काम की बिगड़ती स्थितियों के खि़लाफ़ मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स का संघर्ष

मज़दूर एकता कमेटी (एमईसी) के संवाददाता की रिपोर्ट

पश्चिम बंगाल मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स यूनियन (डब्ल्यू.बी.एम.एस.आर.यू.) का 19वां राज्य सम्मेलन हाल ही में 8 से 10 सितंबर 2023 के बीच सिलीगुड़ी में आयोजित किया गया था। पश्चिम बंगाल में डब्ल्यू.बी.एम.एस.आर.यू. मेडिकल सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स (एम.आर.) का सबसे बड़ी यूनियन है और इसके लगभग 22,000 सदस्य हैं। इस क्षेत्र में मज़दूरों की बिगड़ती कामकाजी स्थितियों पर इस सम्मेलन में चर्चा की गई।

देशभर में लगभग पांच लाख मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स (एम.आर.) हैं और वे विभिन्न राज्यों में विभिन्न यूनियनों में संगठित हैं। ये यूनियनें राष्ट्रीय स्तर पर अपने फेडरेशन, एफ.एम.आर.ए.आई. के तहत एक साथ आई हैं।

फार्मास्युटिकल (दवा) कंपनियां एम.आर. के माध्यम से अपनी दवाओं का प्रचार करती हैं। इन मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स को उन दवाओं के सैंपल पैकेट दिए जाते हैं जिन्हें कोई कंपनी प्रमोट करना चाहती है। एम.आर. विभिन्न क्लीनिकों और अस्पतालों में जाते हैं और इन दवाओं के मुफ़्त नमूने देते हैं। डॉक्टरों को इन विशेष ब्रांड की दवाओं को लिखने के लिए प्रोत्साहन भी दिया जाता है, न कि जेनेरिक दवाओं या अन्य दवा कंपनियों के ब्रांडों की दवाओं को लिखने के लिए। ज्यादातर मामलों में एम.आर. का वेतन उस दवा की बिक्री पर आधारित होता है। एम.आर. पर न्यूनतम वेतन क़ानून लागू नहीं होता है। स्थानीय दवा कंपनियों में एम.आर. को प्रति महीने लगभग 8,000-10,000 रुपये मिलते हैं, जबकि कुछ बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों में एम.आर. वेतन अधिक हो सकता है।

इनके काम की बिगड़ती स्थितियों के दो मुख्य कारण हैं – एम.आर. के काम को विनियमित करने वाले क़ानून को रद्द करना और दवा कंपनियों द्वारा इंटरनेट आधारित प्रौद्योगिकी को अपनाना। 1976 का बिक्री संवर्धन अधिनियम, 2021 में संसद द्वारा चार श्रम संहिताओं के पारित हो जाने के बाद निरस्त किए गए 29 श्रम कानूनों में से एक था। दवा कंपनियों ने एम.आर. के कार्यभार और काम के घंटों को बढ़ाने के लिए इस क़ानून के निरस्त होने का फ़ायदा उठाया है। कंपनियां एम.आर. को ऐसी गतिविधियों को संचालित करने के लिए भी मजबूर कर रही हैं जो बिक्री संवर्धन गतिविधि के दायरे में नहीं आती हैं। ऐसी गतिविधि का एक उदाहरण है रक्त के नमूने और अन्य स्वास्थ्य जांचों के लिए शिविरों का संचालन करना, जिसके लिए एम.आर. के पास कोई प्रशिक्षण नहीं है।

बड़ी दवा कंपनियां भी एम.आर. की आवश्यकता को ख़त्म करती जा रही हैं और अपने प्रचार को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ला रही हैं। कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां एम.आर. को दूरदराज़ के इलाकों में ट्रांस्फर कर रही हैं, उनका वेतन रोक रही हैं। कुछ मामलों में तो कर्मचारियों को नौकरी से भी निकाल दिया गया है।

अब दवा कंपनियां एम.आर. की निगरानी करने और उन्हें डिजिटल रूप से ट्रैक करने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रही हैं। पूरा वेतन पाने के लिए बिक्री लक्ष्य पूरा करने के लिये पूर्व शर्त बनाई जा रही है।

अपने कामकाज की बिगड़ती परिस्थितियों के ख़िलाफ़ लड़ने और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एम.आर. दृढ़ संकल्प हैं। डब्ल्यू.बी.एम.एस.आर.यू. के सम्मेलन से पहले, 26 अगस्त को फेडरेशन ऑफ मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफ.एम.आर.ए.आई.) ने ”रोज़गार संबंधों में बदलाव की चुनौतियां“ विषय पर चर्चा करने के लिए एक विशेष बैठक की। इस बैठक में सभी एम.आर. यूनियनों के बीच स्थिति की सामान्य समझ विकसित करने और नियोक्ताओं द्वारा नए काम और कार्यभार को थोपने से निपटने के लिए उचित तंत्र विकसित करने में मदद करने के लक्ष्य से एक पेपर जारी किया गया था। इसके बाद, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, उत्तर-पूर्वी राज्यों, ओड़िशा और बिहार में राज्य इकाइयों और उप-इकाइयों की बैठकें हुईं।

 

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