बेंगलूरु में आईटी मज़दूरों ने लंबे कार्य दिवस के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया

मजदूर एकता कमेटी संवाददाता की रिपोर्ट

जुलाई में, कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा। इस संशोधन में आईटी कंपनियों में मौजूदा 10 घंटे के कार्य दिवस के बजाय 14 घंटे के कार्य दिवस को मानकीकृत करने की मांग की गई। आईटी मज़दूरों ने इस प्रस्ताव का जवाब, लगातार दो सप्ताह से अधिक समय से लड़ाकू गेट मीटिंगें और सड़क अभियान कर के दिया है। उनका मजबूत विरोध 3 अगस्त को बेंगलूरु के फ्रीडम पार्क में हुए एक प्रदर्शन में तब्दील हुआ।

प्रदर्शन स्थल के बैनर पर लिखा था। “हम मज़दूर हैं, आपके गुलाम नहीं!”

विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर्नाटक आईटी वर्कर्स यूनियन (केआईटीयू) ने किया। तमिलनाडु में आईटी उद्योग में मज़दूरों के कल्याण के लिए काम करने वाले एक सक्रिय यूनियन, यूनियन ऑफ आईटी एंड आईटीईएस एम्प्लाॅइज़ (यूनाइट) के प्रतिनिधियों ने भी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। अन्य राज्यों के उद्योग यूनियनों से भी समर्थन मिला है।

बेंगलूरु में लगभग 1500 आईटी कंपनियां हैं, जो हिन्दोस्तान के सॉफ्टवेयर निर्यात में एक बड़े हिस्से का योगदान करती हैं। हिन्दोस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला हिस्सा है। आईटी उद्योग से पैदा होने वाला विशाल पूंजीवादी मुनाफ़ा, कुशल कार्यबल के पसीने और मेहनत का परिणाम है, जिसका अत्यधिक शोषण किया जाता है।

आईटी मज़दूर पहले से ही प्रतिदिन 10 घंटे काम करते आये हैं, जो औद्योगिक मज़दूरों के लिए मानक 8 घंटे के दिन से अधिक है। यह एक प्रचंड कार्य संस्कृति है जो निर्धारित काम के घंटों के बाहर भी मज़दूरों से लगातार उपलब्ध रहने की मांग करती है। उनसे 24 घंटे जुड़े रहने और उपलब्ध रहने की अपेक्षा की जाती है। इस क्षेत्र का अध्ययन करने वाली विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, आईटी क्षेत्र के 45 प्रतिशत मज़दूर डिप्रेशन जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं और 55 प्रतिशत बिगड़ते शारीरिक स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं।

केआईटीयू के अनुसार, प्रस्तावित क़ानूनी संशोधन आईटी कंपनियों को 3-शिफ्ट से 2-शिफ्ट प्रणाली में जाने की अनुमति देगा। लगभग एक-तिहाई नियोजित मज़दूरों को उनकी नौकरी से निकाल दिया जाएगा। आईटी उद्योग अपने “कभी भी नौकरी पर रखो और कभी भी नौकरी से निकाल दो” श्रम प्रथाओं के लिए जाना जाता है। मज़दूरों पर अपने खाली समय में अपने हुनर को बढ़ाने का लगातार दबाव रहता है। यह लगभग असंभव है, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन 10 घंटे काम करना पड़ता है और अपने घर और कार्यस्थल के बीच दो या तीन घंटे यात्रा करनी पड़ती है। इससे उन्हें मुश्किल से इतना समय मिलता है कि वे अगले दिन काम पर जाने योग्य हो सकें।


अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव पूंजीपति मालिकों द्वारा रखा गया था और उनके कहने पर राज्य श्रम मंत्रालय द्वारा बुलाई गई बैठक में इस पर चर्चा की गई थी। केआईटीयू ने अतिरिक्त श्रम आयुक्त से मिलकर एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें मांग की गई है कि कार्य दिवस बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज किया जाए और जिन मज़दूरों को काम से निकाल दिया गया है, उन्हें उचित मुआव्ज़ा दिया जाए।

मज़दूर कार्यकर्ता और यूनियन नेता आईटी उद्योग में काम करने की स्थितियों में भारी बदलाव की मांग कर रहे हैं, जिससे उचित वेतन, नौकरी की सुरक्षा और कार्य के उचित घंटे सुनिश्चित हो सकें। वे आईटी मज़दूरों के शोषण को और तेज़ करने पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।

