कामगार एकता कमेटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट
मजदूरों, किसानों और अन्य लोगों के कड़े विरोध ने केंद्र सरकार को बिजली निजीकरण के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। केंद्र द्वारा नए विधेयक के माध्यम से निजीकरण को आगे बढ़ाने के बजाय, अब इसे राज्य सरकारों के माध्यम से और टुकड़ों में आगे बढ़ाया जा रहा है। केंद्र सरकार को लगता है कि इससे बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों की एकता टूट जाएगी और निजीकरण के विरोध को कमजोर कर दिया जाएगा।
इस संबंध में केंद्र सरकार की मंशा कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दी थी। 15 फरवरी को नई दिल्ली में ET Now ग्लोबल बिजनेस समिट में बड़े भारतीय और विदेशी पूंजीपतियों की एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की, “अब हम बिजली वितरण क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि इसमें और अधिक दक्षता आए।”
बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों और इंजीनियरों के दृढ़ एकजुट विरोध ने संसद से बिजली (संशोधन) विधेयक को मंजूरी दिलाने के केंद्र सरकार के प्रयासों को विफल करने में सफलता प्राप्त की थी। इस विधेयक का उद्देश्य बिजली वितरण क्षेत्र को पूरी तरह से निजी क्षेत्र के लिए खोलना था।
खेती से जुड़े तीन कानूनों का विरोध कर रहे लाखों किसानों की मांगों में से एक बिजली (संशोधन) विधेयक को खत्म करना था, क्योंकि उन्हें एहसास था कि बिजली के निजीकरण से बिजली की दरों में भारी वृद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप उनकी उत्पादन लागत भी बढ़ेगी। केंद्र सरकार ने तीनों कृषि संबंधी कानूनों को वापस लेने पर सहमति जताते हुए किसानों को लिखित आश्वासन दिया था कि उनसे सलाह किए बिना बिजली के निजीकरण की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।
लेकिन, केंद्र सरकार अपने लिखित वादे से मुकर गई। उसने न केवल किसानों और बिजली कर्मचारियों से सलाह किए बिना संसद में बिजली (संशोधन) विधेयक पेश किया, बल्कि विशेष रूप से बिजली वितरण के निजीकरण की दिशा में कई कदम उठा रही है।
इससे कई गंभीर सवाल उठते हैं। सरकार के वादों का क्या मूल्य है? यह सरकार किसके प्रति जवाबदेह है – देश की जनता के प्रति या केवल मुट्ठी भर बड़े पूंजीपतियों के प्रति, जो अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए बिजली क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं?
यह स्पष्ट है कि टाटा, अडानी, गोयनका, जिंदल, मेहता (टोरेंट), अनिल अम्बानी जैसे बड़े पूंजीपति जो पहले से ही बिजली उत्पादन में प्रमुख हिस्सेदारी हासिल कर चुके हैं, अब बिजली क्षेत्र के अन्य दो अंगों – वितरण और पारेषण में भी ऐसा ही करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें वितरण और पारेषण दोनों क्षेत्रों को उनके अधीन करने में मदद करें।
इस दिशा में पहला कदम उत्तर प्रदेश सरकार ने तब उठाया जब उसने कुछ महीने पहले पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की योजना की घोषणा की। यूपी के बिजली कर्मचारी विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, यूपी के बैनर तले इस योजना के खिलाफ बहादुरी से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। संघर्ष समिति पूरे राज्य में महापंचायत करके लोगों को निजीकरण की योजना के खिलाफ लामबंद कर रही है ताकि लोगों को समझाया जा सके कि वितरण का निजीकरण उनके हितों के खिलाफ है।
लगभग उसी समय, राजस्थान सरकार ने अन्य बिजली उत्पादन कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम बनाकर अपने बिजली उत्पादन संयंत्रों का निजीकरण करने की योजना की घोषणा की। उत्पादन निगम अभियांत्रिकी कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति राज्य में इस कदम का विरोध कर रही है।
चंडीगढ़ बिजली विभाग के कर्मचारियों और शहर के नागरिकों के कड़े और निरंतर विरोध के बावजूद, अदालत के समर्थन से और आधे कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए मजबूर करके 1 फरवरी 2025 को इसके बिजली वितरण का निजीकरण कर दिया गया।
इसी समय विभिन्न राज्यों में स्मार्ट मीटर लगाने का उपभोक्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। कई जगहों पर स्मार्ट मीटर विरोधी संघर्ष समितियां बनाई गई हैं और उनके कार्यों ने फिलहाल इनकी स्थापना को रोकने में सफलता प्राप्त की है। उपभोक्ताओं को एहसास हो गया है कि स्मार्ट मीटर उन्हें बिजली का अग्रिम भुगतान करने के लिए मजबूर करेंगे और टाइम ऑफ डे टैरिफ प्रणाली को लागू करने में सक्षम बनाएंगे, जिससे उनका बिजली बिल तुरंत बढ़ जाएगा।
बिजली क्षेत्र के कर्मचारी भी स्मार्ट मीटर लगाने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे इसे निजीकरण की ओर एक कदम के रूप में देख रहे हैं। इससे कुछ लाख कर्मचारियों की नौकरियां भी जाएंगी।
जहां तक बिजली उत्पादन का सवाल है, एकमात्र ऐसा क्षेत्र जिसमें निजी क्षेत्र को अनुमति नहीं थी, वह था परमाणु ऊर्जा के माध्यम से उत्पादन। प्रधानमंत्री ने उसी संबोधन में घोषणा की, “हमने अब परमाणु क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोल दिया है”। यह घोषणा 1 फरवरी 2025 के वित्त मंत्री के बजट भाषण का भी हिस्सा थी।
सरकार ने पूरे बिजली क्षेत्र के निजीकरण की योजना को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। बिजली क्षेत्र के निजीकरण से न केवल इस क्षेत्र के मज़दूरों को बल्कि अन्य सभी क्षेत्रों के मज़दूरों को उपभोक्ताओं के रूप में और किसानों को भी नुकसान होगा। केवल पूरे मज़दूर वर्ग और किसानों की मज़बूत एकता ही इन नए हमलों को रोक पाएगी।