मज़दूर एकता कमेटी (एमईसी) के संवाददाता की रिपोर्ट
हिन्दोस्तानी राज्य मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता पर लगातार हमले कर रहा है। राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण करने तथा निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरियों को ठेके पर करवाने के क़दम उठा रहा है। इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकारें पूंजीपति मालिकों को मज़दूरों का शोषण बढ़ाने की खुली छूट देने के लिए मज़दूर-विरोधी क़ानून पारित कर रही हैं।
महंगाई और आवश्यक वस्तुओं की मूल्यों में वृद्धि के कारण मज़दूरों का जीवन स्तर गिर रहा है। बढ़ती बेरोज़गारी मज़दूरों को कम से कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर कर रही है, क्योंकि किसी भी नौकरी के लिए बेरोज़गारों की एक फ़ौज बेताब खड़ी है।
हिन्दोस्तान के अन्य हिस्सों के मज़दूरों की तरह, पश्चिम बंगाल में परिवहन मज़दूर भी अपने अधिकारों और सामान्य रूप से मज़दूरों के अधिकारों पर हो रहे इन हमलों का विरोध कर रहे हैं। वे ऐसे हमलों के खि़लाफ़ अपने संघर्ष को तेज़ करने के लिए अटल हैं। इसी सिलसिले में वे मांगों का एक चार्टर लेकर आए हैं, जिसके इर्द-गिर्द वे एकजुट हो रहे हैं। उनकी
मुख्य मांगें हैं :
• केंद्रीय/राज्य सार्वजनिक उद्यमों के निजीकरण पर रोक;
• सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यापक बनाना और कमोडिटी बाज़ार में सट्टा व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए तत्काल उपाय;
• रोज़गार सृजन के ठोस उपायों के माध्यम से बेरोज़गारी पर काबू पाना;
• बिना किसी अपवाद या छूट के सभी बुनियादी श्रम क़ानूनों को कड़ाई से लागू करना और श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के लिए कड़े दंडात्मक उपाय;
• स्थायी काम में ठेकेदारीकरण को रोकना और समान काम के लिए ठेका मज़दूरों को नियमित मज़दूरों के बराबर वेतन;
• आवेदन जमा करने की तारीख़ से 45 दिनों के भीतर ट्रेड यूनियनों का अनिवार्य पंजीकरण;
• रेलवे, बीमा और रक्षा में एफ.डी.आई. पर रोक।