजली मामलों की स्थायी समिति से अनुरोध किया है कि जब बिजली अधिनियम 2003 को बदलकर नया बिजली कानून बनाया जा रहा है, तो बिजली क्षेत्र के सबसे बड़े हितधारकों – बिजली इंजीनियरों, कर्मचारियों और उपभोक्ताओं – के साथ विस्तृत चर्चा किया जाना चाहिए। यह जरूरी है। संकल्प में कहा गया है कि बिजली मामलों की स्थायी समिति ने अभी तक बिजली इंजीनियरों, कर्मचारियों और आम उपभोक्ताओं के किसी भी संगठन को विचार-विमर्श के लिए समय नहीं दिया है। ऐसे में यह प्राथमिकता होनी चाहिए कि स्थायी समिति अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले बिजली इंजीनियरों, कर्मचारियों और आम उपभोक्ताओं से विस्तृत चर्चा करे।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने एक प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जनविरोधी विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में एकतरफा पारित करने का प्रयास किया गया, तो देश भर के बिजली मज़दूरों के साथ-साथ एक लाख बिजली इंजीनियरों को उसी क्षण सीधी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जिसकी सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी।
फेडरेशन की संघीय कार्यकारिणी बैठक में केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, पुडुचेरी, झारखंड आदि राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे, महासचिव पी रत्नाकर राव, एआईपीईएफ के पेट्रन के. अशोक राव ने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के माध्यम से, केंद्र सरकार बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन करने जा रही है, जो बिजली कर्मचारियों और बिजली उपभोक्ताओं पर दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है। केंद्र सरकार ने पिछले साल संयुक्त किसान मोर्चा को पत्र लिखकर वादा किया था कि किसानों और सभी हितधारकों के साथ विस्तृत बातचीत के बिना बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में नहीं रखा जाएगा। केंद्र सरकार ने बिजली के सबसे बड़े हितधारकों, बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मचारियों के प्रतिनिधियों से आज तक कोई बातचीत नहीं की है। केंद्र सरकार की इस एकतरफा कार्रवाई से बिजली कर्मचारियों में काफी आक्रोश है।
बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 में प्रावधान है कि एक ही क्षेत्र में एक से अधिक वितरण कंपनियों को लाइसेंस दिया जाएगा। निजी क्षेत्र की नई वितरण कंपनियाँ सार्वजनिक क्षेत्र के नेटवर्क का उपयोग करके बिजली की आपूर्ति करेंगी। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन यानी सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराने की बाध्यता केवल सरकारी कंपनी की होगी और निजी क्षेत्र की कंपनियां उनकी इच्छा के अनुसार केवल मुनाफे वाले औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को बिजली देकर लाभ कमाएंगी। नेटवर्क को बनाए रखने का काम सरकारी कंपनी का होगा और इसकी मजबूती और संचालन व रखरखाव पर सरकारी कंपनी को पैसा खर्च करना होगा। इस तरह निजी कंपनियां केवल कुछ व्हीलिंग चार्ज देकर मुनाफा कमायेंगी। परिणामस्वरूप सरकारी कम्पनियाँ आर्थिक रूप से दिवालिया हो जायेंगी।
बिल के मुताबिक, सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी खत्म कर दी जाएगी ताकि सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं से बिजली की पूरी लागत वसूली जा सके। 7.5 हॉर्स पावर के पंपिंग सेट को मात्र 6 घंटे चलाने पर किसानों को प्रति माह 10 हजार से 12 हजार रुपये का बिल देना होगा। यही हाल आम घरेलू उपभोक्ताओं का भी होगा। इस प्रकार यह बिल न तो आम जनता के हित में है और न ही कर्मचारियों के हित में है।
शैलेन्द्र दुबे
अध्यक्ष
9415006225