पवन कुमार सिंह (कीमैन)
पूर्वोत्तर रेलवे, लखीमपुर की कलम से
पटरियों पर चलती ज़िंदगी, मौत से हर रोज़ लड़ती है,
हर कदम पर खतरा मंडराए, सांसें सहमी-सहमी रहती हैं।
आज जो बच गया हूँ मैं, कल किसका नंबर आएगा?
कब तक ये लाशों का सिलसिला, यूँ ही बढ़ता जाएगा?
पटरियों पर चलते हैं हम, मौत से आँख मिलाते हैं,
हर रोज़ किसी ट्रेन के नीचे, अपने साथी को पाते हैं।
आज बच गए तो किस्मत अच्छी, कल क्या होगा कौन बताए,
रेल प्रशासन अब तो जाग जाओ, कोई तो ठोस कदम उठाएं।
हर रोज़ मौत को छूते हैं, हर दिन खौफ में जीते हैं,
डबल कीमैन हो अगर साथ, तो कुछ सुरक्षित दीखते हैं।
डबल कीमैन अब ज़रूरी है, ये हर ट्रैकमैन की है पुकार,
दो आँखें अब कम पड़ जाती है, दो कीमैनों की हो अब निगहबान।
अगर बचानी है तुम्हे ये जानें, तो सुनो कीमैनों की ये पुकार,
कीमैन की मौतों को तो रोको, दो सुरक्षा को अब तो अंजाम।
जो इन पटरियों पर जीते हैं, वही दुख जानते हैं,
हर रोज़ जो मौत को छूकर निकलें, दर्द वही पहचानते हैं।
पवन कीमैन की है गुहार, अब और तो लहू न बहे,
रेल प्रशासन जवाब दे, कब तक कीमैनों का बलिदान सहे?
रचनाकार: चिंतित व फिक्रमंद भारतीय रेलवे से न्याय की उम्मीद लगाए एक कीमैन…