काम के घंटे बढ़ाने का प्रस्ताव कर्नाटक के आईटी उद्योग तक ही सीमित नहीं है। यह अन्य राज्यों और क्षेत्रों में भी हो रहा है। यह पूंजीपतियों द्वारा मज़दूरों के शोषण को तेज़ करने और उनसे हर दिन अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने के प्रयास का हिस्सा है। इस हमले को वैध बनाने के लिए केंद्रीय और राज्य क़ानूनों में संशोधन किया जा रहा है। यह दर्शाता है कि हिन्दोस्तानी राज्य पूंजीपतियों के हितों की रक्षा करता है, न कि मज़दूरों के अधिकारों की।

आईटी मज़दूरों द्वारा आयोजित किए जा रहे विरोध प्रदर्शन से पता चलता है कि अकुशल और उच्च कुशल मज़दूरों सहित, मज़दूर वर्ग के सभी तबके पूंजीपतियों द्वारा उनके शोषण को बढ़ाने के प्रयासों का सामना कर रहे हैं।

कार्य दिवस की 8 घंटे की सीमा एक अधिकार है जिसे अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर वर्ग ने पिछले कई दशकों के संघर्ष से जीता है। यह एक ऐसा अधिकार है जो सभी मज़दूरों का है, चाहे वे कुशल हों या अकुशल, क्योंकि हर एक को पर्याप्त आराम, मनोरंजन और पारिवारिक मामलों से निपटने के लिए समय की आवश्यकता होती है। अपने काम के घंटों को बढ़ाने के क़ानूनी प्रयासों के ख़िलाफ़ आईटी मज़दूरों का संघर्ष मज़दूर वर्ग के सभी तबकों से बिना शर्त समर्थन का हकदार है। एक पर हमला सब पर हमला!

आईटी मज़दूरों का यूनियन बनाने का संघर्ष

हिन्दोस्तान के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र का तेज़ी से विकास 1990 के दशक में शुरू हुआ। काम के समय के घंटे लंबे होने, नौकरियों की असुरक्षा और वेतन स्तरों में गतिहीनता होने की वज़ह से आईटी मज़दूरों द्वारा यूनियन बनाने के प्रयास आने वाले दशकों में शुरू हुए।

शुरुआत में यूनियन बनाने के प्रयास छोटे पैमाने पर सामने आए, जैसे कि आईटीईयू टीएन (2008), यूनियन फॉर आईटीईएस केरल (यूएनआईटीईएस, 2010)। 2017 से, बेंगलूरु, पुणे और अन्य आईटी केंद्रों में और अधिक यूनियनें पंजीकृत हुई हैं, जिनमें कर्नाटका स्टेट आईटी/आईटीईएस एम्प्लाॅइज़ यूनियन (केआईटीयू), फोरम फॉर आईटी एम्प्लाॅइज़ (एफआईटीई) और नेसेंट आईटी एम्प्लाॅइज़ सेनेट (एनआईटीईएस) शामिल हैं। उन्होंने आईटी मज़दूरों को नौकरी की सुरक्षा, उचित मुआव्ज़ा और बेहतर काम की परिस्थितियों की मांग करने और लड़ने के लिए संगठित किया। उसी वर्ष, कोलकाता स्थित अखिल भारतीय आईटी और आईटीईएस कर्मचारी यूनियन (एआईआईटीईयू) का गठन किया गया। एआईआईटीईयू की बेंगलूरु, मुंबई, पुणे और दिल्ली सहित अधिकांश हिन्दोस्तानी तकनीकी केंद्रों में शाखाएं हैं।

कोविड-19 संकट के दौरान बड़े पैमाने पर बर्खास्तगी, वेतन में कटौती और अत्यधिक काम के कारण, अधिक से अधिक आईटी मज़दूर यह महसूस कर रहे हैं कि उन्हें अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक यूनियन की आवश्यकता है। हज़ारों तकनीकी मज़दूरों को ‘डाउन्साइजिंग’ या ‘राइटसाइजिंग’ के नाम पर निकाल दिया गया है। उन्हें ब्लैकमेल किया गया और उन्हें अपना इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। इस स्थिति में, मज़दूर तेज़ी से यूनियन के सदस्य बनने के लिए आगे आ रहे हैं।

धमकी, बर्खास्तगी और कई क़ानूनी चुनौतियों का सामना करते हुए, आईटी मज़दूर अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए एक मजबूत सामूहिक आवाज़ के लिए संगठित होने में लगे हुए हैं।

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