रेलवे के बुनियादी ढांचे के सुदृढ़ीकरण और विकास की परवाह किया बिना भारतीय रेलवे का निजीकरण

द्वारा

आर एलंगोवन,
उपाध्यक्ष, दक्षिण रेलवे कर्मचारी संघ (DREU)

विभिन्न रेल बजटों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे को साल दर साल नवीनीकरण और विस्तार के लिए आवश्यक धन उपलब्ध नहीं कराया गया है।

विभिन्न रेल बजटों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय रेलवे को साल दर साल नवीनीकरण और विस्तार के लिए आवश्यक धन उपलब्ध नहीं कराया गया है। यहां तक ​​कि बुनियादी ढांचे पर जोर देने वाला निर्मला सीतारमण का तथाकथित बजट एक मिथ्या है और अगर कोई गहराई से उसका विश्लेषण करता है और पिछले बजट के साथ तुलना करता है, तो कई तथ्य सामने आतें हैं।

रेलवे में कम निवेश

जहां तक रेल के  बुनियादी ढांचे का संबंध है, मौजूदा परिसंपत्तियों (assets) के नवीनीकरण या मौजूदा क्षमता में वृद्धि के लिए जितना जरूरी है उससे बहुत ही कम निवेश किया गया है और उसकी पूरी तरह से उपेक्षा की गई है। तत्कालीन रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने 2015-16 के अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि बुनियादी ढांचे की बहुत बुरी तरह उपेक्षा की गई है और मालगाड़ियों की औसत गति 25 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 50 किमी प्रति घंटे तथा यात्री ट्रेनों की औसत गति को 50 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 80 किमी प्रति घंटे तक करने के लिए, जिसके द्वारा 95% समयपालन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके, इसे और मजबूत और विस्तारित करने की सख्त आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि देश में रेलवे की माल ढुलाई का हिस्सा 29 प्रतिशत से बढ़ाकर 45 प्रतिशत किया जाना चाहिए।

श्री प्रभु ने रेलवे पर अपने श्वेत पत्र में बताया था कि रेलवे के 5,300 किलोमीटर ट्रैक का नवीनीकरण होना बाकी है और यही रेल के पटरी से उतरने और दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है। श्वेत पत्र के अनुसार, हर साल रेलवे के 4,500 किलोमीटर का ट्रैक नवीनीकरण होना चाहिए, लेकिन इसके बजाय, हर साल केवल 2,500 से 3,000 किलोमीटर ट्रैक का ही नवीनीकरण होता है। उन्होंने 12वीं पंचवर्षीय योजना को बीच में ही समाप्त करने के बाद, उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 8.56 लाख करोड़ रुपये के बजट के साथ 2015-2019 के लिए एक योजना की घोषणा की। इस योजना के तहत, 2015-16 से शुरू होकर हर साल 1.71 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाने चाहिए थे। लेकिन बजट दस्तावेजों के अनुसार हकीकत में, इस राशि से बहुत कम, निम्नलिखित ‘वास्तविक” (actual) खर्च किया गया है:

वर्ष 2015-16 2016-17 2017-18 2018-19 2019-20
वास्तविक खर्च, करोड़ रु 93,519 1,09,934 1,01,985 1,33,376 1,48,064

 

2017-18 से आम बजट के साथ रेल बजट के विलय के बाद, श्री अरुण जेटली रेलवे के संरक्षक बन गए और उन्होंने कम खर्च करना जारी रखा। जुलाई 2019 में, 2019 के संसद चुनाव से पहले पीयूष गोयल द्वारा अंतरिम बजट के बाद, वित्त मंत्री के रूप में निर्मला सीतारमण ने उस बजट में घोषणा की कि रेलवे को 2018-30 के दौरान 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है, यानी 12 वर्षों के दौरान हर साल 4 लाख करोड़ रुपये, लेकिन 2019-20 में, हकीकत में खर्च किया गया धन केवल रु. 1.48 लाख करोड़ था ।

