भारतीय रेल के सोलापुर मंडल के लोको रनिंग स्टाफ ने 5 मार्च को विभिन्न स्टेशनों पर आरएस (डी एंड ए) नियम के नियम 14 (ii) के तहत दंड लगाने के खिलाफ प्रदर्शन किये

ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) के सोलापुर मंडल के महासचिव कॉमरेड पिंटू रॉय की रिपोर्ट


साथियों,

गेट मीटिंग और प्रदर्शन में रनिंग स्टॉफ को समझाने और जागरूक करने के लिए कुछ मुख्य बिंदु आपके समक्ष रख रहा हूं जिसे समझकर अपने स्टॉफ के साथ साझा करें -:

1. यह देखा गया है कि हाल ही में स्थिर सामग्री ट्रेन मामले में, संबंधित मंडल अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने आरएस (डी एंड ए) नियम के नियम 14 (ii) के तहत दंड लगाया है। एसोसिएशन का मानना है कि नियम 14(ii) के तहत लोको पायलट के खिलाफ यह दंडात्मक कार्रवाई अनुचित, गैरकानूनी है और नियम 14(ii) के तहत जुर्माना लगाने की प्रक्रिया के बाद से रेलवे बोर्ड के पत्र संख्या ई (डी एंड ए) 85 आरजी 6-72 दिनांक 06.10.1988 के खिलाफ है।

रेलवे सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 1968 का नियम 14(ii), जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के दूसरे प्रावधान के खंड (बी) में निहित प्रावधानों से निकलता है, के लिए विशेष प्रक्रिया निर…

2. हमारे सोलापुर मंडल में आज कल बहुत सारे मामले ऐसे आएं जिसमें नियम के विरुद्ध जाकर अनुशासनिक अधिकारी द्वारा चार्जशीट दिए जा रहे हैं। और रेल सेवा नियम, DAR 1968 का उलंघन करते हुए दंड भी दिया जा रहा है। यहां तक रनिंग कर्मचारी अपने बचाव में अपने आप को निर्दोष साबित किया इसके बावजूद भी सजा दी गई है। बहुत सारे केस में बचाव का अवसर भी नहीं दिया जा रहा है।

यह खुलेआम नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ाने की प्रथा शुरू की गई है जिससे हम सभी रनिंग स्टॉफ के लिए भविष्य में खतरे का संकेत है। और हमे लगता है कि इसी को बंधुआ मजदूर भी कहा जाता है । साथियों सही समय पर विरोध नहीं किया गया तो हम अपनी नौकरी को सुरक्षित नहीं कर पाएंगे और अपने सभी संवैधानिक अधिकार भी को खो देंगे। हमे अगर संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके के आंदोलन से सफलता नहीं मिलती है तो हम कानूनी कार्रवाई की ओर भी बढ़ने में पीछे नहीं हटेंगे।

3. जब रनिंग स्टॉफ के लिए

सामान्यतः 09 घंटे की ड्यूटी निर्धारित की गई है तो उससे क्यों अधिक ड्यूटी कराकर रेल की सुरक्षा और संपत्ति के साथ हमारी जीवन को दाव पर लगाई जा रही है। प्रशासन द्वारा इस लापरवाही से रेलवे के चंद पैसे की नुकसान है जिसे वह किसी तरह क्षति पूर्ति कर सकते हैं। परंतु पब्लिक की जीवन या हमारे जीवन चले जाने के बाद उनके परिवारों की क्षति पूर्ति कई पीढ़ियों तक नहीं हो पाती है।

अभी हाल में देखा गया है कि 9 घंटे के कार्य करने के बाद भी हमारे crew को Sr DEE के द्वारा सस्पेंड किया गया है । जिसमे लापरवाही कंट्रोलर की है। फिर भी हमारे कैडर के उपर इतना दबाब क्यों बनाया जा रहा है? क्योंकि हम विरोध करने में पीछे हैं, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से डरते हैं और डर हमे गुलामी की ओर ले जाएगा। इसलिए अन्याय के खिलाफ हम सब को एक साथ लड़ना होगा।

