कामगार एकता कमेटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
बिजली के निजीकरण के विरोध में 5 जनवरी 2025 को प्रयागराज में बिजली पंचायत हुई। इसमें हजारों की संख्या में बिजली कर्मचारी, इंजीनियर और उपभोक्ता शामिल हुए। बिजली पंचायत में संयुक्त किसान मोर्चा और अखिल भारतीय किसान सभा के लोग बड़ी संख्या में पहुंचे।
बिजली पंचायत को संयुक्त किसान मोर्चा के शैलेंद्र दुबे, जितेंद्र सिंह गुर्जर, महेंद्र राय, पीके दीक्षित, सुहैल आबिद, एकादशी यादव ने संबोधित किया और एटक, इंटक, सीटू, एआईसीसीटीयू और अन्य अखिल भारतीय ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों ने इसका समर्थन किया।
पंचायत में मुख्यमंत्री से अपील की गई कि वे आम उपभोक्ताओं और किसानों के हित में बिजली निगम के बिजली के निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लें।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) के चेयरमैन एवं विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि निगम प्रबंधन समस्याओं के समाधान के लिए हाईकोर्ट के 5 नवंबर को दिए गए आदेश का पालन नहीं कर रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकारी क्षेत्र की कंपनी के लिए बिजली एक सेवा है, जबकि निजी घरानों के लिए यह व्यवसाय है। यूपी की सरकारी बिजली कंपनियां घाटे में रहकर किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध करा रही हैं। वहीं निजी बिजली कंपनियां मुनाफे के लिए काम करती हैं।
संघर्ष समिति ने कहा कि निजीकरण से होने वाली समस्याओं पर बार-बार अनुरोध के बावजूद पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने आज तक संघर्ष समिति से कोई वार्ता नहीं की है। पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन निजीकरण की इतनी जल्दी में है कि उसे हाईकोर्ट के आदेश की भी परवाह नहीं है।
संघर्ष समिति ने कहा कि उड़ीसा, औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, समस्तीपुर, गया, भागलपुर, उज्जैन, सागर, ग्वालियर, आगरा और ग्रेटर नोएडा में निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह विफल हो चुका है। इसलिए निजीकरण के इस असफल प्रयोग को देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लागू करना उपभोक्ताओं व कर्मचारियों के हित में नहीं होगा। सरकारी क्षेत्र में किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है। निजीकरण होते ही दरों में असामान्य वृद्धि हो जाएगी।
जितेन्द्र सिंह गुर्जर ने कहा कि लाखों-करोड़ों रुपए की बिजली परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव बेचने की साजिश है। बिजली का निजीकरण किसानों व आम उपभोक्ताओं की कमर तोड़ देगा। बिजली निगमों की लाखों-करोड़ों रुपए की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन किए बिना ही उन्हें 1500-1600 करोड़ रुपए के आरक्षित मूल्य पर बेचने का दस्तावेज तैयार कर लिया गया है, जो किसी भी तरह से प्रदेश के हित में नहीं है।