उन्होंने 2015-19 में 8.56 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना का सही मूल्यांकन प्रस्तुत नहीं किया क्योंकि इस दौरान, इन पांच सालों में केवल  5.86 लाख करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। यहां तक कि इस आंकड़े पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि अतिरिक्त बजटीय प्रावधान के आंकड़ों की विश्वसनीयता जांचना संभव नहीं है। खासकर पीपीपी के जरिए निवेश के आंकड़े जांचना संभव नहीं है।

2020-21 के बजट भाषण में, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि सरकार का लक्ष्य एक राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) बनाना है, जैसा कि स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित किया गया था। बजट भाषण में उन्होंने कहा कि यह 5 साल के लिए है। लेकिन 31 दिसंबर 2019 को वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एनआईपी के अनुसार, सभी बुनियादी ढांचे के लिए, अगले 6 वर्षों में 103 लाख करोड़ रुपये की योजना का प्रस्ताव रखा गया। एनआईपी के अनुसार, रेलवे की योजना 13.69 लाख करोड़ रुपये के लिए है। । चूंकि निजी क्षेत्र कई रियायतों के बावजूद रेल बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए आगे नहीं आ रहा है, एनआईपी ने इस फंड का 87 फीसदी, यानी 11.90 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार द्वारा आम बजट प्रावधान के माध्यम से निवेश करने की परिकल्पना की है। लेकिन एनआईपी के अनुसार, केंद्र सरकार, सड़क क्षेत्र के लिए योजना में केवल 25 फीसदी ही निवेश करेगा।

बजट योजना परिव्यय (जिसके लिए बजट में जो राशि दिखाई गयी है), और हर साल के लिए योजना के अनुसार कुल आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं।

वर्ष 2019-20 2020-21 2021-22 2022-23 2023-24 2024-25
एनआईपी पर योजना, करोड़ रुपये में 1,33,232 2,62,510 3,09,360 2,74,181 2,21,369 1,67,870
योजना परिव्यय बजट, करोड़ रुपये में 1,48,064 1,61,042 2,15,058 त्यागा हुआ त्यागा हुआ त्यागा हुआ
एनआईपी का 87% करोड़ रुपये में 1,15,911 2,28,383 1,87,100
बजटीय सहायता, करोड़ रुपये में 68,104 29,000 से संशोधित 70,250 बीई

बजट में 13,000 करोड़ रुपये की सड़क सुरक्षा निधि खर्च करने की योजना शामिल हैं यह राशि, डीजल पर सड़क-कर के द्वारा एकत्रित की जाती है और इस निधि को रेलवे में रेलवे सुरक्षा निधि फण्ड में हस्तांतरित किया जाता है इसके अलावा बजट में 5000  करोड़ रु., केंद्रीय सरकार की तरफ से, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष को योगदान के रूप में देने का प्रावधान है| यदि इस 18,000 करोड़ रु. की राशि को, रेलवे बजट में से कटौती की जाए, तो इसका मतलब निकलता है कि एनआईपी के लिए सरकार का योगदान, 87% (जिसका वादा किया गया था) से बहुत कम होगा। इन आकड़ों से यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है  है कि एनआईपी के लिए अभी भी पर्याप्त राशि उपलब्ध नहीं है।

निर्मला सीतारमण ने 2021-22 के बजट में, एनआईपी को त्याग दिया है और 38.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश के साथ 2021-51 के बीच, अगले 30 साल के लिए एक और योजना, राष्ट्रीय रेल योजना (एनआरपी) को लागू करने का प्रस्ताव रखा है। आश्चर्यजनक रूप से, उद्देश्य वही हैं जो 2015-16 में प्रस्तावित थे: माल ढुलाई हिस्सेदारी को 26% से बढ़ाकर 45% करना; मालगाड़ियों की औसत गति को 25 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 50 किमी प्रति घंटे और यात्री ट्रेनों की औसत गति को 50 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 130-160 किमी प्रति घंटे करना। यहां तक कि ट्रैक नवीनीकरण की बकाया राशि को देने का भी निर्णय नहीं किया गया है। इस समय, 11000 किलोमीटर ट्रैक के नवीनीकरण के लिए पर्याप्त फंड्स बकाया है। नई लाइनों के उत्पादन में  वृद्धि, लाइनों के दोहरीकरण, आदि का कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है। निम्न तालिका दर्शाती है कि बजट में, कैसे इन बड़ी घोषणाओं के बावजूद कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।

