तमिलनाडु के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा में रैली का आयोजन

तोड़िलालर ओट्रुमई इयक्कम (वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट) के संवाददाता की रिपोर्ट


18 अगस्त, 2023 को तमिलनाडु के स्वास्थ्य कर्मियों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये रैली का आयोजन किया। चेन्नई के राजरतिनम स्टेडियम में आयोजित इस रैली में सैकड़ों स्वास्थ्य कर्मियों ने भाग लिया। इनमें नर्स, एम्बुलेंस कर्मचारी, पैरामेडिकल तकनीशियन और आयुष कर्मचारी शामिल थे।

इस रैली का आयोजन सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सी.ओ.आई.टी.यू.) ने किया था। 108 एम्बुलेंस वर्कर्स यूनियन ऑफ तमिलनाडु, तमिलनाडु गवर्नमेंट ऑल नर्सेस यूनियन, तमिलनाडु पब्लिक हेल्थ नर्सेस यूनियन, तमिलनाडु पब्लिक हेल्थ आयुष वर्कर्स यूनियन, तमिलनाडु गवर्नमेंट हॉस्पिटल ऑक्ज़िलरी वर्कर्स यूनियन, तमिलनाडु पब्लिक हेल्थ पैरामेडिकल टेक्नीशियन वर्कर्स यूनियन और तमिलनाडु एड्स कंट्रोल ऑल स्टॉफ वेल्फेयर यूनियन के नेताओं ने रैली को संबोधित किया।
तमिलनाडु सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीक़े से स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण करने और सरकारी अस्पतालों के सभी महत्वपूर्ण कार्यों को निजी ठेकेदारों को सौंपने की पृष्ठभूमि में यह रैली आयोजित की गई थी। सरकार सभी सुविधाओं, भवनों और बुनियादी ढांचे सहित कई सरकारी अस्पतालों को निजी अस्पतालों के हाथों में सौंप रही है, जिससे वे अधिकतम मुनाफ़ा कमा सकेंगे।

सरकारी अस्पतालों को जानबूझकर बर्बाद किया जा रहा है। उनमें स्टाफ की कमी है। पूरे तमिलनाडु के सरकारी अस्पतालों में नर्सों की 50 प्रतिषत कमी है। इसी तरह सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, पैरामेडिकल तकनीशियनों, वार्ड सहायकों, आयुष कर्मचारियों, 108 एम्बुलेंस कर्मचारियों और अन्य मज़दूरों की भारी कमी है। जिससे लोगों को दी जाने वाली चिकित्सा सेवाएं ख़राब हो रही हैं। हरेक डॉक्टर को प्रतिदिन औसतन लगभग 400 मरीजों का इलाज करना पड़ता है। प्रत्येक नर्स को वार्ड में 50 से अधिक बिस्तरों के मरीजों की देखभाल करनी होती है। एक सफ़ाई कर्मचारी को चार बड़े-बड़े वार्डां या उससे भी अधिक वार्डों की सफ़ाई और देखभाल करनी होती है। डॉक्टरों, नर्सों, सहायकों और एम्बुलेंस कर्मियों सहित अधिकांश स्वास्थ्य कर्मियों को 11 महीने की निश्चित अवधि के अनुबंध पर रखा जा रहा है।

तमिलनाडु सरकार बहुत ही आक्रमकता से अस्पतालों के मज़दूरों की संख्या में कटौती कर रही है और महत्वपूर्ण चिकित्सा सेवाओं का निजीकरण कर रही है। जिन सेवाओं को निजी ऑपरेटरों को आउटसोर्स किया गया है उन सभी के लिए मरीजों को ऊंची फीस चुकानी पड़ रही है।

ठेकेदारों द्वारा काम पर रखे गए चिकित्सा और सहायक कर्मियों को एक तरफ़ तो बहुत कम वेतन दिया जा रहा है तो साथ ही साथ उन्हें बिना किसी बुनियादी अधिकार और सामाजिक सुविधा के दिन में 12-14 घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

नर्सों के बीच बंटवारा करने के लिये उन्हें अनुबंधित नर्स, एम.आर.बी. नर्स, दैनिक वेतन नर्स, जिला स्वास्थ्य समिति नर्स, आदि का नाम दिया गया है। उन्हें नौकरी की सुरक्षा, उचित वेतन, चिकित्सा अवकाश, साप्ताहिक अवकाश, जीवन यापन के खर्च के अनुसार वेतन वृद्धि सहित अन्य अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। यही बात आयुष कर्मियों, पैरामेडिकल स्टाफ, 108 एम्बुलेंस मज़दूरों, आदि के लिए भी सच है।

आंदोलनकारी स्वास्थ्य कर्मचारियों की यूनियनों के नेताओं ने काम की इन शोषणकारी परिस्थितियों के साथ-साथ, उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सरकारी अस्पतालों पर निर्भर लोगों की दुर्दशा के बारे में बात की।

कर्मचारियों ने मांग की है कि सरकार सभी विभागों में पर्याप्त संख्या में चिकित्सा कर्मचारियों की भर्ती करे, सेवाओं के निजीकरण या आउटसोर्सिंग को तुरंत बंद करे, सभी ठेका कर्मियों को सरकारी कर्मचारी बतौर उनकी नौकरियों को नियमित करे, साप्ताहिक अवकाश प्रदान करे, सभी कर्मचारियों के अनुभव, कौशल और जीवन-यापन के खर्च के अनुसार मंहगाई को ध्यान में रखते हुए उनके वेतन के स्तर में वृद्धि करे। मज़दूरों ने 8 घंटे का कार्य दिवस लागू करने की भी मांग की।

उन्होंने मांग की है कि जिन स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं जैसे कि 108 एम्बुलेंस, वार्ड सहायक, सहायक मज़दूर आदि, जिनको निजी कंपनियों या ठेकेदारों को सौप दिया गया है, उन्हें तुरंत सरकार के स्वास्थ्य सेवा विभाग के तहत वापस लाया जाए।

मज़दूरों की एकता को और मजबूत करने तथा सभी मांगों के पूरा होने तक लड़ने के दृढ़ संकल्प के साथ रैली का समापन किया गया।

सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा कर्मचारियों के क्रूर शोषण और काम की अमानवीय परिस्थितियां दर्शाती हैं कि सरकार लोगों के लिए अच्छी गुणवत्ता की और सस्ता इलाज तथा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के प्रति उदासीन और बेपरवाह है।

 

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