4. आज कल रेल प्रशासन द्वारा गाड़ियों को बिना ट्रेन मैनेजर के संचालन

धड़ल्ले से किया जा रहा है जिससे लोको पायलट के उपर कार्य का बोझ तो बढ़ा ही है साथ ही रेलवे की सेफ्टी को दरकिनार कर असुरक्षित परिचालन कर ट्रेनों की दुर्घटना को निमंत्रण देने का काम करती है। स्टॉफ के अभाव में जब हमारे लोको पायलट अतिरिक्त कार्य कर बिना TM के कार्य करने लगे फिर एक नई प्रथा की शुरुआत की गई, बिना TM के GDR जांच करना। और GDR भी ऐसे कर्मचारी (Pointsman) के साथ जिसे उस ट्रेन के वैगन के बारे में किसी प्रकार की जानकारी नहीं और न ही उसे कोई प्रशिक्षण दिया गया है। फिर भी प्रशासन संरक्षा का प्रवाह किए बिना प्रत्येक दिन ऐसी गाड़ियों का संचालन भगवान भरोसे करती है और जब किसी प्रकार की दुर्घटना होती है तब अपनी गलतियों को छुपाने के लिए लोको पायलट कैडर को टारगेट किया जाता है।

5. मुख्यालय बायपास कराकर कार्य करवाना भी रेलवे बोर्ड के निर्देशों का उलंघन है। और इसका सीधा असर रेलवे की सेफ्टी पर पड़ती है साथ ही हमारा पारिवारिक जीवन पर भी पड़ रहा है जो कि हमारा फंडामेंटल राइट भी है। जबकि रेलवे बोर्ड के निर्देशों में स्पष्ट लिखा है कि “कर्मीदल के इनकमिंग ट्रिप के कार्य के घंटे को ध्यान दिए बिना उसे मुख्यालय में 16 घंटे का विश्राम दिया जायेगा।” तो इसमें मुख्यालय आने के बाद कार्य के लिए आगे भेजना रेलवे बोर्ड के निर्देशों को अवहेलना करना है।
आज हम सभी रनिंग स्टॉफ को इस मीटिंग के माध्यम से एकजुट होकर कड़े फैसले लेने होंगे। मुख्यालय बायपास को रोकना होगा। ये हमारी वर्किंग सिस्टम को खराब कर देगी जिससे हम हमेशा प्रशासन के शिकार होते रहेंगे।

6. एक से अधिक रनिंग रूम में विश्राम करवाकर गाड़ी कार्य करवाने का अभ्यास से रनिंग स्टॉफ के स्वास्थ पर बूड़ा असर पड़ा है । जिससे एक लोको पायलट के तौर पर उसकी एकाग्रता और पूरी कौशलता के साथ संचालन करना कठिन होता है। हमारा यह कहना है कि एक लोको पायलट मानव ही होता है कोई रोबोट नहीं जिसे प्रत्येक 6 से 8 घंटे विश्राम के बाद 11/12 घंटे कार्य कराया जाय। और रनिंग रूम की ऐसी व्यव्स्था जहां ना तो रेलवे बोर्ड के निर्देशों के अनुसार बेड रूम बनाया गया हो और न ही गुणवत्ता वाली भोजन की व्यवस्था हो। जो हम डिजर्व भी करते हैं। तो हमे इस तरह के कार्य करने का भी विरोध करना चाहिए। स्वास्थ का अधिकार भी हमे हमारा संविधान ने ही दिया है।

7. पूरे साल रेलवे की सेवा करने के बावजूद हमे 30 दिन की छुट्टी की सुविधा

इसलिए दी गई है कि हमे संवैधानिक तौर पर भी पारिवारिक और सामाजिक जीवन जीने का अधिकार है। और इसलिए साल में 30 दिन की छुट्टी का प्रावधान दिया गया है। और कर्मचारियों के कारण कार्य में कोई बाधा न हो और बैलेंस बना रहे इसके लिए प्रत्येक विभाग के प्रत्येक पदानुसार उसे अवकाश के लिए 30% छुट्टी आरक्षित रखने का प्रावधान है। उसके आधार पर ही किसी भी विभाग के पद का सृजन किया जाता है।

परन्तु यहां भी हमे हमारे अधिकारों से वंचित किया गया जिससे हम अपने परिवार रिश्तेदार और समाज से दूर हो चुके हैं। हम सही समय पर अपने माता, पिता, बच्चे या परिवार की इलाज तक के लिए भी समय नहीं दे पा रहे हैं यहां तक कि पैतृक/मातृत्व अवकाश में भी absent किया जा रहा है, परिवार के किसी सदस्य के मृत्यु तक में अंतिम मुखदर्शन नहीं पाता है। ऐसे में हम अपने आप को जलील महसूस करते हैं और काफी बुरे बुरे ख्यालात मन में आते हैं जिसका प्रभाव हमारे कार्य पर भी पड़ता है।
इन्ही मुद्दो पर प्रदर्शन हुआ और आगे protest की तैयारी चल रही है।

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