वर्ष रेल पटरी  नवीनीकरण, किमी नई पटरी  किमी पटरी दोहरीकरण, किमी
2014-15 2,100 300 700
2015-16 2,500 813 972
2016-17 2,487 953 882
2017-18 4,023 409 999
2018-19 4,181 439 2,519
2019-20 4,500 360 1,458
2020-21 3,200 (आर इ ) 300 (आर इ) 1,400 (आर इ)
2021-22 4,000 300 1,600

 

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 1.07 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) करने का प्रस्ताव रखा गया है जिसकी व्यापक रूप से सराहना की जा रही है। यह भी एक और आश्चर्यजनक खुलासा है। चालू वित्त वर्ष के लिए 29,000 करोड़ रुपये का संशोधित अनुमान 70,250 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से 41000 करोड़ रुपये कम है। यदि इसे 2021-22 में अच्छा बनाना है, तो 60,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि की आवश्यकता है, इसलिए 1.07 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान पिछले आवंटन से काफी कम है। इसके अलावा 18,000 करोड़ रुपये, रेल सुरक्षा कोष के लिए अलग रखे जाने हैं। प्रस्तावित एनआरपी के लिए अतिरिक्त प्राविधान कहां है? 2021-26 के लिए 38.5 लाख करोड़ रुपये में से 5,81,821 करोड़ रुपये की राशि जिसे खर्च किया जाना है, यानी रु. 1,17,364 करोड़ सालाना, पर इसका कोई प्रावधान बजट में नहीं है।

यहां तक कि बजट के द्वारा सुरक्षा लक्ष्य भी पूरे नहीं किए गए हैं। बहुत सी रेल पटरी से उतरने और दुर्घटना में हुई मौतों के बाद, राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK) नाम से एक राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष प्रस्तावित किया गया था। इसके अनुसार, 5 साल में 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करने हैं यानि रु. 2017-18 से शुरू होने वाले समय में सालाना 20,000 करोड़ रु.। सीऐजी के अनुसार, यह डीजल कर (सेस) से प्राप्त, रेल सुरक्षा कोष जैसे मौजूदा रेलवे कोष के फंड्स सी ही बनाया गया कोष है, जिसमें रेलवे का हिस्सा रु. 10,000 करोड़ और इसके अतिरिक्त रु. 5,000 करोड़ रुपये रेलवे के डेप्रिसिएशन फंड से आते हैं। दोनों ही रेलवे के फण्ड स्रोतों का हिस्सा रहे हैं। आम बजट में से केवल 5,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त योगदान की आवश्यकता है। इस फंड का उपयोग, मौजूदा परिसंपत्तियों (एसेट्स) जैसे ट्रैक नवीनीकरण, सिग्नल नवीनीकरण, पुल की मरम्मत आदि के नवीनीकरण के लिए किया जाना है, लेकिन यह लक्ष्य भी पूरा नहीं किया गया है। सीएजी की रिपोर्ट और बजट दस्तावेजों के अनुसार, आरआरएसके द्वारा हर साल रु. 20,000 करोड़ खर्च करने के बजाय, हकीकत में हर साल निम्नलिखित खर्च हुआ है :

वर्ष करोड़ रुपये
2017-18 16,090
2018-19 18,015
2019-20 15,200
2020-21 17,000

 

