AIFAP वेबसाईट के पाठक से प्राप्त पत्र

प्रिय संपादक,

मैं पिछले कई दिनों से सर्व हिन्द निजीकरण विरोधी फोरम (AIFAP) की वेबसाईट को  पढ़ रहा हूँ। इस सप्ताह की विशेष बात यह रही है कि देश के एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र भारतीय रेलवे में 13 से 18 सितंबर तक ’’विरोध सप्ताह’’ मनाया गया। हमारे वित्त मंत्री ने हालही में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाईन (एन.एम.पी.) का ऐलान किया है। मजदूर वर्ग इस फैसले का पुरजोर विरोध कर रहा है। भारतीय रेलवे के दो बडे फेडरेशन, ऑल इंडिया रेल्वेमेन्स फेडरेशन और नॅशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेल्वेमेन दोनों ने मुद्रीकरण के खिलाफ विरोध विरोध प्रदर्शन आयोजित किये हैं।

मुझे इस बात की बेहद खुशी हो रही है कि AIFAP की वेबसाईट पर हर दिन देश के अलग अलग हिस्सों से विरोध सप्ताह की खबरें और फोटो एवं संघर्ष के विडिओ भी आए हैं। इन खबरों को पढ़कर मजदूर वर्ग के सांझे संघर्ष को काफी मदद मिली है। मुझे आशा है कि दूसरे क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों को इससे प्रेरणा मिलेगी और वे भी अपने क्षेत्र में निजीकरण विरोध का संघर्ष और तेज करेंगे। दूसरी बात है कि हमारी बहुत सी मीडिया पूंजीपतियों के लिए काम करती है इसलिए यह वेबसाईट देखते रहना और संघषों की खबर मजदूर वर्ग को सांझा करते रहना हम मजदूरों की जिम्मेदारी है। हमें हररोज पूंजीपतियों के अखबार पत्र पढने या उनकी रिपोर्ट सुनने से पहले AIFAP की वेबसाइट जरूर देखनी चाहिए।

पिछले कई महिनों से निजीकरण के विरोध का संघर्ष तेज होता गया है। एक के बाद दूसरे क्षेत्र के मजदूर निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। पहले केईसी और अब सर्व हिन्द निजीकरण विरोधी फोरम द्वारा आयोजित झूम सभाओं में न केवल उस क्षेत्र के बल्कि दूसरे क्षेत्र के नेतागण हिस्सा ले रहे हैं। इसलिए निजीकरण विरोध का आंदोलन जोर पकड़ रहा है। हमारे देश के एक एक नागरिक के कर के पैसे से खड़ी सार्वजनिक संपत्ति को निजी मुनाफाखोरों को सरकार कौड़ियों के दाम पर बेचने की कोशिश में है। चूँकि संपत्ति को बेचने का विरोध हो रहा है इसलिए सरकार ने अपना रवैया बदला है। वह अब मुद्रीकरण का रास्ता अपना रही है। मुद्रीकरण के तहत एक बडी अवधि के लिए सरकार सार्वजनिक संपत्ति पूंजीपतियों को सौंप रही है। मजदूर वर्ग ने सरकार की इस चाल को बखूबी समझा है और शुरू से ही इसका विरोध किया है। चाहे वो खुलेआम बेचना हो या मुद्रीकरण की नीति, हम यह समझ गये हैं कि सार्वजनिक संपत्ति को निजी मुनाफे के लिए इस्तेमाल मतलब निजीकरण ही है, फिर चाहे उसको कोई भी नाम से क्यों न पहचाना जाए।

भारतीय रेल मजदूरों ने इस नीति को समझकर इसका विरोध करने की शुरूवात की है, लेकिन मुद्रीकरण और निजीकरण विरोधी संघर्ष को और व्यापक करने की जरूरत है। हमें हरेक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में मुद्रीकरण के विरोध के संघर्ष करने होंगे। हर एक छोटे संघषों को मजदूर वर्ग के समूचे संघर्ष में जोड़ना होगा। हमें हमारे क्षेत्र के संघर्षो के साथ साथ अन्य क्षेत्रों के मजदूरों के संघर्षो की खबर रखनी होगी। और क्षे़त्र में हो रहे संघर्षो के समर्थन में बयान जारी करने होंगें। अंत में हमें अपने परिवार के सदस्यों, मित्रजनों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपभोक्ताओं को भी हमारे निजीकरण विरोधी संघर्ष में जोड़ना होगा। हमारी एकजुटता ही निजीकरण के राक्षस को हरा सकती है।

मजदूर एकता ज़िंदाबाद!

इन्कलाब ज़िंदाबाद!

 

प्रथमेश, मुंबई

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