ऑपरेटिंग अनुपात – जो दावा किया गया और हकीकत

अगला रहस्योद्घाटन अभूतपूर्व प्रतिकूल-परिचालन अनुपात (ऑपरेटिंग रेशियों) के बारे में है जिसका खुलासा, रेलवे प्राप्ति और व्यय के अवलोकन दस्तावेज़ (ओवरव्यू) में नहीं किया गया है। परिचालन-अनुपात (OR), सालाना आय और व्यय का अनुपात है। रेलवे की प्राप्ति और व्यय के अवलोकन दस्तावेज़ से पता चलता है कि संशोधित अनुमान के अनुसार 2019-20 में परिचालन-अनुपात (ओ आर), 98.36% और 2020-21 में 96.96% था। एक प्रश्न स्वाभाविक है कि जब सकल यातायात रसीद (कुल ट्रैफिक से मिली आय) बजट अनुमान से संशोधित बजट में 79,304 करोड़ रु. कम है लगभग समान परिचालन अनुपात संशोधित बजट में कैसे संभव है| वित्त मंत्री ने, खर्च में 75,604 करोड़ रुपये कम दिखाए हैं। । हैरानी की बात यह है कि उन्होंने, पेंशन विनियोग (पेंशन के भुगतान के लिए राशि) के लिए, 53,160 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के मुकाबले संशोधित बजट में केवल 523 करोड़ रुपये दिखाया है। 2019-20 के लिए भी, पेंशन पर वास्तविक विनियोग, केवल 20,708 करोड़ रुपये दिखाया गया है। जब हम 2021-22 के बजट में, मतदान के लिए प्रस्तुत, अनुदान मांगों को देखतें हैं, तो 2019-20 के लिए 52,712 करोड़ रुपये का वास्तविक   खर्च दिखाया गया है, जबकि अवलोकन दस्तावेज़ में केवल 20,708 रुपये दिखाया गया है। ओवरव्यू दस्तावेज़ में 2020-21 के लिए पेंशन भुगतान केवल 523 करोड़ रुपये का दिखाया गया है जबकि इसके मुकाबले संशोधित अनुमान 54,766 करोड़ रुपये का दिखाया गया है। अचम्भे की बात यह है कि दस्तावेज़ में एक फुटनोट के अनुसार, हकीकत में, परिचालन-अनुपात (OR) 2019-20 के लिए 114.19% और 2020-21 के लिए 131.49% है।

“कोविड से संबंधित, संसाधन की कमी (resource gap) के कारण, रेलवे ने वास्तविक (एक्चुअल) 2019-20 और संशोधित अनुमान (आरई) 2020-21 में पेंशन फंड के लिए आवश्यक राशि से कम राशि का विनियोजन / अनुमान लगाया। इसका मतलब है कि 2019-20 वास्तविक और संशोधित अनुमान 2020-21 में रेलवे राजस्व से, पेंशन निधि के विनियोग के लिए आवश्यक स्तर के साथ, परिचालन अनुपात क्रमशः 114.19% और 131.49% होगा।”

 

रेलवे वित्त

इसलिए, रेलवे की वित्तीय स्थिति खराब है और वे एनआईपी या एनआरपी के लिए आवश्यक, बड़े पैमाने पर निवेश के लिए संसाधन नहीं जुटा सकते हैं। जैसा कि एनआईपी में योजना बनाई गई है, 87% फंड सामान्य बजट से आना है। तभी सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा सकता है और बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए इसका विस्तार किया जा सकता है।

सीएजी (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित 1.5 लाख करोड़ रुपये का एलआईसी ऋण भी नहीं मिला क्योंकि IRDA के प्रतिबंधात्मक निवेश विनियमन के अनुसार इसकी इजाजत नहीं है। पिछले 4 वर्षों में, केवल 16,200 करोड़ रुपये एलआईसी से मिले है। रेलवे को इस लिए, उच्च ब्याज दर पर 49,000 करोड़ रुपये का शॉर्ट-टर्म मार्केट लोन भी लेना पड़ा।

जैसा कि अनुभव से देखा गया है, वर्तमान सरकार, निवेश की उपेक्षा कर रही है और इस लिए बुनियादी ढांचे का विकास बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एनआरपी का यह भी कहना है कि निजी क्षेत्र (प्राइवेट पूजीपति घराने) बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए उत्सुक नहीं हैं। एनआरपी का यह भी कहना है कि भारत सरकार के पास निवेश करने के लिए भी पैसा नहीं है। चीन हमसे 11 गुना निवेश करता है। चीन में, मालगाड़ियों की गति 350+ किमी प्रति घंटे और यात्री यात्री ट्रेनों की गति 400 किमी प्रति घंटे है क्योंकि वहां सरकार रेलवे में निवेश करती है।

 

निजीकरण को बढ़ावा देने से रेलवे की वित्तीय स्थिति और खराब होगी

एनआईपी की बुनियादी ढांचे के विकास की सिफ़रिशों की, उपेक्षा करते हुए, सरकार केवल एनआईपी की निजीकरण सिफारिशों को लागू कर रही है। मार्च 2023 तक 150 यात्री ट्रेनों का और 2025 तक 500 ट्रेनों का निजीकरण किया जाना है। 2025 तक, 30% माल गाड़ियों का निजीकरण किया जाना है। एनआरपी का कहना है कि 2031 तक भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाने वाली कोई भी मालगाड़ी नहीं चलेगी और माल यातायात का पूरी तरह से निजीकरण कर दिया जाएगा। 2031 से पहले 90 महत्वपूर्ण स्टेशनों को निजीकरण के लिए एनआरपी में सूचीबद्ध किया गया है। माल यातायात के लिए समर्पित फ्रेट कॉरिडोर भी निजी क्षेत्र के लिए खोला जाएगा। निर्मला सीतारमण ने बजट में घोषणा की है कि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन का भी मुद्रीकरण और विनिवेश किया जाएगा और इसके चालू होने पर निजी पूजीपतियों को सौंप दिया जाएगा। कंटेनर कॉर्पोरेशन पहले से ही रणनीतिक बिक्री के लिए सूचीबद्ध है। बजट घोषणा के अनुसार, इसे 2021-22 में बेचा जाएगा।

रेलवे इस समय माल यातायात से होने वाली कमाई से, यात्री ट्रेनों द्वारा होने वाले नुकसान की भरपाई (क्रॉस सब्सिडी) कर रहा है। सीऐजी (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में रेलवे को यात्री-खंड (पैसेंजर सेगमेंट) में 46,000 करोड़ रु. की हानि हुयी तथा इसी दौरान रेलवे ने माल खंड (गुड्स सेगमेंट) से 45,900 करोड़ रुपये का लाभ कमाया। इस तरह माल खंड के द्वारा यात्री नुकसान की भरपाई की जा सकी।

इंग्लॅण्ड और रूस में, केंद्र सरकार, एनआरपी के अनुसार, यात्रियों के नुकसान की भरपाई करती है। सरकारी सब्सिडी के अभाव में और अगर निजीकरण के द्वारा मालगाड़ियां पूंजीपतियों को दे दी जाती हैं, तो रेलवे यात्री ट्रेनों को सब्सिडी नहीं दे पाएगा। वह वेतन और पेंशन का भुगतान नहीं कर पाएगा। एनआरपी का कहना है कि निजीकरण के बाद, केवल घाटे में चल रहे द्वितीय श्रेणी के यात्री खंड रेलवे के पास रह जाएगा। इसलिए, सारा लाभ निजी क्षेत्र में जाएगा और सरकार को नुकसान की भरपाई करनी होगी। अंत में, बुनियादी ढांचे के विकास की उपेक्षा होगी और रेलवे को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। यह स्पष्ट है कि बुनियादी ढांचे के विकास की उपेक्षा की कीमत पर, निजीकरण होगा।

निर्मला सीतारमण ने बजट में दिखाया है कि 2021-22 में 14.4 फीसदी नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि  होगी। रेलवे के लक्ष्य इससे मेल नहीं खाते। रेलवे की वेबसाइट में उपलब्ध रेलवे प्राप्ति और व्यय के विवरण के अवलोकन से पता चलता है कि इस साल, नेट टन-किलोमीटर के संदर्भ में भी 2019-20 के स्तर पर पहुँचने की भी उम्मीद नहीं है। बयान के अनुसार, 2019-20 में माल-यातायात 1.03% और यात्री-यातायात 4.6% बढ़ने की उम्मीद है। जब हम ईंधन खर्च की तुलना करते हैं तो ये आंकड़े भी विश्वसनीय नहीं दिखते हैं। ईंधन के बिना ट्रेनें नहीं चलेंगी, यह एक सामान्य जानकारी है। ईंधन व्यय 2019-20 का केवल 82 प्रतिशत होगा, महामारी की अवधि, 2020-21 के संशोधित अनुमान से मात्र 12,00 करोड़ रु. अधिक।

वर्ष 2019-20 2020-21 BE 2020-21 RE 2021-22 BE
माल, मिलियन ntkm 7,07,665 7,18,548 6,60,492 7,14,961
यात्री, मिलियन पीकेएम 10,50,738 12,10,587 1,18,928 10,99,127
ईंधन व्यय, करोड़ रुपये 28,999 29,858 22,651 23,815

 

लाभहीन यात्री सेवाओं के निजीकरण की तैयारी

जहां तक यात्री ट्रेनों का संबंध है, रेलवे, समय-सारिणी में निर्धारित सभी ट्रेनों को चलाने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है। रेल मंत्री के मुताबिक अब वे केवल 60% ट्रेनें ही चला रहे हैं। वे उन्हें क्लोनिंग एक्सप्रेस कहते हैं। हालांकि वे नियमित ट्रेनें हैं, लेकिन उन्हें उनके नाम और नंबर से नहीं बुलाया जाता है। उन्होंने नियमित ट्रेन के पहले नंबर को हटा दिया है, उसके स्थान पर 0 जोड़ा है और उन्हें विशेष ट्रेन कहा जाता है। वे महामारी का उपयोग, केवल लाभदायक ट्रेनों को चलाने के अवसर के रूप में कर रहे हैं। हकीकत में, वे मालगाडी और यात्री ट्रेनों के निजीकरण के लिये हालातों की तैयारी कर रहे हैं।

रेल नेटवर्क के सुदृढ़ीकरण और विस्तार की उपेक्षा की हालातों में, यदि निजी यात्री ट्रेनों को मौजूदा भीड़भाड़ वाले मार्गों पर चलाना है, तो निजी ऑपरेटरों को एक समान सुविधा (level playing field) प्रदान करने के लिए सभी समयबद्ध ट्रेनें नहीं चलाई जा सकती हैं। निजी ट्रेनों के लिए एक शर्त यह भी है कि उनकी ट्रेनों के एक घंटे पहले और बाद में कोई आईआर (इंडियन रेलवे) की ट्रेन नहीं होनी चाहिए, यहां तक कि दूसरे टर्मिनल से भी नहीं। इससे स्पष्ट नजर आता है कि रेलवे का इरादा सभी पैसेंजर ट्रेनों को चलाने का नहीं है। इसलिए, यह स्वाभाविक है कि ईंधन व्यय महामारी अवधि के संशोधित स्तर की तुलना में बहुत कम होगा।

रेलवे का, 2019-20 के स्तर पर, उपनगरीय ट्रेनें चलाने का भी इरादा नहीं है क्योंकि इस खंड में 6,000 करोड़ रु. का नुकसान होता है| वे सामान्य डिब्बे भी नहीं जोड़ना चाहते। एनआरपी के अनुसार, ब्रिटिश यात्री खंड के नुकसान की भरपाई, संबंधित सरकारों द्वारा की जाती है, भले ही अधिकांश ब्रिटिश-यात्री खंड, निजी ऑपरेटर्स के पास हो। भारतीय रेलवे में एक कहावत है कि जैसे-जैसे हम यात्री सेवा बढ़ाएंगे, वैसे-वैसे घाटा बढ़ता जाएगा। चूंकि सरकार की पालिसी यही है कि उपयोगकर्ता को भुगतान करना होगा, उनको बहुत ही कम यात्रियों से नुकसान की भरपाई करने के लिए पैसा वसूलना पड़ेगा। न्यूनतम से अधिकतम निकालना – यह हकीकत हो जायेगी। सरकार ने, समाज सेवा दायित्व के उद्देश्यों को पूरी तरह से त्याग दिया है। इन विशेष ट्रेनों में किराया अधिक है  और वरिष्ठ नागरिकों, मरीजों, युवाओं, पत्रकारों, किसानों आदि के लिए कोई रियायत नहीं है। वे वस्तुतः रेलवे की माल और यात्री ट्रेनों के निजीकरण के लिए हालात तैयार कर रहे हैं।

रेलवे यूनियनों को मजदूरों को एकजुट करना चाहिए और रेलवे और देश को बचाने के लिए लोगों के साथ-साथ बड़े संघर्षों के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए।

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